बिहार का मखाना उद्योग: पूर्णिया से लेकर विदेशों तक फैल रही ‘उजले सोने’ की चमक, लेकिन बिचौलियों की दखल से किसान परेशान
09 नवंबर 2024, पूर्णिया: बिहार का मखाना उद्योग: पूर्णिया से लेकर विदेशों तक फैल रही ‘उजले सोने’ की चमक, लेकिन बिचौलियों की दखल से किसान परेशान – बिहार के मिथिलांचल, कोसी, और सीमांचल क्षेत्रों में तेजी से फल-फूल रहे मखाना उद्योग ने पूर्णिया को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दिलाई है। “उजला सोना” कहे जाने वाले मखाना का 90% उत्पादन इन्हीं क्षेत्रों में होता है और यहां से मखाना अमेरिका, सिंगापुर, कनाडा सहित कई देशों में निर्यात किया जा रहा है।
मखाना को जीआई टैग मिलने और ‘सबौर वन मखाना’ के उत्पादन के बाद किसानों की आमदनी में सुधार तो हुआ है, लेकिन बिचौलियों की मौजूदगी से किसान और छोटे कारोबारी मुश्किलें झेल रहे हैं। मखाना की प्रोसेसिंग में कड़ी मेहनत लगती है—कीचड़ भरे पानी से बीज निकालने से लेकर जलते तवे पर भूनने और हाथ से फोड़ने तक की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ हैं। प्रोसेसिंग के बाद विभिन्न प्रकार के मखानों को देश-विदेश में भेजा जाता है।
पूर्णिया के मखाना उद्यमी लिली झा और अमित चौधरी का कहना है कि मखाना की कीमतों में स्थिरता लाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का प्रावधान होना चाहिए। हाल में मखाना की कीमत में बड़ा उछाल देखा गया है—तीन महीने पहले ₹600 प्रति किलो का मखाना अब ₹1500 प्रति किलो हो गया है। अमित चौधरी ने बताया कि इस व्यापार में बड़े बिचौलिए हावी हो गए हैं, जो किसानों से पहले ही नगद भुगतान देकर मखाना सस्ते में खरीद लेते हैं और फिर कीमतें बढ़ाकर मुनाफा कमाते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सरकारी नीति और एमएसपी का होना जरूरी है।
मखाना कारीगर सीता देवी के अनुसार, मखाना उद्योग ने अब उनके परिवार को पूर्णिया में ही रोजगार का साधन मुहैया करा दिया है, जिससे बाहर जाकर कमाने की आवश्यकता नहीं रही। इस उद्योग से करीब 10,000 लोगों को रोजगार मिल रहा है।
मखाना से जुड़े लोगों का मानना है कि सरकार को मखाना उद्योग के लिए एक ठोस नीति बनानी चाहिए, ताकि किसानों से लेकर छोटे कारोबारियों और उपभोक्ताओं तक सभी को उचित मूल्य मिल सके।
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