खरीफ सीजन में खाद की कमी: किसानों की चिंता
खाद के लिए किसानों की लाईन
16 मई 2025, भोपाल: खरीफ सीजन में खाद की कमी: किसानों की चिंता – देश भर में खरीफ सीजन शुरू होने में अब कुछ ही समय शेष है, लेकिन किसानों को कृषि आदान व्यवस्था की चिंता सताने लगी है। खासकर उर्वरक को लेकर मध्य प्रदेश के किसान परेशान हैं। मांग एवं आपूर्ति में अंतर बना रहने के कारण किसान मानसून पूर्व व्यवस्था की चिंता में हैं।
किसानों की परेशानी
प्रदेश के किसानों को खाद के लिए सोसायटियों एवं मार्कफेड गोदामों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। खरीफ हो या रबी दोनों सीजन के पूर्व खाद के लिए किसानों की लाईन लगती है, फिर भी किसान को पर्याप्त खाद नहीं मिल पाती। प्रशासन की लचर व्यवस्था और किसान की जल्दबाजी दोनों ही जिम्मेदार हो सकते हैं, लेकिन प्रशासन की गलती का पलड़ा हमेशा भारी रहता है।
खाद की मांग और आपूर्ति
खरीफ 2025 के लिए प्रदेश में कुल 36 लाख मी. टन से अधिक का उर्वरक वितरण लक्ष्य रखा गया है। इसमें मुख्यत: यूरिया 17.40 लाख मी. टन, एसएसपी 6.50, डीएपी 7.50 लाख मी. टन एवं एमओपी 5 हजार व 12:32:16 का 86 हजार मी. टन लक्ष्य शामिल है। चालू माह मई के लिए लगभग 2.50 लाख टन यूरिया एवं 1.50 लाख टन डीएपी की मांग की गई है।
खाद के लिए किसानों की लाईन
परन्तु दूसरी तरफ प्रदेश के कुछ जिलों में खाद के लिए किसानों ने लाईन लगाना शुरू कर दिया है। हाल ही में शिवपुरी, अशोक नगर जिले में टोकन के लिए, फिर खाद के लिए समितियों में लाईन लगने लगी है। किसान रात भर जागकर, अपनी जगह सुरक्षित करने के लिए पत्थर रखकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
सहकारिता केन्द्रित उर्वरक नीति भी अव्यवस्था के मूल में
प्रेक्षकों का मानना है कि मध्य प्रदेश सरकार की सहकारिता केन्द्रित उर्वरक विपणन नीति से फ़र्टिलाइज़र कंपनियां भी प्रदेश में माल लाने में रूचि नहीं ले रहीं हैं. फ़र्टिलाइज़र ट्रेड में मार्कफेड की लगभग मोनोपोली से निजी क्षेत्र का व्यापार सिकुड़ सा गया है l प्रदेश में डीएपी जैसी प्रमुख खाद 75 प्रतिशत सहकारी एवं 25 प्रतिशत निजी क्षेत्रों से विक्रय की जाती है इसके बावजूद किसानों को पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाती। जबकि यूरिया पूरे प्रदेश में 50-50 प्रतिशत के अनुपात में सहकारी एवं निजी क्षेत्र से विक्रय की जाती है। वहीं एमओपी काम्पलेक्स एवं एसएसपी सहकारी क्षेत्र में केवल गुना जिले में 60 प्रतिशत शेष जिलों में 55 प्रतिशत एवं निजी क्षेत्र के तहत गुना जिले में 40 प्रतिशत, शेष जिलों में 45 प्रतिशत बेची जाती है।
आगे की राह
अब देखना यह है कि शासन और प्रशासन किसानों की परेशानी को समझते हुए समय पर और पर्याप्त खाद की व्यवस्था कर पाते हैं या नहीं। किसानों को अपनी फसल के लिए खाद की आवश्यकता है, और उन्हें उम्मीद है कि उनकी समस्या का समाधान होगा।
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