जानिए इस वर्ष कितने हेक्टेयर में होगी मूंग की बुवाई
01 मार्च 2025, भोपाल: जानिए इस वर्ष कितने हेक्टेयर में होगी मूंग की बुवाई – मध्यप्रदेश के किसानों द्वारा अन्य खेती के साथ मूंग की भी खेती की जाती है। यदि ग्रीष्मकालीन फसलों की बात करें तो उड़द, मक्का और तिल व मूंगफली के साथ मूंग की भी खेती महत्वपूर्ण होती है लिहाजा फिलहाल राज्य के किसान रबी फसलों की कटाई के बाद इस मौमसी फसलों को उत्पादित कर रहे है क्योंकि खेत खाली पड़े हुए है।
इधर मध्य प्रदेश में पिछले कुछ सालों से ग्रीष्मकालीन ( जायद) फसलों की खेती का प्रचलन बढ़ा है। पिछले साल की तरह इस साल भी 11.50 लाख हेक्टेयर में जायद मूंग की बुवाई प्रस्तावित है। 2 लाख हेक्टेयर में अन्य जायद की फसलें बोयी जायेंगी। जायद मूंग किसानों के लिये वरदान और अभिशाप दोनों साबित हो रही है। दो महीने की फसल में कम लागत खर्च से किसानों को अच्छी आमदनी हो रही है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मूंग की खेती जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए अत्यधिक उपयोगी है। इसकी जड़ों में नत्रजन की ग्रंथियां होने से अगली फसल के लिये बहुत ही उपयोगी साबित होती है। किसानों को इस बात की समझाइश दिये जाने की अत्यधिक आवश्यकता है। कृषक प्रशिक्षण एवं कृषक संगोष्ठियों के माध्यम से किसानों को जागरूक किया जाना चाहिये। जायद मूंग की कटाई के पश्चात अवशेष को रसायनों से कतई न जलाएं बल्कि उसे खेत की मिट्टी में गहरी जुताई के माध्यम से मिलायें। जो किसान रसायनों के प्रयोग से खेतों को साफ करें उनके खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही की जानी चाहिये। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, जो किसान भाई जायद मूंग में अधिकाधिक उर्वरक एवं कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं उनके लिये मूंग अभिशाप साबित हो रही है। मूंग की फसल पकने के पश्चात पौधों को सुखाने के लिये जिसका प्रयोग किया जाता है वह अत्यधिक जहरीला एवं खतरनाक है। इसके दुष्प्रभाव से मिट्टी एवं पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। हवा, पानी इत्यादि को खतरनाक रसायन दूषित कर रहा है जो मनुष्य, पशु, पक्षी इत्यादि के लिये नुकसानदायक है। मूंग, ग्रीष्म और खरीफ में कम समय में पकने वाली मुख्य दलहनी फसल है।
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