खिरनी: देसी स्वाद, सेहत और स्वावलंबन का सजीव प्रतीक
20 जून 2025, भोपाल: खिरनी: देसी स्वाद, सेहत और स्वावलंबन का सजीव प्रतीक – कृषि महाविद्यालय, खंडवा में प्राकृतिक रूप से विकसित खिरनी के वृक्ष न केवल परिसर की हरियाली और जैव विविधता को समृद्ध कर रहे हैं, बल्कि स्थानीय फलवृक्षों के संरक्षण, पोषण सुरक्षा और पारंपरिक कृषि ज्ञान का भी सशक्त संदेश दे रहे हैं। यह देशज फलवृक्ष अब महाविद्यालय की गतिविधियों का अभिन्न अंग बन चुका है, जिसके माध्यम से ग्रामीण जीवन, खाद्य विविधता और परंपरागत ज्ञान को फिर से प्रासंगिक बनाया जा रहा है। जिसके माध्यम से स्वदेशी पौधों के महत्व, ग्रामीण जीवन से उनकी जुड़ाव और उनके बहुउपयोगी गुणोंको सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है। खिरनी जैसे वृक्ष न केवल प्राकृतिक संतुलन और पर्यावरण हितैषिता में सहायक हैं, बल्कि वे स्थानीय लोगों के लिए पोषण व आय के सरल स्रोत भी सिद्ध हो सकते हैं।

क्या है खिरनी?
महाविद्यालय के बागवानी विभाग के डॉ मनोज कुमार कुरील एवम डॉ स्मिता अग्रवाल ने बताया कि खिरनी एक देशी फलवृक्ष है, जिसका फल छोटा, पीला और स्वाद में मीठा होता है। गर्मी के मौसम में यह फल पकता है और इसमें स्वाभाविक मिठास, पोषक तत्व और ऊर्जा देने वाले गुण पाए जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे पारंपरिक फल के रूप में जाना जाता है, जहां बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक इसे पसंद करते हैं। कमज़ोर और कुपोषित बच्चों के लिए यह एक अच्छा प्राकृतिक विकल्प हो सकता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ महंगे फलों तक पहुँच नहीं है। इसके अलावा, खिरनी में एंटीऑक्सीडेंट गुण भी होते हैं, जो शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। कुछ स्थानों पर इसकी गुठली से तेल भी निकाला जाता है, जिसे परंपरागत औषधीय प्रयोगों में उपयोग किया जाता रहा है। निमाड़ क्षेत्र में खिरनी फल को रायन या “निमाड़ का मेवा” के नाम से जाना जाता है। यह मणिलकारा हेक्सेंड्रा वृक्ष का फल है, जिसे कभी-कभी खिरनी वृक्ष भी कहा जाता है। यह फल व्यावसायिक और औषधीय रूप से महत्वपूर्ण है, स्थानीय आबादी पारंपरिक रूप से इसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग करती है। खिरनी के पौधों को मूलव्रुंत (rootstock) के रुप में प्रयोग कर चीकू के पौधों का ग्रफ्तिंग (grafting) द्वारा व्यवसायिक प्रवर्धन किया जाता है.
सतत कृषि में खिरनी की भूमिका
महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ दीपक हरि रानडे ने जानकारी दी कि खिरनी जैसे वृक्ष सतत कृषि के सिद्धांतों पर खरे उतरते हैं। यह एक ऐसा फलवृक्ष है जो कम पानी में भी अच्छी तरह पनपता है, जिससे जल-संग्रह की दृष्टि से यह लाभकारी है। इसकी गहरी जड़ें मिट्टी की पकड़ को मजबूत करती हैं और मृदा अपरदन को रोकती हैं। रासायनिक खाद या कीटनाशकों की जरूरत बेहद कम होती है, जिससे पर्यावरणीय प्रदूषण नहीं होता। यह वृक्ष स्थानीय जैव विविधता (local biodiversity) को बढ़ावा देता है और आसपास की पक्षी एवं कीट प्रजातियों का आश्रय स्थल बनता है। इसके फल, पत्ते और गुठली तक उपयोगी होते हैं, जिससे ‘एक पेड़, कई उपयोग’ की अवधारणा को बल मिलता है। खिरनी को खेतों की मेड़ पर लगाया जा सकता है जिससे यह सीमांत किसान और छोटे कृषकों के लिए अतिरिक्त आय का साधन बन सकता है।
डॉ दीपक हरि रानडे ने बताया कि “खिरनी हमारे गांवों की पहचान रहा है। यह सिर्फ एक फलवृक्ष नहीं, बल्कि एक परंपरा, एक पोषण स्रोत और एक संभावित आय का साधन है। हमारा प्रयास है कि विद्यार्थियों को देशज पौधों के महत्व से जोड़ें और खिरनी जैसे फलवृक्षों को गांव-गांव तक फिर से पहुँचाएं।”
निष्कर्ष
आज जब हम विदेशी फलों और महंगे उत्पादों की ओर देख रहे हैं, तब खिरनी जैसे देसी फलवृक्ष हमें याद दिलाते हैं कि सेहत और आत्मनिर्भरता हमारे आसपास ही मौजूद हैं — ज़रूरत है उन्हें पहचानने, अपनाने और प्रचारित करने की। खंडवा कृषि महाविद्यालय की यह पहल परंपरा, प्रकृति और प्रगति का सुंदर संगम बनकर उभर रही है।
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