टीकमगढ़ के काँटी गांव ने दिखाई तरक्की की राह
राष्ट्रीय कृषि जलवायु परिवर्तन सहनशील नवाचार योजना
टीकमगढ़। कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़ द्वारा 2011-12 से ग्राम काँटी में चलायी जा रही परियोजना के जोनल मॉनिटरिंग कमेटी अवलोकन वैज्ञानिक दल द्वारा किया गया। दल की अध्यक्षता डॉ. सुधाकर नालम, अटारी, केंद्रीय शुष्क खेती अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद, डॉ. एस. आर. के. सिंह, नोडल अधिकारी, प्रधान वैज्ञानिक, अटारी, जबलपुर, डॉ. प्रदीप डे, प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल, डॉ. के. रविशंकर, प्रधान वैज्ञानिक, केंद्रीय शुष्क खेती अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद के दल के साथ कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की टीम में डॉ. आर.के.प्रजापति, वैज्ञानिक (पौध सरंक्षण), डॉ. एस.के. खरे, वैज्ञानिक (पशुपालन), डॉ.एस.के. सिंह (उद्यानिकी), डॉ. आई.डी. सिंह (मृदा विज्ञान), श्री राकेश साहू, प्रभारी एम.पी. एग्रो, आदि उपस्थित रहे।
गोबर गैस संयंत्र
जलवायु परिवर्तन पर सहनशील कृषि तकनीकों का प्रदर्शन करके कृषकों की आय दुगना करने के लक्ष्य को हासिल किया गया। गाँव में पशुओं की संख्या ज्यादा होने से पशुओं से उपलब्ध गोबर को गोबर-गैस संयंत्र में लगाया गया। लगभग 160 परिवार इसका लाभ ले रहे हैं तथा गोबर गैस के कई प्रकार के लाभ कृषकों की आमदनी को बढ़ा रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण और धुएं के कारण आँखों में होने वाले रोगों से निजात मिली, जिससे महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार हुआ। साथ ही गोबर गैस से प्राप्त खाद को खेत में डालने से सब्जियों की उपज बड़ी तथा रसायनिक खादों की खपत कम हुई।
उन्नत किस्में अपनाई
गत वर्षों में फसल उत्पादन में कम वर्षा में तिल, सरसों की उन्नत किस्में तथा सोयाबीन की कम अवधि एवं लम्बी अवधि की किस्में, उर्द में पीला रोग सहनशील किस्में, चने में उकठा अवरोधी, गेहूं में कम पानी की किस्मों का प्रदर्शन करके मौसम की प्रतिकूलता के बावजूद कृषकों ने अच्छी उपज प्राप्त की। गांव में बकरी पालकों में जमनापरी प्रजाति की बकरी फैलाई गयी,जो अधिक मांस और दूध के लिए होती है तथा मुर्रा भैंस की प्रजाति को बढ़ावा दिया गया, जिससे दूध उत्पादन बड़ा और डेयरी का गठन हुआ।
नवाचार
बुवाई पद्धतियों में सुधार के रूप में मेड़ और नाली/चौड़ी मेड़ नाली/कतार बुवाई को बढ़ाया गया। नरवाई जलाने पर रोक से गांव में मृदा की भौतिक दशा में सुधार हुआ, जल संरक्षण के लिए कुओं का गहरीकरण किया गया। मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के अलावा महिलाओं में कुपोषण दूर करने हेतु गृहवाटिका का प्रचार-प्रसार किया गया। काँटी गांव जिले में एक मॉडल गांव के रूप में विकसित किया गया। आज जिले के हजारों किसान वहां जाकर कृषि तकनीकियों को सीखते हैं। ग्राम के लगभग दस कृषक को राष्ट्र/ राज्य/जिला स्तर पर पुरष्कृत किया गया।