राज्य कृषि समाचार (State News)

चने की इल्ली का प्रकोप

7 जनवारी 2021, टीकमगढ़। चने की इल्ली का प्रकोप कृषि विज्ञान केन्द्र, टीकमगढ़ के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी. एस. किरार, डॉ. आर. के. प्रजापति, डॉ. एस. के. सिंह, डॉ. एस. के. खरे एवं जयपाल छिगाहरा द्वारा विगत दिवस क्षेत्र मे भ्रमण के दौरान फसल में चने की इल्ली (फली छेदक इल्ली) का प्रकोप देखा गया। इसके नियंत्रण के लिये प्रारंभिक अवस्था में इल्ली छोटी होने पर जैविक कीटनाशक विबेरिया बेसियान 400 मिली प्रति एकड़ या एन.पी.व्ही. 100 गिडार प्रति एकड़ 150-200 ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। इल्लियों की संख्या बढऩे पर इंडोक्साकार्ब 150 ग्राम या इमामेक्टिन बेन्जोएट 5 एस.जी. 80 ग्राम या प्रोफेनोफॉस 400 मिली प्रति एकड़ 200 ली. पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। कटुआ कीट दिन में ढेलों में छिपा रहता है और रात को पौधे को जमीन की सतह से काटकर नुकसान पहुचांता है। इसके नियंत्रण के लिये खड़ी फसल में डेल्टामेथ्रिन 2.8 ई.सी. 300 मिली या क्विनालफॉस 25 ई.सी. 400 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। वैज्ञानिकों ने किसानों को चना के प्रमुख उकठा, कालर रॉट, सूखा जड़ सडऩ, एस्कोकाइटा ब्लाइट, स्क्लेरोटीनिया ब्लाईट एवं ग्रे-मोल्ड आदि बीमारियों के लक्षण एवं प्रबंधन के बारे में भी विस्तार से बताया गया। चना की फसल में खुटाई के महत्व को भी समझाया गया। साथ ही चना में सरसों एवं गेहूं के पौधों को अलग करने की सलाह दी गयी।

Advertisements
Advertisement5
Advertisement