चारगांव करबल में फील्ड डे का आयोजन किया
किसानों ने ‘जीरो टिलेज’ की शपथ ली
08 अक्टूबर 2025, छिंदवाड़ा : चारगांव करबल में फील्ड डे का आयोजन किया – छिंदवाड़ा जिले के कृषि भविष्य को नया आयाम देने के उद्देश्य से, जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत ग्राम चारगांव करबल (मोहखेड़) जिला छिंदवाड़ा में एक ऐतिहासिक और सफल फील्ड डे का आयोजन किया गया। जिसमें ,बोरलॉग इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ डॉ.पंकज कुमार ओर श्री दीपेंद्र सिंह,आत्मा परियोजना से ब्लॉक टेक्नोलॉजी मैनेजर श्रीमती प्रिया करडे एवं असिस्टेंट टेक्नोलॉजी मैनेजर श्रीमती ज्योति अहिरवार सहित अनेक प्रगतिशील किसान उपस्थित थे । बता दें कि जिला कलेक्टर के निर्देशन एवं उपसंचालक कृषि श्री जितेन्द्र कुमार सिंह के नेतृत्व में, बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया (BISA) और कृषि विभाग छिंदवाड़ा के संयुक्त प्रयास से जिले के सैकड़ों किसानों को आधुनिक कृषि की तकनीक से सीधे जोड़ा गया। यह आयोजन सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि किसानों की आय में वृद्धि और मिट्टी के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने वाला एक स्पष्ट रोडमैप साबित हुआ।
डीएसआर तकनीक से ₹7000 प्रति एकड़ की सीधी बचत – फील्ड डे का मुख्य आकर्षण किसान श्री रघुवर भादे के खेत पर DSR (धान की सीधी बिजाई) पद्धति से तैयार धान की लहलहाती फसल का अवलोकन रहा। किसानों ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि DSR को अपनाने से पारंपरिक रोपाई विधि की तुलना में प्रति एकड़ ₹7000 तक की सीधी बचत हो रही है। विशेषज्ञों ने पुष्टि की कि इस तकनीक से पानी की 25-30% तक की भारी बचत हुई और रोपाई की मजदूरी का खर्च शून्य हो गया। किसानों ने इसे अपनी आय बढ़ाने की ‘संजीवनी’ बताया, जिससे रबी सीजन की तैयारी भी समय पर संभव हो पाई है। डॉ.पंकज कुमार ओर श्री दीपेंद्र सिंह ने किसानों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच सफल खेती के लिए बहुआयामी एवं वैज्ञानिक ‘पंच-शक्ति’ मंत्रों से सशक्त किया।
डीएसआर पद्धति के लाभ : डीएसआर से पानी और श्रम की लागत में भारी कटौती होती है । फसल विविधीकरण जोखिम कम करने, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और कीट-बीमारियों का प्रकोप घटाने का अचूक फॉर्मूला है। रेज्ड-बेड तकनीक से मक्का जैसी फसलों में जलभराव की समस्या का स्थायी समाधान, जो पौधों की जड़ों को मजबूती देता है। उर्वरक के उपयोग में सटीकता हेतु 4R पोषक तत्व प्रबंधन (Right Source, Right Rate, Right Time, Right Place) पैसे और मिट्टी दोनों को बचाता है । नरवाई प्रबंधन के तहत खेत को स्वस्थ रखने और पर्यावरण को बचाने के लिए नरवाई (पराली) को खेत में ही मिलाना है ।
तकनीकी प्रशिक्षण पर विशेष जोर – श्री सिंह ने जीरो टिलेज सीड-कम-फर्टी ड्रिल मशीन के विस्तृत उपयोग की जानकारी देते हुए स्पष्ट किया कि यह मशीन बुवाई पर आने वाली जुताई की लागत को पूरी तरह समाप्त कर देती है, जिससे किसानों के उत्पादन लागत में 20-25% की सीधी कमी आती है। इसके अलावा, किसानों को एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) और एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (INM) की सलाह दी गई, ताकि रासायनिक दवाओं पर निर्भरता घटे और मिट्टी का संतुलन बना रहे। रबी सीजन की सिंचाई पद्धतियों और प्रभावी खरपतवार प्रबंधन के वैज्ञानिक तरीकों पर भी विस्तृत जानकारी साझा की गई।
महत्वपूर्ण निर्देश और सामूहिक संकल्प- श्री दीपेन्द्र सिंह ने रबी सीजन की तैयारी पर जोर देते हुए कहा कि गेहूं की बुवाई जीरो टिलेज मशीन से ही समय पर की जाए। उन्होंने आग्रह किया कि किसान केवल जलवायु अनुकूल किस्मों की ही बुवाई करें, जो छिंदवाड़ा क्षेत्र की जलवायु के लिए सर्वोत्तम सिद्ध हुई हैं।सामूहिक शपथ के साथ किसानों ने एक स्वर में ‘ हम नरवाई नहीं जलाएंगे, और जीरो टिलेज तकनीक से खेती करेंगे।” का संकल्प लिया। यह ऐतिहासिक फील्ड डे इस बात का प्रमाण है कि छिंदवाड़ा के किसान अब कम लागत – अधिक उत्पादन – स्वस्थ धरती के सिद्धांत पर चलकर अपनी खेती को एक नई और टिकाऊ दिशा देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
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