राज्य कृषि समाचार (State News)

देपालपुर तहसील में अंकुरण के बाद सोयाबीन मुरझाने की शिकायत

03 जुलाई 2025, (शैलैष ठाकुर, देपालपुर): देपालपुर तहसील में अंकुरण के बाद सोयाबीन मुरझाने की शिकायत – देपालपुर तहसील के कई गांवों में अंकुरण के बाद  सोयाबीन मुरझाने की शिकायत सामने आई है। प्रभावित गांवों चांदेर, बैंगंदा ,खड़ी, बरोदा ,कलमेर,पेमलपुर, कटकोदा ओर बिरगोदा और खिमलावदा के किसानों का इतना नुकसान हुआ है कि उन्हें फिर से बोनी करनी पड़ रही है। कृषि वैज्ञानिकों ने खेतों का मुआयना कर उचित मार्गदर्शन दिया है। किसानों ने फसल बीमा कंपनी के प्रतिनिधि से मुआवजे की मांग की है।

चांदेर के श्री रामनिवास चौहान, श्री रामनिवास उमट, श्री सोनू पंडित, छोटी कलमेर के श्री मनीष परमार, बिरगोदा के श्री राम सिंह ठाकुर, श्री विजेंद्र ठाकुर और  श्री करतार सिसोदिया ने कृषक जगत को बताया कि कई गांव में सोयाबीन फसल अंकुरित  होने के बाद मुरझा रही है। कई  खेत खराब हुए हैं। इन किसानों ने बताया कि महंगे और ऊंचे ब्रांड के प्रोडक्ट से सोयाबीन बीज उपचारित करके बोया था। इसके बाद भी सोयाबीन की फसल खराब हुई और दूसरी बार बोनी करनी पड़ रही है। ऐसे में जो नामी कंपनियां दावा करती हैं कि उनके उत्पाद से बीज में फंगस नहीं लगेगा और कीट नुकसान नहीं पहुंचाएंगे , खोखला साबित हो रहा है।  किसानों का कहना है कि दोबारा बोनी करने में जोखिम  बढ़ जाती है। ज़्यादा बारिश के साथ ही ज़मीन का  तापमान भी कम हो जाता है। किसानों ने फसल बीमा कंपनी के प्रतिनिधि से मुआवजे की मांग की है।

कृषि अधिकारी और  वैज्ञानिकों ने किया निरीक्षण – बड़ी संख्या में सामने आई किसानों की इस समस्या को देखते हुए राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान केंद्र इंदौर के डॉ. श्री संजीव कुमार एवं कृषि विज्ञान केंद्र इंदौर के एग्रोनॉमिस्ट डॉ. श्रीअरुण कुमार शुक्ला,अनुविभागीय कृषि अधिकारी श्री शोभाराम  इस्के , वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी श्री जितेंद्र चारेल, कृषि विस्तार अधिकारी सुश्री कृतिका चौहान और सोनम तिवारी एवं फसल बीमा कंपनी प्रतिनिधि श्री जितेंद्र  डुडवे  की  टीम ने गत दिनों चांदेर, पेमलपुर, खजराया, बेगन्दा, छोटी कलमेर, खड़ी, कटकोदा और खिमलावदा गांवों का निरीक्षण किया। डॉ. कुमार ने बताया कि लगभग 15-20 प्रतिशत फसल हानि सामान्य मानी जाती है। किसानों को घबराने की आवश्यकता नहीं है, वे 15 जुलाई तक फिर से बुवाई कर सकते हैं। इसके अलावा ज्वार, मक्का और बाजरा जैसी फसलें भी विकल्प के तौर पर बोई जा सकती हैं। वहीं श्री जितेंद्र चारेल, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, विकासखंड देपालपुर ने बताया  कि हम सतत निगरानी कर रहे  हैं।  यह डंपिंग ऑफ बीमारी है , जो ज्यादा नमी और फंगस के कारण हो रही है। जहां ज्यादा नुकसान  हुआ है  वहां फिर से बुवाई करनी पड़ेगी और जहां कंट्रोल हो सकता है वहां हमने कार्बेंडाजिम मैंकोजेब का स्प्रे करने  की सलाह दी है।

एग्रोनॉमिस्ट श्री  शुक्ला का कथन – एग्रोनॉमिस्ट श्री शुक्ला ने कृषक जगत को बताया  कि सोयाबीन फसल जिसमें नवजात पौधों में जड़ गलन की समस्या दिख रही है। यह एक आम बीमारी है। विभिन्न फंगल रोग जनकों के कारण होती है ,जिसमें पायथियम, फाइटोफ्थोरा और राइजोक्टोनिया शामिल है जिसमे बीज सड़ना, अंकुर निकलने से पहले या बाद में पौधों का मरना और सड़ना होता है एवं नवजात पौधों के निचले तने पर लाल, भूरे या धंसे हुए कैंकर के लक्षण भी प्रतीत होते  हैं । यह बीमारी विशेष रूप से ठण्डी, गीली मिट्टी की स्थितियों में ज्यादा  होती  है एवं जो बीज देर से मिट्टी से बाहर आते  हैं  वो ज्यादा प्रभावित होते हैं। जैसा  कि  हमें किसानों के खेतों में भी देखने को  मिला है।हमने कृषकों से इस संदर्भ में विभिन्न ग्रामों में बातचीत भी की एवं कृषकों के साथ खेतों में जाकर मुआयना भी किया। साथ ही आवश्यक सलाह भी दी कि अगर 20 से 30 प्रतिशत पौधे खराब भी होते  हैं तो दोबारा बुवाई करने की जरूरत नहीं है। अगर 40 या इससे ज्यादा प्रतिशत में अंकुरण प्रभावित है तो आप पुनः बुवाई करें  साथ ही बीज को उपचारित करके ही  लगाएं ।आप 15 जुलाई तक सोयाबीन लगा सकते हैं । साथ ही विकल्प के रूप में मूंग, उड़द, मक्का एवं बाजरा जैसी फसल भी अपना सकते  हैं । साथ ही खेतों में 8-10  फीट  के बाद चौड़ी नाली भी  बनाएं  जिससे पानी का जमाव खेतों पर न हो। कृषि विभाग के अधिकारियों ने आश्वस्त किया है  कि जहां दोबारा बुवाई की आवश्यकता है, वहां तकनीकी मार्गदर्शन के साथ बीज और सहायता उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा।

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