राज्य कृषि समाचार (State News)

छत्तीसगढ़: जैविक खेती से ग्रामीण महिलाओं ने बदली तकदीर, बन रहीं आत्मनिर्भर

05 मई 2025, रायपुर: छत्तीसगढ़: जैविक खेती से ग्रामीण महिलाओं ने बदली तकदीर, बन रहीं आत्मनिर्भर – छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के छोटे से गांव केशगंवा की 20 महिलाएं आज जैविक खेती के जरिए आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिख रही हैं। ये महिलाएं, जो कभी घर की चारदीवारी तक सीमित थीं, अब अपने खेतों में लौकी, करेला, मिर्ची और टमाटर जैसी सब्जियों की जैविक खेती कर न केवल अपनी पहचान बना रही हैं, बल्कि परिवार की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर रही हैं।

स्व-सहायता समूहों के जरिए इन महिलाओं ने उद्यानिकी विभाग और जिला प्रशासन के सहयोग से 50-50 डिसमिल जमीन पर लौकी और करेला, साथ ही एक-एक एकड़ में मिर्ची और टमाटर की खेती शुरू की है। रासायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त ये फसलें पर्यावरण के लिए सुरक्षित होने के साथ-साथ स्वाद और पोषण में भी बेहतर हैं।

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मेहनत का फल: खेत से बाजार तक

इन महिलाओं की मेहनत अब रंग ला रही है। वे अपनी फसलें स्थानीय थोक मंडियों और फुटकर विक्रेताओं को बेचकर नियमित आय कमा रही हैं। अब तक उन्होंने 15-15 क्विंटल लौकी और करेला बेचा है, जिससे 35 हजार रुपये की कमाई हुई है। एक महिला किसान ने बताया, “पहले हम सिर्फ घर संभालते थे, लेकिन अब खेत हमारी ताकत बन गए हैं। हमारी फसलें गांव की हर रसोई तक पहुंच रही हैं।”

जैविक खेती को मिला सहारा

उद्यानिकी विभाग के अधिकारी विनय त्रिपाठी ने बताया कि इन स्व-सहायता समूहों को 1690 हाइब्रिड पौधों के साथ-साथ फेंसिंग, मल्चिंग, ड्रिप सिस्टम, जैविक खाद और दवाइयां मुहैया कराई गई हैं। उन्होंने कहा, “इस पहल ने न सिर्फ महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ाया है, बल्कि उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है।”

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प्रशासन की भूमिका

कोरिया जिले की कलेक्टर चंदन त्रिपाठी ने इस पहल की शुरुआत में अहम भूमिका निभाई। खेतों का दौरा करने के बाद उन्होंने कहा, “जैविक खेती महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि प्रशासन ग्रामीण महिलाओं को रोजगार और आय के अवसर देने के लिए प्रतिबद्ध है।

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पर्यावरण और आजीविका का संगम

यह पहल सिर्फ आर्थिक आत्मनिर्भरता तक सीमित नहीं है। जैविक खेती के जरिए ये महिलाएं पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दे रही हैं। बिना रासायनिक खाद के उगाई गई सब्जियां न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी बनाए रखती हैं। एक महिला किसान ने गर्व से कहा, “अब हम खुद को किसान कहती हैं। हमारी मेहनत से न सिर्फ हमारा घर चल रहा है, बल्कि गांव का नाम भी रोशन हो रहा है।”

चुनौतियां और उम्मीदें

हालांकि, जैविक खेती का रास्ता आसान नहीं है। बाजार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है, लेकिन उचित दाम और नियमित खरीदार ढूंढना अभी भी चुनौती बना हुआ है। फिर भी, इन महिलाओं का हौसला कम नहीं हुआ है। वे उम्मीद करती हैं कि भविष्य में और अधिक संसाधन और प्रशिक्षण मिलने से उनकी कमाई और बढ़ेगी।

छत्तीसगढ़ के इस छोटे से गांव की ये महिलाएं साबित कर रही हैं कि मेहनत और सही दिशा मिले तो कोई भी अपने सपनों को हकीकत में बदल सकता है। उनकी यह कहानी न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि ग्रामीण भारत के बदलते चेहरे की झलक भी दिखाती है।

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