राज्य कृषि समाचार (State News)

केन-बेतवा लिंक परियोजना से खुशहाल होगा बुंदेलखण्ड : श्री चौहान

प्रधानमंत्री ने जल शक्ति अभियान- कैच द रेन का किया शुभारंभ

03 अप्रैल 2021, भोपाल । केन-बेतवा लिंक परियोजना से खुशहाल होगा बुंदेलखण्ड : श्री चौहान – प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि कैच द रेन अभियान की शुरूआत पर केन-बेतवा लिंक राष्ट्रीय परियोजना के लिए नया कदम उठाया गया है। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सपने को साकार करने के लिए यह समझौता हुआ है। प्रधानमंत्री श्री मोदी विश्व जल दिवस पर जल शक्ति अभियान- कैच द रेन का वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शुभारंभ कर रहे थे। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान कार्यक्रम में मंत्रालय, भोपाल से वर्चुअली शामिल हुए।

राष्ट्रीय परियोजना के लिए त्रि-पक्षीय अनुबंध पर मुख्यमंत्री ने किये हस्ताक्षर

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने केन-बेतवा लिंक राष्ट्रीय परियोजना के लिए केन्द्र सरकार, उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश के बीच हुए त्रि-पक्षीय अनुबंध पर हस्ताक्षर किये।

Advertisement
Advertisement
8 लाख 11 हजार हेक्टेयर में होगी सिंचाई

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि आज का दिन मध्यप्रदेश और विशेषकर बुंदेलखण्ड के लिए एक सपने के साकार होने के समान है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि इस परियोजना से मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र के नौ जिलों में 8 लाख 11 हजार हेक्टयर असिंचित क्षेत्र में सिंचाई का लाभ मिलेगा। वर्ष 2017-18 के अनुमान के अनुसार परियोजना की लागत लगभग 35 हजार 111 करोड़ रूपये थी, जिसका वर्तमान मूल्य कहीं अधिक है। कुल लागत का 90 प्रतिशत केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जायेगा। मात्र दस प्रतिशत राज्यों को व्यय करना है। यह परियोजना बुंदेलखण्ड में जन क्रांति लायेगी।

नदियों को जोडऩे के 30 लिंक चिन्हित

केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि देश में नदियों को आपस में जोडऩे के 30 लिंक चिंहित किये गये हैं। इनमें सर्वप्रथम केन-बेतवा लिंक का क्रियान्वयन आरंभ हो रहा है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कैच द रेन व्हेयर इट फाल्स एण्ड व्हेन इट फाल्स का मंत्र दिया है। इस मंत्र के पालन में जन-सहभागिता से देश में जल क्रांति का सूत्रपात होगा।

Advertisement8
Advertisement

नहीं है जल, तो न लें फसल

  • सुनील गंगराड़े

पूरे एशिया मध्य पूर्व अफ्रीका के शुष्क क्षेत्रों में किसानों की जंग जल संकट और जलवायु परिवर्तन के साथ तेज हो चली है, वर्षा की अनियमितता मीठे पानी की आपूर्ति में कमी तेजी से वाष्पीकरण होता जल, तापमान में तेजी से कृषि उत्पादन और किसानों की आमदनी पर नेगेटिव इम्पैक्ट याने घाटे का सौदा हो जाती है खेती। विश्व जल दिवस पर खेती से जुड़े कुछ अनुत्तरित सवालों के मूल कारणों की पड़ताल करता यह आलेख –

Advertisement8
Advertisement

बीती 22 मार्च को विश्व जल दिवस पूरी दुनिया में पंरपरागत तरीके से मनाया गया। जल के प्रभावी संरक्षण, सहेजने की बात हर मंच से उठी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी देश में वर्षा के पानी की बर्बादी का जिक्र करते हुये चिंता जताई। उन्होनें देशवासियों को चेताया कि हमारे पूर्वज हमारे लिय जल छोड़कर गये हैं, हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम आने वाली पीढिय़ों के लिये इसको बचायें। प्रधानमंत्री के मशवरे के मुताबिक देश को पानी के संकट से बचाने के लिये वर्षा जल को भी सहेजना होगा। तभी भूजल पर देश की निर्भरता कम होगी। इस वर्ष 30 नवम्बर तक वर्षा जल संचयन अभियान याने ‘कैच द रैन’ मुहिम चलेगी। याने जहां भी गिरे, जब भी गिरे, वर्षा का पानी इक_ा करें।

भारत में जल समस्या शेष विश्व के मुकाबले वाकई में गंभीर होती जा रही है। विश्व की कुल आबादी साढ़े सात अरब से अधिक में भारत की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत याने 1 अरब 30 करोड़ से अधिक है। पूरे विश्व का केवल 4 प्रतिशत जल भारत में है, जो लगभग 85 से 90 प्रतिशत खेती में ही खर्च हो जाता है। वहीं भारत का 54 प्रतिशत क्षेत्र जल की भीषण कमी से ग्रस्त है। यदि हम खेत में जल संरक्षण की विभिन्न तकनीक प्रयोग से 10 प्रतिशत भी बचा पाये तो बड़ी बचत होगी। एक अध्ययन के मुताबिक चीन, ब्राजील, यूएसए, की तुलना में भारत में फसल उत्पादन में दुगना- तिगुना सिंचाई जल का व्यय होता है, जो बच सकता है। वहीं चीन, अमेरिका द्वारा जितना भूजल दोहन किया जाता है, उससे कहीं अधिक मात्रा में भारत में जमीन से पानी उलीच लिया जाता है। भारत के किसान अधिकांशत: फ्लड इरीगेशन याने बाढ़ सी सिंचाई करते है, जिससे पानी की अधिक बर्बादी होती है। भारत की पानी पियू फसलें गन्ना, धान लगभग 60 प्रतिशत सिंचाई जल गटक जाती हैं।

इस तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि भारत में फूड सिक्योरिटी याने खाद्यान्न सुरक्षा को बनाये रखने के लिये फसल उत्पादकता, उत्पादन, क्षेत्रफल में निरन्तर बढ़ौत्री हो रही है। किसानों की आमदनी दुगनी करने की कोशिश, कृषि विभाग के बुबाई के आंकड़े ऊपर करने के प्रयास, उर्वरक खपत को बढ़ाने के तरीकों पर जोर, बोरवेल कंपनियां, सबमर्सिबल पंप वाले एमएसपी पर खरीदी के लक्ष्य में बढ़ौत्री सब अपना टारगेट बढ़ा रहे हंै और वही परिणाम में भूजल खर्च भी बढ़ेगा।

परन्तु अब इन विषय परिस्थितियों पर गंभीरता से सभी स्टेक होल्डर्स को चिंतन करने का समय आ गया है। हमारे खानपान की आदतें, जीवन शैली में परिवर्तन होता जा रहा है। देश में आवश्यकता से तीन गुना अधिक खाद्यान्न भंडारण है। किस प्रकार की खाद्यान्न सुरक्षा अब चाहिये।

भंडार में रखे अनाज की बर्बादी हो रही है, भूजल क्षरण, जल की अधिक खपत और भावी पीढ़ी पर आसन्न संकट। केन्द्र सरकार के राष्ट्रीय जल मिशन ने किसानों को जागरूक करने के लिये सही फसल लगाने का अभियान भी शुरू किया था। परन्तु ये जागरूकता अभियान देश की कृषक आबादी क्षेत्रफल, विविधता को देखते हुये रस्म अदायगी मात्र ही रहा। जल संरक्षण पर देश के कृषि विश्व विद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, राज्यों के कृषि विभाग सतत अभियान चलाएं, फसल विविधता का संदेश दे, कम पानी वाली फसलें, किस्में विकसित हों। किसान भाई भी जागरूक हों, स्प्रिंकलर, ड्रिप, माइक्रो स्प्रिंकलर का उपयोग हो, तभी जल का किफायती उपयोग हो पायेगा। और हम आने वाली पीढ़ी को ये वसुंधरा हरी-भरी जलभरी सौंप पायेंगे।

Advertisement8
Advertisement

Advertisements
Advertisement5
Advertisement