अन्नदाताओं को ही तैयार करना होगा रसायनिक उर्वरकों का विकल्प
- उमेश कुमार शर्मा
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, मप्र पुलिस
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मो.: 9425921122
25 जून 2021, भोपाल । अन्नदाताओं को ही तैयार करना होगा रसायनिक उर्वरकों का विकल्प – हाल ही के दिनों में देश की उर्वरकों उत्पादक कंपनियों द्वारा डाई अमोनियम फास्फेट (डी.ए.पी.) का मूल्य रूपये 1200 से 1900 रूपये किये जाने पर देश के कृषकों एवं विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा विरोध की आशंका को महसूस करते हुये भारत सरकार ने डी.ए.पी. की प्रति बोरी कृषकों को 1200 रूपये में यथावत मिलती रहे इसकी तुरंत व्यवस्था करते हुये उर्वरक उत्पादकों को 500 रूपये के अतिरिक्तं 700 रूपये प्रति बोरी सब्सिडी किये जाने का प्रावधान कर दिया गया इस प्रकार प्रति बोरी 1200 रूपये सब्सिडी करने पर खरीफ सीजन 2021 हेतु सरकार ने उर्वरक सब्सिडी 14775 करोड़ का अतिरिक्ती प्रावधान कर दिया है तथा रबी सीजन में भी इतना ही सब्सिडी का अतिरिक्ती बोझ आने की संभावना है वित्तीय वर्ष 2021-22 में उर्वरकों पर सब्सिडी हेतु भारत सरकार ने 79500 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है ऐसी स्थिति में सरकार के खजाने पर लगभग एक लाख करोड़ से अधिक का अनुमानित व्यय प्रतिवर्ष आवेगा । उर्वरकों सब्सिडी पर व्यय की जाने वाली राशि खाद्य सुरक्षा पर व्यय राशि के बाद दूसरी सबसे बड़ी बजट राशि है।
भारत रसायनिक उर्वरकों का उपयोग करने वाला दूसरा देश है तथा प्रतिवर्ष 500 लाख टन रसायनिक उर्वरकों का उपयोग हमारे देश में हो रहा है संसद की स्थातई समिति ने रसायनिक उर्वरकों के विवेकपूर्व उपयोग करने की सलाह दी है देश रसायनिक उर्वरकों के उत्पाादन में आत्मपनिर्भर नहीं है अभी भी देश को अपनी मांग पूरी करने हेतु खाड़ी देशों से उर्वरक आयात करना होता है वित्तीय वर्ष 2019-20 में देश ने 528 विलीयन रूपये उर्वरकों के आयात पर व्यय किये हैं रसायन एवं उर्वरक मंत्री, भारत सरकार द्वारा दिनांक 09 मार्च 2021 को लोकसभा में दिये जवाब के अनुसार माह फरवरी 2021 तक 98.28 लाख टन यूरिया, 47.80 लाख टन डी.ए.पी., 40.70 लाख टन म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा 12.99 लाख टन एनपीके आयात किया जा चुका है ।
आधुनिक खेती में रसायनिक उर्वरक मुख्य घटकों में एक है आधुनिक खेती के परिणाम स्वरूप ही हमारे देश की मृदा लगातार सख्त होती जा रही है तथा मृदा में जीवांश एवं कार्बन की मात्रा भी कम हो रही है कई राज्यों की मृदा रसायनिक उर्वरकों के अविवेकपूर्ण उपयोग के कारण क्षारीय अथवा अम्लीय होकर ऊसर होती जा रही है जबकि देश में सन् 1967 में हरित क्रांति के आगमन के उपरांत आधुनिक खेती की उम्र महज 53 वर्ष हुई है जबकि हरित क्रांति के पूर्व आदिकाल अर्थात लगभग 10,000 वर्ष से की जा रही खेती के परिणाम स्वरूप मृदा के स्वाूस्य््थ में गिरावट एवं जीवांश की कमी महसूस नहीं हुई। देश में रसायनिक उर्वरकों के प्रतिवर्ष से कई गुना अधिक फार्म वेस्ट फसल अवशेष एवं गोबर पैदा हो रहा है जिसमें आग लगाई जा रही है अथवा खुले में फेंका जा रहा है दोनों ही कारण पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन के लिये जिम्मे दार हैं देश के कई प्रान्तों में फूड चेन के माध्यम से रसायनिक उर्वरकों के अवशेष मानवीय शरीर में प्रवेश होने से कई प्रकार की घातक बीमारियां देखी जा रही है तथा रसायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से जलीय जीव एवं जन्तु का भी जीवन में संकटमय हो गया है।
देश में स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे सामाजिक विकास के सूचकांक की दयनीय स्थिति है तथा सुरक्षा हेतु भी भारी भरकम राशि की आवश्यकता है इन सब परिस्थितियों पर विचार करते हुये देश कि कृषि नीति निर्माताओं को रसायनिक उर्वरकों के विकल्प के तौर पर राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र गाजियाबाद द्वारा तैयार डिकम्पोसजर किट को बढ़ावा देते हुये किसान बन्धु स्व यं ही अपने खेत पर फास्फोओरस रिच आर्गेनिक मेन्योर तैयार कर सकें यह ध्यान में रखते कृषकों को सीधे सब्सिडी का लाभ एक एकड़ हेतु 600 रूपये नगद अथवा फास्फोरस रिच आर्गेनिक मेन्योर तैयार करने में आवश्याक घटक जैसे एनसीओ एफ डिकम्पोजर किट एवं 20 किलो राक फास्फेट आदि उपलब्ध कराये जावे। ऐसा करने पर वर्तमान में उर्वरक उत्पादकों को दी जा रही सब्सिडी के आधे के बराबर अर्थात् 600 रूपये अदा करने के प्रावधान करने पर भी देश की 50,000 करोड़ अनुमानित राशि बचाई जा सकती है साथ ही निम्न लाभ अतिरिक्त रूप से प्राप्त होंगे ।
- मृदा स्वास्थ्य चिर स्थायी बना रहेगा अम्लीय तथा क्षारीय मृदा में लगातार परिवर्तित मृदा की समस्या से मुक्ति मिल सकेगी। कृषि योग्यन उपयोगी भूमि कम नहीं होगी।
- खेती की लागत में लगभग पचास प्रतिशत की बचत होगी। द्य मृदा में कार्बन एवं जीवांश की मात्रा बढ़ेगी फलस्वरूप मृदा की जुताई आदि में ऊर्जा की कम खपत होगी इस प्रकार डीजल आदि की बचत हो सकेगी। द्य पशुओं का संरक्षण होगा वर्तमान समय में दूध न देने वाले पशुओं को जिस प्रकार आवारा छोड़ दिया जाता है यह नियंत्रित होगा। किसान बन्धु ड्राई पशु को भी गोबर एवं मूत्र के लिये पालेंगे। द्य फसलों के अवशेषों को नष्ट करने के लिए खेत में कृषकों द्वारा आग लगाने के कारण हो रहे प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी।
- मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ेगी। फसलों की जल मांग में कमी होने से सिंचाई में प्रयुक्त होने वाले जल की बचत होगी परिणाम स्वलरूप जल संकट से भी राहत मिलेगी ।
- खेती में विद्यमान प्रछन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment ) में कमी होगी ।
- कृषकों में उद्यमीकरण की भावना विकसित होगी युवा कृषकों को ग्रामीण स्तर पर रोजगार सृजित होंगे ।
- रसायनिक उर्वरकों के उपयोग से पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य को हो रही लगातार हानि से बचाया जा सकता है।
- रसायनिक उर्वरकों के उत्पाादन एवं परिवहन आदि से हो रहे प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी तथा उनके संग्रहण अथवा प्राप्त करने में कृषकों की नष्ट हो रही ऊर्जा एवं समय को बचाया जा सकता है ।
अब हमें यहां यह समझने की आवश्यकता है कि आखिर फास्फोारस रिच आर्गेनिक मेन्योर क्या है। फास्फोरस रिच आर्गेनिक मेन्योर फसल के अवशेषों, वानस्पितक कूड़ा-करकट, गोबर एवं राक फास्फेट के मिश्रण में राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र गाजियाबाद द्वारा विकसित डिकम्पोजर किट को दो किलो गुड़ एवं 200 लीटर का पानी के घोल में मिलाकर इस घोल को फसल के अवशेषों, वानस्पतिक कूड़ा-करकट, गोबर के मिश्रण में मिला देने पर तीस दिन में बेहतरीन फास्फोरस युक्त खाद तैयार होता है। इस प्रकार तैयार किये जाने वाले में फास्फोरस की मात्रा बढ़ाने के लिये राक फास्फेट भी मिलाया जा सकता है इस प्रकार तैयार होने वाला खाद फास्फोरस रिच आर्गेनिक मेन्योर कहलाता है । इस मेन्योर में फास्फोरस की प्रचुरता के साथ-साथ मृदा के लिये आवश्यक अन्य मैक्रो एवं माइक्रो तत्व भी उपलब्ध होते हैं। कृषक बन्धु अपने फार्म स्तर पर इसे तैयार कर सकते हैं जिसकी लागत लगभग रूपये 500 प्रति क्विंटल आती है।
मेन्योर का उपयोग डी.ए.पी. के विकल्प के तौर पर किया जा सकता है। देश के प्रत्येक जिले में कृषि विज्ञान केन्द्र स्थित हैं उन्हें डिकम्पोजर किट तैयार करने एवं फास्फोरस रिच आर्गेनिक मेन्योर तैयार करने के प्रशिक्षण की जिम्मेदारी दी जा सकती है इस प्रकार खेती की दिशा में लिये जाने वाला कदम क्रांतिकारी साबित होगा जो जैविक खेती के रकबे को बढ़ाने में सशक्त एवं प्रभावी कदम होगा जिससे मृदा स्वास्थ्य बना रहेगा, कृषि लागत में कमी होगी, उद्यमिता कौशल को बढ़ावा मिलेगा, फसल अवशेषों में आग लगाने से बढ़ रहे प्रदूषण एवं वनों के नष्टीकरण आदि से मुक्ति मिलेगी तथा पोषक तत्वों से भरपूर खाद्यान्न उत्पादन होगा। साथ ही इस कदम से बचत हुई राशि का देश की सुरक्षा को मजबूत करने तथा स्वास्थ्य एवं शिक्षा के विस्तार हेतु संस्थागत ढांचा विकसित करने में उपयोग किया जा सकेगा तथा कार्बन उत्सर्जन की मात्रा कम कर जलवायु परिवर्तन की दिशा में अहम भूमिका अदा कर दुनिया को एक दिशा दे सकता है तथा देश उर्वरकों की आवश्यकता की पूर्ति के लिये किसी देश पर निर्भर नहीं रहेगा और हम फसलों के पोषक तत्वों की उपलब्धता में आत्मनिर्भर बन सकेंगे।