मूंग उत्पादन की उन्नत तकनीक
डा. विकास जैन एवं डा. आशीष शर्मा, कृषि महाविद्यालय पवारखेड़ा
21 मार्च 2023, भोपाल: मूंग उत्पादन की उन्नत तकनीक – मध्य प्रदेश में मूंग ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम की मध्यम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है| इसमें 24-26 % प्रोटीन, 55-60% कार्बोहाईड्रेट एवं 13% वसा होता है| दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ों में उपस्थित गांठे वायुमंडलीय नत्रजन का मृदा में स्थिरीकरण (38-40 कि ग्रा नत्रजन /हे) करती है एवं कटाई पश्चात् लगभग 1.5 टन/हे जैविक पदार्थ पत्तियों व जड़ों के रूप में छोड़ती है जिससे मृदा में जीवांश कार्बन की मात्रा बनी रहती है| मनुष्य के संतुलित आहार में प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्थान है| मूंग की दाल में उच्च गुणवत्ता का सुपाच्य प्रोटीन पाया जाता है| अतः इसकी दल स्वस्थ मनुष्यों के साथ साथ रोगियों के लिए भी अत्यंत लाभकारी है| मूंग का उत्पादन म.प्र. में लगभग 2.95 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ व जायद फसल के रूप में होता है| होशंगाबाद जिले में लगभग 33,000 हेक्टेयर क्षेत्र में मूंग लगे जाती है | अतः किसान भाई उन्नत प्रजातियों एवं उत्पादन की उन्नत तकनीक को अपनाकर ज्यादा से ज्यादा लाभ कम सकते हैं |
ग्रीष्म मूंग उगाने के फायदे:
- यह खरपतवारों को नियंत्रित करती है और गर्मियों में हवा के कटाव को रोकती है।
- फसल पर कीट एवं रोगों का आक्रमण बहुत कम होता है
- फसल/किस्में परिपक्व होने में कम समय लेती हैं (60-65 दिन)
- बदले में, यह राइजोबियम फिक्सेशन के माध्यम से कम से कम 30-50 किग्रा उपलब्ध नाइट्रोजन / हेक्टेयर जोड़ता है जिसे अगली खरीफ मौसम की फसल में उर्वरकों को देते समय समायोजित किया जा सकता है।
- फसल सघनता बढ़ जाती है।
- खरीफ मौसम के दौरान उगाई जाने वाली अनाज की फसल को छोडे बिना दलहन के तहत क्षेत्र और उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
- आलू, गेहूं और सर्दियों के मक्का जैसी भारी उर्वरक माँग वाली फसलों के बाद उगाए जाने पर यह मिट्टी की अवशिष्ट उर्वरता का उपयोग करता है।
जलवायु
मूंग के लिए नम एवं गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है | इसकी खेती वर्षा ऋतु (खरीफ) एवं जायद में की जा सकती है | इसकी वृद्धि एवं विकास के लिए 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल होता है एवं 75-90 से.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं| पकने के समय साफ मौसम होना चाहिए इस समय अधिक वर्षा हानिप्रद होती है | मूंग की खेती हेतु दोमट से बलुआ दोमट भूमियाँ जिसका पी. एच. 7.0 से 7.5 हो, उत्तम होती है| खेत में जल निकास उत्तम होना चाहिए|
भूमि की तैयारी
खरीफ की फसल हेतु एक गहरी जुताई मिटटी पलटने वाले ह्ल से करनी चाहिए एवं वर्षा प्रारंभ होते ही 2-3 बार देशी ह्ल या कल्टीवेटर से जुताई कर खरपतवार रहित करने के उपरांत खेत में पता चलाकर समतल करें| दीमक से बचाव के लिए क्लोरपायरीफास 1.5% चूर्ण 20-25 कि ग्रा/हे के मन से खेत की तयारी के समय मिट्टी में मिलाना चाहिए| ग्रीष्म कालीन मूंग की खेती के लिए रबी फसलों के काटने के तुरंत बाद खेत की जुताई कर 4-5 दिन छोड़कर पलेवा करना चाहिए| पलेवा के बाद 2-3 जुताइयां देसी ह्ल या कल्टीवेटर से करके पता लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा बनावें | इससे उसमे नमी सरंक्षित हो जाती है व बीजों का अच्छा अंकुरण होता है |
बुवाई का समय
खरीफ मूंग की बुवाई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है एवं ग्रीष्म कालीन फसल को 15 मार्च तक बोनी कर देना चाहिए | बोनी में विलम्ब होने पर फुल आते समय तापक्रम वृद्धि के कारण फलियाँ कम बनती हैं अथवा बनती ही नहीं हैं जिससे इसकी उपज प्रभावित होती है|
उन्नत किस्मों का चयन
मूंग के अच्छे उत्पादन के लिए सदैव उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए क्योंकि स्थानीय किस्में लम्बे समय में पकती हैं तथा रोग व व्याधियों का प्रकोप अधिक होता है जिससे उपज कम प्राप्त होती है | मध्यप्रदेश में मूंग की फसल से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए निम्न लिखित उन्नत किस्मों को अनुशंसित किया गया है –
क्र | किस्म का नाम | अवधि (दिन) | उपज (क्विं/हे ) | प्रमुख विशेषतायें |
1. | ट्राम्बे जवाहर मूंग-3 (टी.जे.एम-3) जारी करने का वर्ष-2006 केंद्र-जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय, जबलपुर | 60 -70 | 10 -12 | ग्रीष्म व खरीफ दोनों हेतु, फलियाँ गुच्छों में, एक फली में 8-11 दानें, पीला मोज़ेक एवं पाउडरी मिल्ड्यू हेतु |
2. | जवाहर मूंग-721 जारी करने का वर्ष-1996 केंद्र-कृषि महाविद्यालय इंदौर | 70-75 | 12 -14 | ग्रीष्म व खरीफ दोनों हेतु, 3-5 फलियाँ एक गुच्छे में,एक फली में 10 -12 दाने, पीला मोज़ेक एवं पाउडरी मिल्ड्यू रोग सहनशील |
3. | एच. यू. एम. 12 (हम-12) केंद्र- बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय,वाराणसी | 65-70 | 10-12 | ग्रीष्म व खरीफ दोनों हेतु, पोधे माध्यम आकार के , एक पौधे में 45-55 फलियाँ, एक फली में 8 -12 दानें, पीला मोज़ेक एवं पर्ण दाग रोग सहनशील |
4. | पी.डी.एम.-139 केंद्र- भारतीय दलहन अनुसन्धान केंद्र, कानपूर | 65-75 | 10-12 | ग्रीष्म व खरीफ दोनों हेतु, पोधे माध्यम आकार के ,परिपक्व फली का आकार छोटा, पीला मोज़ेक रोग प्रतिरोधी |
5. | पूसा विशाल जारी करने का वर्ष-1996 केंद्र-भारतीय शिक्षा अनुसन्धान केंद्र | 60-65 | 12-15 | ग्रीष्म व खरीफ दोनों हेतु, पोधे माध्यम आकार के (55-70 से. मी.), फलियाँ लम्बी (10.5 से. मी.), दाना-मध्यम, चमकीला हरा, पीला मोज़ेक रोग सहनशील |
बीज दर व बीज उपचार
खरीफ में कतार विधि से बुवाई हेतु मूंग 20 कि ग्रा/हे पर्याप्त होता है| बसंत अथवा ग्रीष्मकालीन बुवाई हेतु 25-30 कि ग्रा/हे बीज की आवश्यकता होती है| बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम+मेन्कोजेब मिश्रण या टेबुकोनाजोल 2% डी.एस. से 2 ग्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें| तत्पश्चात इस उपचारित बीज को विशेष राइजोबियम, पी.एस.बी. एवं ट्राईकोडरमा विरिडी कल्चर 5 ग्राम/किलोग्राम (प्रत्येक) की दर से उपचारित कर बोनी करें|
बुवाई का तरीका
वर्षा के मौसम में अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतु ह्ल के पीछे पंक्तियों में बुवाई कर्ण उपयुक्त रहता है | खरीफ फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 30-45 से.मी. तथा बसंत (ग्रीष्म) के लिए 20-22.5 से.मी. रखी जाती है | पौधे से पौधे की दूरी 10-12 से.मी. रखते हुये 4 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिए| बुवाई रिज फरो सीड ड्रिल से करना चाहिए| ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई गेहूं काटने के पश्चात् बिना नरवाई जलाये हैप्पी टर्बो सीडर से की जा सकती है जिससे समय, श्रम व लागत की बचत होती है|
खाद व उर्वरक की मात्रा (किलोग्राम/हे)
नाइट्रोजन | फॉस्फोरस | पोटाश | गंधक | जिंक |
20 | 40 | 20 | 5 | 20 |
सभी उर्वरकों की पूरी मात्रा बुवाई के समय 5-10 से.मी. गहरी कूंड में आधार खाद के रूप में दें| इसके अतिरिक्त अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर खाद 5 टन/हे भी देना चाहिए|
सिंचाई एवं जल निकास
प्रायः वर्षा ऋतु में मूंग की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है, फिर भी इस मौसम में एक वर्षा से दूसरी वर्षा की बीच लम्बा अन्तराल होने अथवा नमी की कमी होने पर फलियाँ बनते समय हलकी सिंचाई आवश्यक होती है| बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है| फसल में स्प्रिंकलर द्वारा सिंचाई करना सर्वोत्तम होता है| फसल पकने के 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए| वर्षा के मौसम में जल भराव की दशा में फालतू पानी को खेत से निकलते रहना चाहिए, जिससे मृदा में वायु संचार बना रहता है|
खरपतवार नियंत्रण
मूंग की फसल में नींदा नियंत्रण सही समय पर नहीं करने से फसल की उपज में 40-60 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है| खरीफ मौसम में फसलों में संकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे – सँवा (इकैनोक्लोआ कोलोनम/क्रस्गली),दूब घास (साइनेडान डेकटीलॉन) एवं चौड़ी पत्ती वाले पत्थरचटा ( ट्राएंथमा मोनोगायना), कनकवा (कोमेलिना बेंघालेंसिस), मह्कुवा (अजिरेटम कोनोजाइड), सफ़ेद मुर्ग (सिलोसिया अरजेन्शिया), हजारदाना (फाएलेंथस निरुरी), लह्सुआ (डाइजेरा अरवेंसिस) तथा मोथा (साइप्रस रोटनडस, साइप्रस इरिया) आदि वर्ग के खरपतवार बहुतायत से निकलते हैं| फसल व खरपतवार की प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक अवस्था मूंग में प्रथम 30 से 35 दिनों तक रहती है, इसलिए प्रथम निन्दाई गुड़ाई 15-20 दिनों पर तथा द्वितीय 35-40 दिनों पर करना चाहिए| कतार में बोई गई फसल में व्हील हो नामक यन्त्र द्वारा यह कार्य आसानी से किया जा सकता है| वर्षा के मौसम में लगातार वर्षा होने पर निन्दाई गुड़ाई हेतु समय नहीं मिल पाता एवं श्रमिक ज्यादा लगने से फसल की लगत बढ़ जाती है| ऐसी परिस्थिति में नींदानाशक रसायन का छिडकाव करने से प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है | खरपतवार नाशक दवाओं के छिडकाव हेतु हमेशा फ्लैट फेन नोजेल का प्रयोग करें|
शाकनाशी रसायन का नाम | मात्रा (ग्रा सक्रिय पदार्थ/हे) | प्रयोग का समय | खरपतवार |
पेंडीमेथालिन | 700 | बोनी के तीन दिन के अन्दर | सभी |
इमेजेथापर | 100 | बुवाई के 20 दिन बाद | घास व मोथा कुल, चौड़ी पत्ती वाले |
क्विजालोफोप इथाइल | 40-50 | बुवाई के 15-20 दिन बाद | घास कुल वाले |
सोडियम एसीफ्लोरफेन + क्लोडीनोफोप प्रोपेरजिल | 80 + 165 | बुवाई के 15-20 दिन बाद | सभी |
पौध सरंक्षण
- कीट – फसल में ताना मक्खी, फ्ली बीटल, इल्ली, सफ़ेद मक्खी, माहू, थ्रिप्स आदि का प्रकोप होता है
- कुतरने वाले कीट- ये कीट पत्तियों को कुतर कर गोलाकार छेद बनाते हैं| इस हेतु क्विनाल्फोस 25 ई सी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिडकाव करें|
- रस चूसने वाले कीट- फसल पर हरा फुदका, सफ़ेद मक्खी, माहू व थ्रिप्स का आक्रमण होता है| ये सभी कीट पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पौधे की बडवार रुक जाती है एवं उपज में कमी आती है| इसके नियंत्रण हेतु डाइमैथोएट 30 ई सी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिडकाव करें|
(ब) रोग-
(1) मेक्रोफोमिना ब्लाइट- कत्थई भूरे रंग के विभिन्न आकार के धब्बे पत्तियों की निचली सतह पर मेक्रोफोमिना एवं सर्कोस्पोरा फफूंद के द्वारा बनते हैं| इसकी रोकथाम के लिए फसल पर कार्बेन्डाजिम+मेन्कोजेब को 2 से 2.5 ग्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकें|
(2) पीला मोज़ेक वायरस- यह सफ़ेद मक्खी द्वारा फैलने वाला विषाणु जनित रोग है| इसमें पत्तियां व फलियाँ पीली पड़ जाती हैं व उपज पर प्रतिकूल असर पड़ता है| कीटनाशी (अंतर्प्रवाही) से बीजोपचार करना चाहिए एवं प्रभावित पौधे को उखड कर फेंकना चाहिए|
फसल कटाई व गहाई
जब फलियाँ पककर काली पड़ने लगें तब तुडाई करना चाहिए, एक साथ पकने वाली किस्म की सीधे कटाई की जा सकती है |
उपज
उन्नत तकनीक से मूंग की खेती करने पर 8-10 क्वी/हे. उपज प्राप्त होती है|
महत्वपूर्ण खबर: गेहूँ मंडी रेट (20 मार्च 2023 के अनुसार)
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