राज्य कृषि समाचार (State News)

छतरपुर में अवैध उर्वरक विक्रेताओं के खिलाफ कार्रवाई

दो व्यापारियों के खिलाफ एफआईआर

20 अक्टूबर 2021, इंदौर । छतरपुर में अवैध उर्वरक विक्रेताओं के खिलाफ कार्रवाई कलेक्टर शीलेन्द्रसिंह  के निर्देश पर छतरपुर जिले में अवैध उर्वरक विक्रेताओं के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। इसके लिए जिले में राजस्व, कृषि और पुलिस विभाग का संयुक्त दल गठित किया गया है। उक्त दल द्वारा उर्वरक विक्रेताओं के प्रतिष्ठानों का निरीक्षण कर उर्वरक के नमूने लिए जा रहे हैं। 8 निजी उर्वरक विक्रेताओं के उर्वरक नमूने अमानक पाए जाने के कारण उनके फुटकर लायसेंस निलंबित करने की कार्रवाई की गई है। वहीं उर्वरकों के अवैध भंडारण पर दो व्यापारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ कराई गई है।

इस संबंध में छतरपुर के उप संचालक कृषि श्री मनोज कश्यप ने कृषक जगत को बताया कि  उर्वरक नमूने अमानक पाए जाने के कारण जिन दुकानदारों के लायसेंस निलंबित किए गए हैं उनमें संतोष गुप्ता राजनगर,दिलीप गुप्ता किशनगढ़, नीरज अग्रवाल छतरपुर,कनई पटेल बक्सवाहा,रोहित नायक सटई,अभिषेक जैन सटई,ओमप्रकाश राजपूत हरपालपुर और अशोक कुमार गुप्ता राजनगर शामिल है। इसके अलावा उर्वरकों के अवैध भंडारण /विक्रय करने पर दो विक्रेताओं संतोष पटेल सरवई, ज्ञानचंद पटेल चंदला  चौधरी ट्रेडर्स छतरपुर के विरुद्ध पुलिस में प्राथमिकी दर्ज़ कराई गई है।

श्री कश्यप ने बताया कि इस रबी सीजन के लिए 2600 मैट्रिक टन की एक रैक आई है, जिसमें से 1400 मैट्रिक टन खाद टीकमगढ़ जिले के लिए और 1100 मैट्रिक टन छतरपुर जिले के लिए आवंटित किया गया है। उर्वरक की मांग की तुलना में आपूर्ति कम होने से किसानों को सिंगल सुपर फास्फेट और एनपीके के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। किसानों से अपील की गई है कि अधिकृत उर्वरक विक्रेता से ही उर्वरक खरीदें और रसीद अवश्य प्राप्त करें।

यहां इस बात का उल्लेख प्रासंगिक है कि प्रति वर्ष रबी के सीजन में डीएपी की मांग बहुत बढ़ जाती है,जबकि उसकी तुलना में आपूर्ति कम होने से उर्वरक को लेकर मारामारी होती है।इससे न केवल कालाबाज़ारी को बढ़ावा मिलता है, बल्कि किसान भी परेशान होते हैं। एक ओर सरकार दलहन फसलों का रकबा बढ़ाने पर ज़ोर देती है , वहीं दूसरी ओर किसान चने की बोनी करते हैं, तो उन्हें उनकी ज़रूरत के अनुसार उर्वरक नहीं मिल पाता है। इससे उत्पादन भी प्रभावित होता है और दलहनी फसलों का सरकारी लक्ष्य भी पूरा नहीं होता। इस विसंगति को दूर करने की ज़रूरत लम्बे अर्से से महसूस की जा रही है, लेकिन कोई बदलाव होता नहीं दिख रहा है।

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