तुअर खरीद: MSP से नीचे मंडी भाव, सरकार का रिकॉर्ड खरीदी का प्लान
18 अप्रैल 2025, नई दिल्ली: तुअर खरीद: MSP से नीचे मंडी भाव, सरकार का रिकॉर्ड खरीदी का प्लान – पांच साल के अंतराल के बाद सरकार ने तुअर (अरहर दाल) की बड़े पैमाने पर खरीद की योजना बनाई है। 2024-25 सीजन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर 0.5 मिलियन टन तुअर खरीदने का लक्ष्य रखा गया है। इस कदम का मकसद बफर स्टॉक को बढ़ाना और किसानों को उनकी फसल का उचित दाम दिलाना है। हालांकि, मंडियों में तुअर के दाम MSP से नीचे चल रहे हैं, जिससे किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
रिकॉर्ड खरीद का लक्ष्य
यह खरीद पिछले पांच साल में तुअर की सबसे बड़ी सरकारी खरीद होगी, जो मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत होगी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अब तक नाफेड और एनसीसीएफ ने कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात से 0.33 मिलियन टन तुअर खरीद लिया है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया, “हम इस सीजन में 0.5 मिलियन टन का लक्ष्य पार कर सकते हैं, क्योंकि खरीद की रफ्तार तेज हो रही है।”
पिछले कुछ सालों में तुअर के बाजार दाम MSP से 20-25% अधिक थे, जिसके चलते सरकारी खरीद नहीं हो सकी थी। उदाहरण के लिए, 2023-24 और 2022-23 में कोई खरीद नहीं हुई, जबकि 2021-22 में 36,184 टन और 2020-21 में 11,004 टन तुअर खरीदा गया था। इससे पहले 2019-20 में सरकार ने 0.54 मिलियन टन तुअर खरीदा था, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है।
मंडियों में MSP से कम दाम
इस साल रिकॉर्ड पैदावार और आयात के कारण मंडियों में तुअर के दाम MSP (7,550 रुपये प्रति क्विंटल) से नीचे चल रहे हैं। महाराष्ट्र के लातूर, जो तुअर के थोक व्यापार का प्रमुख केंद्र है, में मंडी भाव 7,250 रुपये प्रति क्विंटल दर्ज किए गए हैं। उपभोक्ता मामलों के विभाग के अनुसार, खुदरा बाजार में तुअर का औसत दाम 125 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है, जो तीन महीने पहले 167 रुपये प्रति किलो था।
2024-25 फसल वर्ष (जुलाई-जून) में तुअर की पैदावार 4 मिलियन टन से अधिक रही है, जिसे बंपर फसल माना जा रहा है। इस वजह से बाजार में कीमतें नीचे आई हैं।
बफर स्टॉक की स्थिति
फरवरी में खरीद शुरू होने पर तुअर का बफर स्टॉक मात्र 35,000 टन था, जबकि सरकार का मानक 1 मिलियन टन है। मौजूदा स्टॉक का बड़ा हिस्सा आयात के जरिए बनाया गया है। कमजोर बफर स्टॉक के चलते सरकार ने इस साल खरीद पर जोर दिया है, ताकि आपूर्ति स्थिर रहे और कीमतों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित किया जा सके।
चुनौतियां और सवाल
हालांकि सरकार का लक्ष्य बड़ा है, लेकिन मंडियों में MSP से कम दाम किसानों के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बंपर पैदावार और आयात के दबाव में कीमतें और नीचे जा सकती हैं। ऐसे में सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी होगा कि खरीद प्रक्रिया पारदर्शी हो और किसानों को MSP का पूरा लाभ मिले।
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