राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

भारत का कृषि ट्रेड सरप्लस लगातार गिर रहा, क्या यह अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है?

06 मार्च 2025, नई दिल्ली: भारत का कृषि ट्रेड सरप्लस लगातार गिर रहा, क्या यह अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है? – भारत लंबे समय से कृषि उत्पादों का निर्यातक रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में कृषि व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। खासतौर पर दालों और खाद्य तेलों के बढ़ते आयात ने इस गिरावट को तेज कर दिया है। इसके पीछे वैश्विक बाजार की कीमतों में उतार-चढ़ाव, सरकारी नीतियां और घरेलू उत्पादन में अस्थिरता जैसी कई वजहें हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि यह गिरावट क्यों हो रही है और इसका भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

कृषि व्यापार अधिशेष का बदलता परिदृश्य

भारत अभी भी कृषि उत्पादों का शुद्ध निर्यातक (नेट एक्सपोर्टर) है, लेकिन इसका अधिशेष तेजी से घट रहा है। 2013-14 में यह अधिशेष 27.7 अरब डॉलर पर था, जो 2016-17 में घटकर 8.1 अरब डॉलर रह गया। 2020-21 में इसमें सुधार हुआ और यह 20.2 अरब डॉलर तक पहुंचा, लेकिन 2023-24 में यह फिर से गिरकर 16 अरब डॉलर रह गया।

2024 के अप्रैल-दिसंबर तिमाही में यह अधिशेष मात्र 8.2 अरब डॉलर दर्ज किया गया, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 10.6 अरब डॉलर था।

कृषि निर्यात में वृद्धिलेकिन चुनौतियां बरकरार

हालांकि कृषि निर्यात में 6.5% की वृद्धि दर्ज की गई, लेकिन यह वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव और सरकारी प्रतिबंधों से प्रभावित हुआ। अप्रैल-दिसंबर 2024 के दौरान कृषि निर्यात 37.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष 35.2 अरब डॉलर था। यह वृद्धि भारत के कुल वस्तु निर्यात में हुई 1.9% की वृद्धि से अधिक थी, लेकिन सरकारी नीतियों और वैश्विक मांग में बदलाव के कारण इसकी गति धीमी रही।

भारत के समुद्री उत्पादों के निर्यात में लगातार गिरावट देखी गई। 2022-23 में यह 8.1 अरब डॉलर था, जो 2023-24 में घटकर 7.4 अरब डॉलर रह गया। अमेरिका, जो भारत का सबसे बड़ा समुद्री उत्पाद बाजार है, वहां नए शुल्क लगाए जाने की संभावना है, जिससे आगे भी निर्यात प्रभावित हो सकता है।

सरकारी नीतियों का कृषि निर्यात पर प्रभाव

सरकार की निर्यात नीतियों ने भी कृषि व्यापार अधिशेष को प्रभावित किया है। 2022-23 में जहां चीनी का निर्यात 5.8 अरब डॉलर था, वहीं 2023-24 में यह घटकर 2.8 अरब डॉलर रह गया। घरेलू महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने चीनी निर्यात पर प्रतिबंध लगाए, जिससे यह गिरावट आई।

गेहूं का निर्यात भी 2023 से लगभग नगण्य हो गया है क्योंकि सरकार ने खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। वहीं, गैर-बासमती चावल के निर्यात पर भी कई तरह की पाबंदियां और शुल्क लगे हैं, जबकि बासमती चावल, मसाले, कॉफी और तंबाकू के निर्यात में रिकॉर्ड वृद्धि की संभावना है, क्योंकि अन्य देशों में इनकी आपूर्ति में कमी आई है।

खाद्य तेल और दालों के बढ़ते आयात से बढ़ी समस्या

भारत में कृषि उत्पादों का आयात 18.7% की दर से बढ़ा है। अप्रैल-दिसंबर 2024 के दौरान यह 24.6 अरब डॉलर से बढ़कर 29.3 अरब डॉलर हो गया। खासतौर पर दालों का आयात घरेलू उत्पादन की कमी के कारण तेजी से बढ़ा है और इसके पहली बार 5 अरब डॉलर के आंकड़े को पार करने की संभावना है।

खाद्य तेलों का आयात भी उच्च स्तर पर बना हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक बाजार में कीमतें बढ़ी हैं, जिससे भारत पर असर पड़ा है। वहीं, कपास का आयात 84.2% बढ़कर 918.7 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जबकि निर्यात 8.1% घटकर 575.7 मिलियन डॉलर रह गया। यही नहीं, भारत जो मिर्च, जीरा और हल्दी जैसे मसालों का बड़ा निर्यातक है, वह अब काली मिर्च और इलायची जैसे मसालों का आयात भी करने लगा है।

भारत के कृषि व्यापार अधिशेष में गिरावट का मुख्य कारण बढ़ते आयात, सरकारी नीतियों में बदलाव और वैश्विक बाजार में कीमतों का उतार-चढ़ाव है। हालांकि बासमती चावल, मसाले और तंबाकू जैसे उत्पादों का निर्यात अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन दालों, खाद्य तेलों और कपास का आयात देश की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। आने वाले समय में यह देखना होगा कि सरकार किस तरह से नीतिगत बदलाव करके इस स्थिति को संतुलित कर पाती है।

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