किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य: प्रगति हुई, लेकिन मंज़िल अभी दूर
19 दिसंबर 2025, नई दिल्ली: किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य: प्रगति हुई, लेकिन मंज़िल अभी दूर – किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य तय करते समय सरकार ने कृषि नीति की दिशा बदलने का संकेत दिया था। अब जोर केवल उत्पादन बढ़ाने पर नहीं, बल्कि खेती को आर्थिक रूप से टिकाऊ बनाने पर है। लेकिन कई वर्षों बाद भी सवाल वही है कि किसानों की आय वास्तव में कितनी बढ़ी है और क्या वह दोगुनी हो पाई है।
लक्ष्य के पीछे की नीति
अप्रैल 2016 में केंद्र सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने से जुड़े मुद्दों पर अध्ययन के लिए एक अंतर मंत्रालयी समिति का गठन किया था। इस समिति ने सितंबर 2018 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में आय बढ़ाने के सात प्रमुख स्रोत बताए गए, जिनमें फसल और पशुधन उत्पादकता में वृद्धि, लागत में कमी, फसल चक्र की तीव्रता बढ़ाना, उच्च मूल्य वाली फसलों की ओर विविधीकरण, बेहतर मूल्य प्राप्ति और खेती से इतर रोजगार की ओर धीरे धीरे बढ़ना शामिल है।इन सिफारिशों की निगरानी के लिए जनवरी 2019 में एक सशक्त समिति का गठन भी किया गया।
लोकसभा में सरकार का जवाब
किसानों की आय बढ़ाने को लेकर सरकार की स्थिति लोकसभा में रखी गई। कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री रामनाथ ठाकुर ने लिखित उत्तर में बताया कि कृषि राज्य का विषय है और केंद्र सरकार राज्यों को नीतिगत सहयोग, बजटीय प्रावधान और केंद्रीय योजनाओं के माध्यम से समर्थन देती है।उन्होंने लोकसभा को बताया कि कृषि और किसान कल्याण विभाग का बजट 2013–14 में 21,933.50 करोड़ रुपये से बढ़कर 2025–26 में 1,27,290.16 करोड़ रुपये हो गया है। सरकार के अनुसार यह बढ़ा हुआ बजट किसानों की आय बढ़ाने से जुड़ी योजनाओं की बुनियाद है।
योजनाएं और हस्तक्षेप
लोकसभा में दिए गए उत्तर में सरकार ने कई ऐसी योजनाओं का उल्लेख किया जो किसानों की आय से जुड़ी चुनौतियों को संबोधित करती हैं। इनमें पीएम किसान सम्मान निधि के तहत सीधी आय सहायता, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मौसम आधारित फसल बीमा योजना के तहत जोखिम प्रबंधन, संशोधित ब्याज अनुदान योजना के तहत सस्ता ऋण, कृषि अवसंरचना कोष, 10,000 किसान उत्पादक संगठनों का गठन और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने वाली योजनाएं शामिल हैं।इसके अलावा यंत्रीकरण, डिजिटल कृषि, ड्रोन आधारित सेवाएं, फसल विविधीकरण, बागवानी, खाद्य तेल मिशन, बांस मिशन, मधुमक्खी पालन और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य श्रृंखला विकास जैसी पहलों को भी आय वृद्धि से जोड़ा गया है।
आय में बढ़ोतरी, लेकिन दोगुनी नहीं
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि किसानों की आय में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर वह दोगुनी नहीं हुई है। राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय के स्थिति आकलन सर्वे के अनुसार 2012–13 में कृषि परिवारों की औसत मासिक आय 6,426 रुपये थी, जो 2018–19 में बढ़कर 10,218 रुपये हो गई। यह वृद्धि महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे आय दोगुनी नहीं कहा जा सकता।सरकार ने घरेलू उपभोग व्यय से जुड़े आंकड़े भी पेश किए। 2023–24 के सर्वे के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय 2011–12 के 1,430 रुपये से बढ़कर 4,122 रुपये हो गया है। इससे ग्रामीण जीवन स्तर में सुधार का संकेत मिलता है, लेकिन उपभोग में बढ़ोतरी को सीधे तौर पर कृषि आय में वृद्धि नहीं माना जा सकता।
कुछ सफल उदाहरण, लेकिन असमान स्थिति
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने लगभग 75,000 ऐसे किसानों की सफल कहानियां संकलित की हैं जिनकी आय योजनाओं के समन्वय और बेहतर कृषि पद्धतियों से दोगुनी से अधिक हुई। ये उदाहरण दिखाते हैं कि सही परिस्थितियों में सरकारी हस्तक्षेप प्रभावी हो सकता है।हालांकि देश की अधिकांश खेती छोटे और सीमांत किसानों पर आधारित है, जो भूमि के छोटे टुकड़ों, जलवायु जोखिम, बाजार तक सीमित पहुंच और बढ़ती लागत जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इसी वजह से आय में बढ़ोतरी सभी क्षेत्रों और सभी किसानों में समान नहीं रही है।
लक्ष्य की दिशा में आगे का रास्ता
लोकसभा में सरकार का जवाब यह दर्शाता है कि नीति, निवेश और योजनाओं के स्तर पर गंभीर प्रयास किए गए हैं। वहीं उपलब्ध आंकड़े यह भी बताते हैं कि किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य अब तक पूरी तरह हासिल नहीं हुआ है।अब सरकार का जोर एक निश्चित संख्या से अधिक टिकाऊ और निरंतर आय वृद्धि पर दिखाई देता है। आने वाले वर्षों में यह इस बात पर निर्भर करेगा कि योजनाएं जमीन पर कितनी प्रभावी ढंग से लागू होती हैं और किसान मूल्य श्रृंखला में कितनी मजबूती से जुड़ पाते हैं।
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