इस दीपावली पर आरोग्य का लें संकल्प
29 अक्टूबर 2024, नई दिल्ली: इस दीपावली पर आरोग्य का लें संकल्प – भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का विशेष महत्व है और सभी त्यौहार के मूल में जीवन दर्शन से सम्बद्ध उद्देश्य समाहित भी रहता है। ऐसा ही एक त्यौहार दीपावली है। पांच दिनों तक चलने वाले दीपावली पर्व को मनाने की तैयारी हफ्तों पहले शुरू हो जाती है। बाजारों की रौनक बढ़ जाती है। समूचा देश ही रोशनी से नहाया हुआ लगता है। अमीर-गरीब सभी अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार सामान खरीदते हैं। लक्ष्मी पूजन करते हैं और पटाखे फोड़कर खुशी का इजहार करते हैं। दीपोत्सव की शुरूआत धनतेरस से शुरू होती है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरी के साथ धन के देवता कुबेर की भी पूजा की जाती है। भगवान धन्वंतरि को देवताओं का वैद्य भी कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से श्रद्धालु जीवन भर निरोगी रह सकता है।
‘पहला सुख निरोगी कायाÓ यह सूत्र वाक्य भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है और दीपावली का पहला दिन धनतेरस के साथ आरोग्य के देवता धन्वंतरि को भी समर्पित है। भारतीय चिकित्सा ग्रंथों में भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का देवता माना गया है। यह भी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान धनवंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, तो उनके हाथ में अमृत कलश के साथ ही एक औषधि पुस्तक भी थी। औषधि की इस पुस्तक में संसार में एक भी ऐसी वस्तु नहीं बची है, जिसका उल्लेख और रोग के उपचार में उपयोग का जिक्र न हुआ हो। आयुर्वेद में भगवान धन्वंतरि का अतुलनीय योगदान है। कहते हैं कि उन्होंने आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों को स्थापित किया था। यही कारण है कि उन्हें आयुर्वेद का जनक भी माना जाता है। भगवान धन्वंतरि ने सुश्रुत, पौषकलावत और औरभ जैसे ऋषियों को आयुर्वेद का ज्ञान दिया। उनकी शिक्षाएँ अग्नि पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी दर्ज है।
भारत में प्राचीन काल से ही आयुर्वेद का उपयोग किया जाता रहा है लेकिन अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति ऐलोपैथी का प्रादुर्भाव होने से प्राचीनतम विधा आयुर्वेद धीरे-धीरे विलुप्त सी हो गई। जन मानस ने भी आयुर्वेद को लगभग भुला सा दिया और ऐलोपैथी को अपना लिया लेकिन एक वर्ग आयुर्वेद को पुन: प्रतिष्ठा दिलाने के उपक्रम में लगा रहा। देश में ऐलोपैथी के साथ आयुर्वेद के चिकित्सकों और वैद्यों ने समय-समय पर अपनी उपयोगिता सिद्ध भी की। इसी का परिणाम हुआ कि केंद्र सरकार ने एक अलग ही मंत्रालय ‘आयुषÓ का गठन किया। आयुष के तहत आयुर्वेद के साथ होम्योपैथिक, सिद्ध, यूनानी और योग-प्राणायाम को भी शामिल किया गया है।
सन् 2016 में भारत सरकार ने धन्वंतरि जयंती को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की थी। पहला आयुर्वेद दिवस 28 अक्टूबर, 2016 को मनाया गया था। अब हर साल धनतेरस के दिन धन्वंतरि जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस भी मनाया जाता है। भारत में प्राचीनतम और कारगर विधा आयुर्वेद को पुन: स्थापित करने की दिशा में स्वामी रामदेव का पतंजली रिसर्च फाउंडेशन में बड़े पैमाने पर शोध कार्य चल रहे हैं। भोपाल सहित देश के अन्य स्थानों पर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानों में भी योग, प्राणायाम और आयुर्वेद की दवाओं का उपयोग किया जा रहा है और इसके सार्थक परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं। दीपावली 31 अक्टूबर को समूचे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाई जायेगी। लेकिन इसकी शुरूआत 29 अक्टूबर मंगलवार को धनतेरस से हो रही है। धनतेरस के दिन ही राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस भी मनाया जाएगा। इस वर्ष के आयुर्वेद दिवस का विषय वैश्विक स्वास्थ्य में आयुर्वेद के योगदान को नए आयाम देना है। इसका मुख्य उद्देश्य जनता के कल्याण के लिए आयुर्वेद को एक मजबूत चिकित्सा प्रणाली के रूप में वैश्विक स्तर पर भी बढ़ावा देना है।
वैश्विक महामारी कोरोना के बाद एक बड़ी आबादी स्वास्थ्य सम्बंधी अनेक पेचीदगी का सामना कर रही है। इसके अलावा रासायनिक उर्वरकों और जहरीली दावाईयों के अंधाधुंध प्रयोग से भोजन भी शुद्ध नहीं रहा। पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है। अनियमित जीवन शैली और खानपान, जंक फूड का उपयोग, मोबाईल का अत्यधिक उपयोग, तनाव आदि के चलते अनेक बीमारियों से देश की बड़ी आबादी ग्रस्त है। कैन्सर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, थायराईड, हृदय रोग आदि के रोगियों की संख्या में हर साल इजाफा हो रहा है। ऐसी स्थिति में सबसे महत्वपूर्ण है कि स्वस्थ कैसे रहा जाए? इसका एकमात्र उपाय यह है कि हम अपनी जीवन शैली को अनुशासित करने के साथ मिलावट रहित जैविक भोजन, योग प्राणायम को अपने जीवन का अनिवार्य अंग बनायें। साथ ही अपने आसपास औषधीय पेड़-पौधों के बारे जानकारी हासिल कर उनका उपयोग करें तो निश्चित ही अनेक बीमारियों को होने से पहले ही नियंत्रित कर सकते हैं। इस धनतेरस यानी राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस पर यह संकल्प लें कि हम स्वस्थ रहने के लिये जो भी प्राकृतिक तरीके अपना सकें, उन्हें बिना किसी पूर्वाग्रह के अपनाकर अपनी जीवनशैली का अनिवार्य हिस्सा बनाएंगे। सही मायने में यह स्वस्थ भारत की कल्पना को साकार करने की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगा।
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