सातवें इंटरनेशनल सोया कॉन्क्लेव का शुभारम्भ, महत्वपूर्ण मुद्दों पर हुई चर्चा
14 अक्टूबर 2024, इंदौर: सातवें इंटरनेशनल सोया कॉन्क्लेव का शुभारम्भ, महत्वपूर्ण मुद्दों पर हुई चर्चा – सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) द्वारा आयोजित “एडिबल ऑइल्स और प्रोटीन- विज़न 2030” थीम पर आधारित दो दिवसीय इंटरनेशनल सोया कॉन्क्लेव 2024 का रविवार को इंदौर में शुभारम्भ किया गया। कॉन्क्लेव का यह सातवाँ संस्करण है, जिसमें इंडस्ट्री के महत्वपूर्ण मुद्दों और नई तकनीकों पर गहन विचार-विमर्श किया गया। कृषि सत्र की अध्यक्षता इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोयाबीन रिसर्च के डायरेक्टर, डॉ. के. एच. सिंह ने की । कार्यक्रम में कई प्रतिष्ठित वक्ता शामिल हुए, जिनमें प्रमुख रूप से डॉ. आर. के. माथुर, डायरेक्टर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑयल सीड्स रिसर्च, जी. चंद्रशेखर, डॉ. रतन शर्मा, श्री रामनाथ सूर्यवंशी, याशी श्रीवास्तव थे । स्वागत भाषण सोपा के कार्यकारी निदेशक डी. एन. पाठक ने दिया। आज कॉन्क्लेव का दूसरा दिन है।
डॉ. आर. के. माथुर ने कहा, “किसी एक फसल के बजाए एक से अधिक पर ध्यान देना समय की माँग है। यह प्रॉफिट रेश्यो बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है। एफपीओ को शामिल किया जाना भी बहुत जरुरी है। इससे न सिर्फ वैल्यू चैन मजबूत होगी, बल्कि बेहतर सिस्टम भी स्थापित हो सकेगा। साथ ही, विभिन्न व्यवसायियों के बीच प्रतिस्पर्धा कम होगी और रिसर्चर्स को भी बढ़ावा मिलेगा।” डॉ. के. एच. सिंह ने कहा, “सोयाबीन हमारे देश में एक दशक से भी अधिक समय से ऑइल सीड्स में नंबर 1 बना हुआ है। लेकिन, इस वर्ष के आंकड़ों के तहत इसे दूसरे स्थान पर दर्ज किया गया, जो कि चिंता का विषय है। इस पर काम किया जाना बहुत जरुरी है। प्रोडक्शन की मात्रा बढ़ाने पर निश्चित रूप से इसकी कीमत को किफायती बनाया जा सकेगा।”
डॉ. रतन शर्मा ने कहा, “सोयाबीन के स्टोरेज के मामले में ह्यूमिडिटी की भूमिका बेहद मायने रखती है। यदि स्टोरेज उचित नहीं होगा, तो इसकी गुणवत्ता भी उचित नहीं होगी। आदर्श टेम्परेचर 10-15%, ह्यूमिडिटी 60-70%, मॉइश्चर कॉन्टेंट 12-14% और हवा एवं वेंटिलेशन का ध्यान रखते हुए किट आदि से बचाव सोयाबीन की गुणवत्ता को लम्बे समय तक बरकरार रखता है।” सोयाबीन के वैश्विक दृष्टिकोण और इसके भारतीय बाजार पर प्रभाव पर चर्चा करते हुए, जी. चंद्रशेखर, ने कहा, “सोयाबीन फूड है; फीड है; फ्यूल है। प्रोटीन की कमी को दूर करने में सोया प्रोडक्ट्स काफी सहायक है। सोयाबीन का उत्पादन अगले 10 वर्षों में 0.8% बढ़ने का अनुमान है, जबकि पिछले 10 वर्षों में यह 2.0% दर्ज किया गया था। वहीं, रूस, यूक्रेन, कनाडा में वृद्धि के साथ वैश्विक सोयाबीन उत्पादन 2023 में ~400 एमएमटी से बढ़कर 2033 में 430 एमएमटी तक बढ़ने का अनुमान है।” श्री सूर्यवंशी ने खाद्य सुरक्षा विनियमों की जानकारी दी, वहीं याशी श्रीवास्तव ने सोयाबीन उद्योग के लिए विशेष सरकारी योजनाओं पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम के दौरान दो पैनल चर्चाएं आयोजित की गई । मॉडरेटर श्री पाठक के नेतृत्व में फ्यूचर्स ट्रेडिंग पर पैनल चर्चा आयोजित की गई। पैनल में श्री अजय केडिया, श्री बदरुद्दीन (एमसीएक्स), श्री अमित जैन (एबिस एक्सपोर्ट्स) और श्री मनोज अग्रवाल (एमओईएल) ने भाग लिया। इस सत्र में फ्यूचर्स ट्रेडिंग के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कर प्रतिभागियों ने अपने अनुभव और विचार साझा किए। वहीं श्री जी.के. सूद के नेतृत्व में ‘डीडीजीएस और सोयाबीन इंडस्ट्री पर इसके प्रभाव’ पर दूसरी पैनल चर्चा में डॉ. गिरीश कोलवंकर, प्रीमियम चिक्स, श्री ए. जानकीरमन, सुगुना फूड्स लिमिटेड और श्री संजय श्रीश्रीमाल, केएन ग्रुप शामिल हुए ।
पहले दिन के कार्यक्रम का समापन केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री, श्री नितिन गड़करी के सम्बोधन से हुआ। श्री गडकरी ने कहा, “हमारे प्रधानमंत्री जी का सपना है कि भारत दुनिया की 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बने और इस साल हमने दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने का लक्ष्य साधा है। यह लक्ष्य हासिल करने और आत्मनिर्भर भारत का सृजन करने के लिए हमें अपने देश में से इम्पोर्ट को कम और एक्सपोर्ट को बढ़ाना होगा। जहाँ तक हमारे देश में एग्रीकल्चर और विशेष रूप से संबंधित एडिबल ऑइल का सवाल है, हम 60% से भी अधिक इम्पोर्ट पर निर्भर हैं। देश में मलेशिया से जो पाम ऑइल आता है, उसकी वजह से किसानों को उचित मुआयजा मिलने में अड़चन आती है। इस तरह पूरी इंडस्ट्री को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। एक अन्य मुद्दा और है, जिसका सामना ऑइल इम्पोर्ट करते समय हमें करना पड़ता है, वह है इस बात का मूल्यांकन करना कि वर्ल्ड मार्केट में सोया केक का मूल्य क्या चल रहा है। हमारे देश में काफी संशोधन के बाद भी सोया केक को इम्पोर्ट करता है। बीज की उत्पादकता को बढ़ाने पर ध्यान देने पर निरंतर रूप से काम किया जा रहा है, जिसके लिए प्रयास जारी हैं। हमारे मौजूदा प्लांट्स की पूरी क्षमता से उपयोग नहीं हो पा रहा है, इसका सबसे बड़ा कारण है कि इम्पोर्ट की वजह से एक्सपेंडिचर काफी बढ़ जाते हैं, और इसी वजह से अभी हम कहीं न कहीं पीछे हैं। एडिबल ऑइल का जितना भी उपयोग किया जाता है, उसका उत्पादन देश में ही हो, इस उद्देश्य के साथ किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए, सॉल्वेंट प्लांट को फायदा पहुँचाते हुए, आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए हम सभी के मिले-जुले प्रयास निश्चित रूप से कामगार साबित होंगे।”
प्रेस कॉन्फ्रेंस का संचालन डॉ. डेविश जैन, चेयरमैन, सोपा, श्री नरेश गोयनका, डिप्टी चेयरमैन, सोपा और श्री गिरीश मतलानी, सेक्रेटरी, ने किया। इस दौरान, डॉ. जैन ने कहा, ” सोपा ने वर्षों तक अपने किसान भाइयों और प्रोसेसर्स को न्याय दिलाने के लिए निरंतर संघर्ष किया है। यह कोई आसान यात्रा नहीं थी, लेकिन आयातित खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने के लिए सोपा के प्रयास अंततः सफल रहे हैं। यह हमारे तेल और तिलहन क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हमारा देश खाद्य तेल आयात पर प्रतिवर्ष लगभग 1.50 लाख करोड़ रुपए विदेशी मुद्रा में खर्च करता है। यह एक बड़ा आर्थिक बोझ है, जबकि हमारे मेहनती किसान अपनी उपज को उचित दाम पर बेचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सोपा ने न सिर्फ इस मुद्दे को उठाया, बल्कि लगातार सरकार से आग्रह किया कि तेल आयात पर शुल्क बढ़ाया जाए , ताकि हमारे किसानों और प्रोसेसर्स को उनके श्रम का सही मूल्य मिले। हमने यह कदम इसलिए उठाया, क्योंकि हम मानते हैं कि भारत के किसान और प्रोसेसर्स मिलकर देश को आत्मनिर्भर बना सकते हैं।”
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