प्याज पर निर्यात शुल्क वापस ले या भावांतर योजना लागू करे सरकार
23 अगस्त 2023, नई दिल्ली(मधुकर पवार): प्याज पर निर्यात शुल्क वापस ले या भावांतर योजना लागू करे सरकार – हाल ही में टमाटर की बढ़ी कीमतों पर आम उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया से डरी सरकार ने प्याज की कीमतों में हो रही वृद्धि पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से निर्यात पर 40 प्रतिशत शुल्क लगा दिया है जो इस वर्ष के अन्त तक यानी 31 दिसम्बर 2023 तक जारी रहेगा। केंद्र सरकार के इस निर्णय से किसानों को बेहद निराशा हुई है। केंद्र सरकार के इस फैसले को लेकर नासिक, सतारा, मालेगांव और लासलगांव के साथ अहमदनगर और पुणे के मंचर तथा खेड़ की मंडियों में किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया। विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी महीनों में होने वाले विधानसभा और अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव में प्याज कहीं मुद्दा न बन जाये, सरकार ने घरेलु बाजार में कीमतें स्थिर रखने के लिये सम्भवत: यह अव्यवहारिक कदम उठाया है जबकि इसकी आवश्यकता ही नहीं थी।
टमाटर की कीमतें बढ़ने के पीछे असमान बारिश भी एक बड़ी बजह है। कहीं कम और कहीं अधिक बारिश के कारण टमाटर का उत्पादन एकदम से कम हो जाने से कीमतों में एक साथ उछाल आ गया था जिससे आम उपभोक्ताओं की जेब पर सीधा असर पड़ा। लेकिन प्याज को टमाटर की कीमतों से नहीं जोड़ा जा सकता। इसका एक बड़ा कारण यह है कि प्याज को लम्बे समय तक भंडारण करने से बाजार की आवश्यकतानुसार विक्रय के लिये निकाला जाता है। इसी के साथ निर्यात भी चालू रहता है। घरेलु बाजार में कीमतों में वृद्धि भी सामान्य ही होती है। वैसे बरसात में हर साल ही प्याज की कीमतें बढ़ती हैं लेकिन इस साल टमाटर की कीमतों में हुई वृद्धि का मनोवैज्ञानिक असर प्याज पर भी पड़ गया इसलिए सरकार ने प्याज की कीमत में आंशिक वृद्धि होते ही निर्यात शुल्क लगा दिया जो कि पूर्णत: अव्यवहारिक निर्णय है। सरकार को पिछले कुछ वर्षों में बरसात के दिनों में प्याज की कीमतों का विश्लेषण करना चाहिये था तथा उसी के अनुसार निर्णय लेना था। जब सरकार किसानों की आय दोगुना करने के प्रति वचनबद्ध है तब निर्यात पर काफी ज्यादा शुल्क लगाकर इस पर स्वयं ही रोक लगाकर किसानों की आय में एक बड़ी रूकावट पैदा कर दी है। प्याज के निर्यात पर शुल्क लगाने के निर्णय को सरकार के वादे के विपरीत ही माना जाना चाहिये।
वैसे नई प्याज की फसल आगामी डेढ़ – दो माह में आने के बाद स्वाभाविक रूप से कीमतें कम हो जाएगी। इसके बाद अगले वर्ष फरवरी – मार्च में भी नई फसल आ जाएगी। आमतौर पर रबी के मौसम में लगाई गई फसल पकने के बाद जब बाजार में आती हैं तब कीमतें काफी कम रहती हैं। यह स्थिति प्राय: हर साल ही रहती है और जब कीमतें कम हो जाती हैं तब एक आम भारतीय उपभोक्ता बरसात के दिनों में सब्जियों की किल्लत से बचने के लिये प्याज खरीदकर रख लेता है। बरसात में जब कीमतें बढ़ती हैं तब आम उपभोक्ताओं पर उतना असर नहीं पड़ता जितना कि प्रचारित किया जा रहा है। जब टमाटर की कीमतें अत्यधिक बढ़ गई थी तब उपभोक्ताओं ने टमाटर खरीदने की मात्रा कम कर दी थी\। ठीक ऐसा ही प्याज के साथ हर साल होता है। लेकिन इस वर्ष अक्टूबर – नवम्बर में विधानसभा चुनाव का स्पष्ट असर सरकार के निर्णय से दिखाई दे रहा है। सरकार किसी भी मुद्दे को विपक्षी दलों के हाथों में नहीं देना चाहती।
अब एक बड़ा प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि क्या घरेलु बाजार में पर्याप्त मात्रा में प्याज की उपलब्धता सुनिश्चित रहे और किसानों को भी हमेशा कीमत अच्छी मिले ? यदि ऐसा हो सकेगा तो किसानों को भी नुकसान नहीं होगा और उपभोक्ताओं की जेब ढीली नहीं होगी। इसका एक ही रास्ता है… प्याज के प्रसंसकरण उद्योग लगायें ताकि प्याज की उपलब्धता हमेशा बनी रहेगी और कीमतें भी स्थिर रहेगी। जब प्याज का अधिक उत्पादन होगा तब भी किसानों को उचित मूल्य मिल सकेगा और घरेलु मांग के बाद बचे प्याज का निर्यात किया जा सकेगा। सरकार को फल और सब्जियों के और प्रसंस्करण उद्योगों को स्थापित करने के लिये योजना शुरू करनी चाहिये ताकि अधिक संख्या में उद्योग स्थापित किये जा सके। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि जब भी किसी फल या सब्जी का अधिक उत्पादन होगा, उनकी प्रसंस्करण उद्योगों में खपत होने से किसानों को उपज की अच्छी कीमत मिल जायेगी। यह प्रयास प्याज के साथ अन्य सब्जियों जैसे टमाटर, मिर्च, अदरख आदि के उत्पादक किसानों के लिये लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
हालाकि केंद्र सरकार ने प्याज के मूल्य स्थिर रखने के लिये 2,410 रुपये प्रति क्विंटल की दर से दो लाख मीट्रिक टन प्याज खरीदने की घोषणा की है। इसके लिए नासिक और अहमदनगर जिलों में विशेष खरीदी केंद्र स्थापित किए जाएंगे। सरकार ने यह भी घोषणा की है कि वह अपने बफर स्टाक से प्याज 25 रूपये किलोग्राम की दर से उपभोक्ताओं को उपलब्ध करायेगी। इससे उपभोक्ताओं को राहत तो मिलेगी। किसानों के आर्थिक हितों के संरक्षण के लिये भी सरकार को सार्थक कदम उठाने चाहिये। इसके तहत घरेलु बाजार और निर्यात किये जाने वाले प्याज की कीमतों में अंतर का भुगतान किसानों को किया जा सकता है। इस तरह का प्रयोग मध्यप्रदेश में भावांतर योजना के तहत किया जा चुका है। सोयाबीन सहित कुछ अन्य अधिसूचित कृषि उपजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम मिलने पर सरकार भरपाई करती थी। इसी तरह केंद्र सरकार भी प्याज उत्पादक किसानों को राहत देने का निर्णय ले तो इससे किसान स्वयं निर्यात करने के स्थान पर घरेलु बाजार में प्याज का विक्रय करेंगे। इससे सरकार भी उपभोक्ताओं का कोपभाजन बनने से बच सकेगी। प्याज की कीमतें बढ़ने से तो सरकार बदल जाती है… सरकार को यह डर भी नहीं सतायेगा।
(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़, टेलीग्राम )