बासमती चावल के पेटेंट पर बढ़ती मुश्किलें
लेखक: शशिकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार
02 सितम्बर 2024, नई दिल्ली: बासमती चावल के पेटेंट पर बढ़ती मुश्किलें – हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के बाद अब न्यूज़ीलैंड ने बासमती के लिए भारत के ट्रेडमार्क आवेदन को खारिज कर दिया है।
न्यूजीलैंड का रुख यह है कि अन्य देश भी सुगंधित चावल की खेती करते हैं, इसलिए कोई भी देश इस पर विशेष रूप से दावा नहीं कर सकता है।
दुनिया भर के उत्पादक देश जिनमे भारत, चीन, फिलीपींस, इंडोनेशिया और बांग्लादेश आगे हैं, चावल की नई किस्मों को विकसित करने और अपना व्यापार बढाने में लगे हैं. लेकिन भारत सबसे ज़्यादा ज़ोर बासमती चावल के व्यापार बढ़ने पर है. मगर मुश्किलें कम नहीं हैं. जहाँ एक तरफ वैश्विक बाजार में बासमती चावल के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा हासिल करने में भारत को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जिसका वार्षिक निर्यात मूल्य लगभग 50,000 करोड़ रुपये है, वहीं हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के बाद अब न्यूज़ीलैंड ने ने बासमती के लिए भारत के ट्रेडमार्क आवेदन को खारिज कर दिया है।
न्यूजीलैंड का रुख यह है कि अन्य देश भी सुगंधित चावल की खेती करते हैं, इसलिए कोई भी देश इस पर विशेष रूप से दावा नहीं कर सकता है।
न्यूजीलैंड के बौद्धिक संपदा कार्यालय (आईपीओएनजेड) ने भारत को बासमती के लिए जीआई के बराबर ट्रेडमार्क प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया है। भारत के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने देश की ओर से आवेदन प्रस्तुत किया था।
बासमती को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद कई सालों से चल रहा है।
बासमती चावल की कुछ किस्मों के लिए दिया गया नाम है, जिसमें अच्छे स्वाद और सुगंध के अलावा कुछ खास गुण होते हैं और जो विशेष रूप से भारत-गंगा के मैदानों के विशिष्ट क्षेत्रों में “पारम्परिक” तरीके से उगाया जाता है. जिसमें पहले पश्चिमी पंजाब का उत्तरी भाग (भारत और पाकिस्तान की सीमा के दोनों ओर), जम्मू, हरियाणा, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश शामिल थे, जैसा कि भारत में जीआई रजिस्ट्री के समक्ष दायर जीआई आवेदन में कहा गया है।
एपीडा ने 26 नवंबर 2008 को पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में उगाए जाने वाले बासमती चावल पर भारत में जीआई रजिस्ट्री के समक्ष बासमती चावल के पंजीकरण के लिए जीआई आवेदन संख्या 145 दायर किया। लेकिन मध्यप्रदेश की ओर से भी बासमती चावल उगाये जाने का दावा आ जाने से मुश्किल बढ़ गई है. विशेषज्ञों के मुताबिक एक तरफ मध्यप्रदेश के बासमती चावल को जी आई में शामिल किये जाने से किसानों को फायदा होगा लेकिन मध्यप्रदेश ने “पारम्परिक” तरीके से खेती करने के शब्द के समर्थन में कोई ठोस प्रमाण नहीं दिया है. यदि मध्यप्रदेश के चावल को शामिल कर लिए गया है कुछ और राज्य भी फिर अपने दावे लेकर आ जाएँ ऐसी स्थिति में भारत के बासमती चावल को जी आई टैग मिलना और मुश्किल हो जायेगा।
अमेरिकी पेटेंट कार्यालय द्वारा अमेरिकी कंपनी राइस टेक इंक को पेटेंट दिए जाने का दावा भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए प्रतिकूल था।
सन 2022 में पाकिस्तान ने यूरोपीय संघ (ईयू) में बासमती के जीआई दर्जे के लिए आवेदन किया था। भारत ने पाकिस्तान के आवेदन पर आपत्ति जताते हुए इसे रद्द करने की मांग की। बासमती के जीआई दर्जे के लिए भारत का अपना आवेदन 2018 से यूरोपीय संघ के पास लंबित है।
पाकिस्तान का दावा है कि वह 44 जिलों में बासमती उगाता है, जिसमें बलूचिस्तान जैसे क्षेत्र शामिल हैं, जहां सामान्य चावल उगाना भी मुश्किल है, और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के चार जिले हैं। पाकिस्तान का लक्ष्य बासमती के लिए जीआई दर्जा प्राप्त करके इस प्रीमियम चावल के वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना है।
बासमती के वैश्विक बाजार के मुद्दे को समझने के लिए हमें पीछे देखने की जरूरत है। 2008 में, बासमती के जीआई दर्जे को संबोधित करने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच एक संयुक्त बैठक में एक समूह का गठन किया गया था। दोनों देशों के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें पाकिस्तान के 14 जिलों और सात भारतीय राज्यों (पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और जम्मू और कश्मीर) को बासमती उत्पादन क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई। बाद में पकिस्तान ने 14 जिलों को बढाकर 48 कर लिया।
कुछ अधिकारियों ने भारत के बासमती उत्पादन क्षेत्र में नए क्षेत्रों को शामिल करने का सुझाव दिया, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों और कृषि वैज्ञानिकों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, जलवायु और मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर पहले से स्थापित क्षेत्रों पर ही टिके रहना भारत और उसके किसानों के सर्वोत्तम हित में है ताकि भारत को जल्दी जी आई टैग मिल सके.
वाणिज्य मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय स्तर पर यह निर्णय लिया गया कि भारत पाकिस्तान के बासमती आवेदन का विरोध करेगा। कृषि वैज्ञानिकों और वरिष्ठ अधिकारीयों ने सुझाव दिया था कि पाकिस्तान के केवल 14 जिलों को बासमती उत्पादन क्षेत्र माना जाएगा और भारत सात राज्यों के निर्धारित क्षेत्रों में बासमती का उत्पादन करेगा। क्योंकि पाकिस्तान के बासमती दावे के खिलाफ भारत सरकार, नेपाल सरकार और मध्य प्रदेश द्वारा यूरोपीय संघ में आपत्तियां दर्ज की गई हैं:
भारत के वैज्ञानिकों और अधिकारियों का मानना है कि पहले से निर्धारित सात राज्यों में बासमती उत्पादन को तीन गुना किया जा सकता है, जिससे अतिरिक्त 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया जा सकता है; ;मसलन पंजाब वर्तमान में 30 लाख हेक्टेयर धान में से 600,000 हेक्टेयर में बासमती उगाता है, इसे दो गुना कर उत्पादन बढ़ाया जा सकता है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी 500,000 हेक्टेयर जोड़ सकता है ऐसा करने से भारत का दावा बहुत मजबूत होगा और किसानों को फायदा होगा और पाकिस्तान के नए जिलों को शामिल करने में कानूनी और वैज्ञानिक आधार नहीं मिलेगा.
यूरोपीय संघ का निर्णय अभी भी लंबित है, न्यूजीलैंड द्वारा भारत के आवेदन को हाल ही में खारिज करने से यह मुद्दा फिर से सुर्खियों में आ गया है।
प्रमुख यूरोपीय और मध्य पूर्वी बाजारों में बासमती चावल के निर्यात से भारत की कृषि-अर्थव्यवस्था को और बढ़ावा मिला है। पिछले दशक में, बासमती चावल के निर्यात में तेज़ी से बढ़ोतरी देखी गई है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती उत्पादक (लगभग 65 लाख टन सालाना) है, और मुख्य रूप से यूरोपीय, मध्य-पूर्वी और उत्तरी अमेरिकी बाजारों में लगभग 50 लाख टन सालाना निर्यात करता है।
बासमती चावल के लिए भारत सरकार व्यापार मार्ग स्थापित करने के लिए क्षेत्रीय सरकारों के साथ संबंध स्थापित करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है, जो भारतीय वस्तुओं को विभिन्न यूरोपीय शहरों तक पहुँचने में मदद कर सकता है। लेकिन इन नए मार्गों का उपयोग करने की प्राथमिक चुनौती समग्र लागत में वृद्धि है।
बासमती निर्यातकों के सामने एक बड़ी चुनौती है शिपिंग कंटेनरों की अनुपलब्धता। भारतीय निर्यातक कई शिपिंग कंपनियों पर अत्यधिक निर्भर हैं, जो ज़्यादा मुनाफ़े की तलाश में ज़्यादातर खाली कंटेनरों को दूसरी जगहों पर भेज देते हैं। इसने भारत के समग्र निर्यात को बुरी तरह प्रभावित किया है, इसका सीधा असर कहीं न कहीं किसानों पर पड़ता है.
भारत सरकार वर्तमान में घरेलू स्तर पर शिपिंग-ग्रेड कंटेनरों के निर्माण के लिए 5000 करोड़ रुपये की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के प्रस्ताव की समीक्षा कर रही है। सरकार ने 2026 तक भारत में कंटेनरों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए एक समिति भी गठित की है।
किसानों के हित में है कि भारत सरकार इस मुद्दे पर जल्द कोई हल खोजकर निर्णय ले पाकिस्तान के दावे को खारिज करवाए जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.
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