राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

भारत में कपास उत्पादन में लगातार गिरावट: पिछले 10 वर्षों के आंकड़े क्या बताते हैं

30 मई 2025, नई दिल्ली: भारत में कपास उत्पादन में लगातार गिरावट: पिछले 10 वर्षों के आंकड़े क्या बताते हैं – भारत, जो दुनिया में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, अब एक लंबी और स्थायी गिरावट के दौर से गुजर रहा है। 2015–16 से लेकर 2024–25 के अनुमानित आंकड़ों तक के दस वर्षों की समीक्षा करें तो इसमें उतार-चढ़ाव, ठहराव और हाल ही में गिरावट साफ देखी जा सकती है। उच्च उपज वाले बीजों के प्रचार, सरकार की विभिन्न सहायता योजनाओं और वस्त्र क्षेत्र से बढ़ती मांग के बावजूद, कपास उत्पादन में वह निरंतरता नहीं आ सकी जिसकी अपेक्षा थी।

साफ-साफ नजर आने वाले आंकड़े

2019–20 में कपास उत्पादन 360.65 लाख गांठों के उच्चतम स्तर पर पहुंचा था, लेकिन इसके बाद से इसमें गिरावट शुरू हो गई। 2024–25 के लिए जारी ताजा अनुमान में उत्पादन केवल 306.92 लाख गांठ रहने की संभावना जताई गई है। यह न केवल साल-दर-साल की गिरावट है, बल्कि यह एक गहरी संरचनात्मक समस्या को भी दर्शाता है, जो किसानों की रुचि को खत्म कर रही है और वैश्विक बाजार में भारत की अग्रणी स्थिति को खतरे में डाल रही है।

Advertisement
Advertisement

दशकीय रुझान को समझना

इन दस वर्षों में उत्पादन 2019–20 में चरम पर पहुंचा था, लेकिन उसके बाद रफ्तार कमजोर हो गई। कुछ वर्षों में आंशिक सुधार जरूर दिखा, लेकिन संपूर्ण दिशा में वह निरंतरता नहीं थी, जो एक मजबूत मूल्य श्रृंखला को बनाए रख सके। 2015–16 में जहां उत्पादन 300.05 लाख गांठ था, वहीं 2024–25 में यह बढ़कर केवल 306.92 लाख गांठ हुआ है — यह बेहद धीमी वृद्धि है। इस पूरे काल में कपास उत्पादन की वार्षिक चक्रवृद्धि वृद्धि दर (CAGR) मात्र 0.25% रही है, जो कृषि और वस्त्र निर्यात के लिए चिंता का विषय है।

यह उतार-चढ़ाव कपास क्षेत्र की असुरक्षा को उजागर करता है। कुछ वर्षों में कीट हमलों, अनियमित वर्षा और किसानों की अरुचि के कारण तेज गिरावट आई, जबकि कुछ वर्षों में हल्का सुधार देखने को मिला, लेकिन वे भी दीर्घकालिक औसत को नहीं संभाल सके।

Advertisement8
Advertisement

कुछ चिंताजनक वर्ष

2018–19 में उत्पादन 328.05 से गिरकर 280.42 लाख गांठ रह गया — यानी लगभग 14.5% की बड़ी गिरावट। इस साल महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे राज्यों में गुलाबी सुंडी के भीषण हमले देखने को मिले। 2019–20 में यह उत्पादन एक बार फिर 360.65 लाख गांठ तक पहुंचा, लेकिन यह सुधार टिक नहीं पाया।

Advertisement8
Advertisement

इसके बाद के वर्षों में उत्पादन पर दबाव बना रहा। 2021–22 में उत्पादन 352.48 से गिरकर 311.18 लाख गांठ रह गया। मौसम की मार और कीमतों में गिरावट ने किसानों के आत्मविश्वास को कमजोर किया। 2022–23 से 2024–25 तक लगातार गिरावट जारी रही — 336.60 से घटकर 306.92 लाख गांठ तक।

भारत में कपास उत्पादन (2015–2025)

वर्षकपास उत्पादन (लाख गांठ)साल-दर-साल बदलावगिरावट?
2015–16300.05नहीं
2016–17325.77+25.72नहीं
2017–18328.05+2.28नहीं
2018–19280.42-47.63हाँ
2019–20360.65+80.23नहीं
2020–21352.48-8.17हाँ
2021–22311.18-41.30हाँ
2022–23336.60+25.42नहीं
2023–24325.22-11.38हाँ
2024–25306.92-18.30हाँ

2024–25 एक अनुमानित आंकड़ा है।

स्रोत: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार

गिरावट के पीछे संरचनात्मक चुनौतियाँ

कीट प्रकोप एक बड़ा कारण है। Bt कपास की वजह से गुलाबी सुंडी पर काबू पाया गया था, लेकिन अब वह फिर से जोर पकड़ रही है। किसान बता रहे हैं कि Bt बीज अब उतने प्रभावी नहीं रहे, जिससे कीटनाशकों की खपत और लागत दोनों बढ़ गई हैं। इससे कपास की तुलना में अन्य फसलों की खेती अधिक लाभकारी लगने लगी है।

जल संकट और जलवायु अनिश्चितता भी गंभीर समस्या हैं। अनियमित वर्षा, मानसून का समय से पहले जाना और बढ़ते तापमान के कारण फसल चक्र प्रभावित हो रहा है। गुजरात, जो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य है, वहां मौसम की अनिश्चितता ने बुवाई को प्रभावित किया है। महाराष्ट्र और तेलंगाना में सूखा नियमित समस्या बन चुका है।

Advertisement8
Advertisement

कीमतों में अस्थिरता भी समस्या को बढ़ा रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तो घोषित होता है, लेकिन बाजार में किसानों को अक्सर इससे कम दाम पर फसल बेचनी पड़ती है। इसके पीछे खरीद व्यवस्था की कमजोरी और मजबूरी में बिक्री का दबाव मुख्य कारण हैं।

इनपुट लागत में वृद्धि से कपास की खेती और भी चुनौतीपूर्ण हो गई है। बीज, उर्वरक, कीटनाशक और श्रम की लागत पिछले दशक में तेजी से बढ़ी है, लेकिन उत्पादन में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई।

क्या सरकारी हस्तक्षेप पर्याप्त हैं?

सरकार ने कपास निगम की खरीद योजना, पीएम फसल बीमा योजना (PMFBY), और MSP में वृद्धि जैसे कदम उठाए हैं। हालांकि इनका प्रभाव सीमित रहा है। खरीद सिर्फ संकट काल में होती है और बीमा कवरेज भी अधूरा है — भुगतान में देरी और किसान असंतोष आम हैं।

वस्त्र उद्योग को बढ़ावा देने के लिए PLI योजना और PMFME के तहत MSME समर्थन जैसे उपाय अच्छे संकेत हैं, लेकिन जब तक उत्पादन स्थिर नहीं होगा, इनका लाभ सीमित रहेगा।

तकनीकी अपनाने की गति धीमी

Agri-tech के प्रचार के बावजूद कपास में तकनीकी अपनाने की रफ्तार धीमी है। ड्रोन, AI आधारित कीट पहचान, और ड्रिप सिंचाई जैसी तकनीकें कुछ प्रगतिशील किसानों तक ही सीमित हैं। ज़्यादातर किसान पारंपरिक तरीकों पर निर्भर हैं और उन्हें विस्तार सेवाओं का सहयोग नहीं मिल पाता। इससे उनकी अनुकूलन क्षमता कम होती है।

डिजिटल समाधानों को अब पायलट से निकलकर बड़े स्तर पर लागू करने की जरूरत है — जैसे रीयल-टाइम कीट निगरानी, डिजिटल सलाह, और मूल्य बुद्धिमत्ता प्लेटफॉर्म।

किसानों की प्राथमिकताएँ बदल रही हैं

मध्य और दक्षिण भारत के किसान अब कपास से हटकर सोयाबीन, दलहन, मक्का और बागवानी जैसी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं। यह बदलाव केवल अस्थायी नहीं है — राज्यों जैसे मध्य प्रदेश में यह स्थायी संरचनात्मक परिवर्तन बनता जा रहा है। हरियाणा और पंजाब में भी जल संकट और गन्ना या धान की ओर सरकारी प्रोत्साहन के कारण कपास क्षेत्र घटा है।

यह बदलाव केवल लाभ-हानि का नहीं, बल्कि कपास के प्रति निराशा को दर्शाता है।

क्या बदलाव जरूरी हैं?

  1. बीज प्रौद्योगिकी में नवाचार की सख्त जरूरत है। भारत को ऐसे जैव प्रौद्योगिकी बीज तेजी से लाने होंगे, जो नए कीटों से लड़ सकें और कम रसायन में अधिक उत्पादन दे सकें।
  2. MSP से आगे की मूल्य गारंटी प्रणाली विकसित करनी होगी — जैसे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग या निजी कंपनियों से मूल्य श्रृंखला एकीकरण।
  3. एकीकृत फसल प्रबंधन, प्रशिक्षण और FPOs के माध्यम से किसानों को तकनीक, बाजार और सलाह से जोड़ना होगा।
  4. निर्यात रणनीति भी मजबूत करनी होगी — भारत का लागत लाभ और जिनिंग क्षमताओं का लाभ उठाते हुए।

अब समय है बड़े सुधारों का

पिछले दस वर्षों की कपास उत्पादन कहानी केवल आंकड़ों की नहीं, बल्कि नीति अंतराल, पर्यावरणीय तनाव, तकनीकी पिछड़ेपन और किसानों की निराशा की कहानी है। 0.25% की CAGR और कई वर्षों की गिरावट स्पष्ट संकेत हैं कि यह क्षेत्र संकट में है।

जब तक साहसिक सुधार नहीं किए जाते, भारत का वैश्विक नेतृत्व कमजोर पड़ सकता है। और इसे फिर से खड़ा करने के लिए केवल मौसमी उपाय नहीं, बल्कि संरचनात्मक परिवर्तन आवश्यक हैं।

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्रामव्हाट्सएप्प)

(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)

कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.krishakjagat.org/kj_epaper/

कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.en.krishakjagat.org

Advertisements
Advertisement5
Advertisement