अब मक्का नहीं, किसान फिर से बोएंगे सोयाबीन – जानें MSP बढ़ोतरी का असर
29 मई 2025, नई दिल्ली: अब मक्का नहीं, किसान फिर से बोएंगे सोयाबीन – जानें MSP बढ़ोतरी का असर – भारतीय किसान, जो मुनाफे की गणना में माहिर माने जाते हैं, खरीफ 2025 सीज़न में बड़े पैमाने पर मक्का की खेती की ओर रुख करने की तैयारी में थे। कारण था – कम लागत में खेती और अनियमित वर्षा के बावजूद बेहतर उत्पादन। लेकिन सरकार द्वारा समय पर सोयाबीन के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि ने संतुलन बना दिया, जिससे बड़े स्तर पर फसल परिवर्तन रुका और तेल बीज वाली इस फसल का रकबा सुरक्षित रहा।
मक्का की ओर झुकाव: कम लागत, अधिक स्थिरता
पिछले कुछ वर्षों में मक्का की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है। इसका मुख्य कारण है इसकी कम लागत, छोटा फसल चक्र और सिंचित एवं वर्षा आधारित दोनों परिस्थितियों में इसकी अनुकूलता। विशेष रूप से मध्य भारत के किसानों के लिए, मक्का एक आकर्षक विकल्प बनकर उभरा है क्योंकि इसमें खाद की जरूरत कम होती है, कीट प्रकोप कम होता है और अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भरता भी कम है।
भारत में कुल मक्का रकबा करीब 120 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से 70.1% खरीफ सीज़न में बोया जाता है।
मक्का के शीर्ष 5 राज्य (2024-25)
राज्य | क्षेत्र (लाख हेक्टेयर) |
---|---|
मध्य प्रदेश | 22.14 |
कर्नाटक | 19.02 |
महाराष्ट्र | 16.97 |
राजस्थान | 10.07 |
बिहार | 8.59 |
इन राज्यों के किसान हाल के वर्षों में मक्का को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं क्योंकि इसमें जोखिम कम और उत्पादन अधिक स्थिर है।
सोयाबीन की पकड़: संकट में लेकिन सरकार ने बचाया
वहीं दूसरी ओर, सोयाबीन — जो खरीफ मौसम की प्रमुख तिलहन फसल है — का रकबा 129.57 लाख हेक्टेयर है। इसके प्रमुख राज्य निम्नलिखित हैं:
सोयाबीन के शीर्ष 5 राज्य (2024-25)
राज्य | क्षेत्र (लाख हेक्टेयर) |
---|---|
मध्य प्रदेश | 58.72 |
महाराष्ट्र | 50.72 |
राजस्थान | 10.79 |
कर्नाटक | 3.73 |
गुजरात | 3.01 |
हालांकि, हाल के समय में सोयाबीन की लाभप्रदता पर दबाव बना है। बढ़ती लागत, कीटों का प्रकोप और MSP पर कमजोर खरीदी तंत्र के कारण किसान मक्का की ओर झुकाव दिखा रहे थे — खासकर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में।
MSP में वृद्धि: सरकार का रणनीतिक हस्तक्षेप
सरकार ने सोयाबीन (पीला) का MSP ₹4,892 से बढ़ाकर ₹5,328 प्रति क्विंटल कर दिया है। यह ₹436 प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी है, यानी 8.9% की बढ़ोतरी — जो सभी प्रमुख खरीफ तिलहनों में सबसे अधिक है। यह किसानों के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि सोयाबीन में भी उन्हें अच्छा लाभ मिल सकता है।
MSP तुलना तालिका:
फसल | MSP 2024-25 (₹/क्विंटल) | MSP 2025-26 (₹/क्विंटल) | वृद्धि (₹) | प्रतिशत वृद्धि |
---|---|---|---|---|
सोयाबीन | 4,892 | 5,328 | 436 | 8.9% |
मक्का | 2,225 | 2,400 | 175 | 7.9% |
हालांकि मक्का में भी ₹175 प्रति क्विंटल (7.9%) की वृद्धि हुई है, लेकिन सोयाबीन की MSP वृद्धि तुलनात्मक रूप से ज्यादा प्रभावशाली है। यह सरकार के आत्मनिर्भर भारत और तिलहन आत्मनिर्भरता मिशन के अनुरूप है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह निर्णय?
मक्का और सोयाबीन के बीच का संतुलन केवल खेती तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की खाद्य तेल सुरक्षा से भी जुड़ा है। अगर किसान बड़ी मात्रा में सोयाबीन से मक्का की ओर शिफ्ट करते, तो घरेलू तेल उत्पादन घट जाता, और भारत की पहले से ही 60% से अधिक आयात-निर्भरता और बढ़ जाती।
सरकार की इस समयबद्ध नीति ने फसल विविधता को बनाए रखने में, किसानों की आय को सुरक्षित करने में और खाद्य तेल क्षेत्र की आत्मनिर्भरताको बनाए रखने में मदद की है।
क्षेत्र परिवर्तन टला: शुरुआती संकेत
विशेषज्ञों का अनुमान था कि अगर MSP में पर्याप्त वृद्धि नहीं की जाती, तो मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में 10–15% सोयाबीन क्षेत्र मक्का में बदल सकता था — यानी 10–15 लाख हेक्टेयर का बदलाव। इससे न केवल सोयाबीन की आपूर्ति प्रभावित होती, बल्कि तेल प्रसंस्करण उद्योग पर भी असर पड़ता।
लेकिन MSP वृद्धि के बाद, बीज कंपनियों और इनपुट डीलरों से प्राप्त शुरुआती संकेत बताते हैं कि सोयाबीन क्षेत्र या तो स्थिर रहेगा या मामूली कमी आएगी। यह नीति की बड़ी सफलता है।
आगे की राह: निगरानी और खरीदी आवश्यक
हालांकि MSP वृद्धि से किसानों को भरोसा मिला है, लेकिन सुनिश्चित खरीदी व्यवस्था ज़रूरी है। विशेष रूप से सोयाबीन प्रधान क्षेत्रों में अगर सरकारी या सहकारी खरीदी नहीं हुई, तो MSP केवल कागज़ी रह सकती है।
इसके अलावा, मानसून की स्थिति और जलवायु भी बड़ी भूमिका निभाएगी। शुष्क क्षेत्रों में कुछ किसान अब भी कम लागत और जल्दी फसल देने वाले मक्का की ओर जा सकते हैं, लेकिन व्यापक स्तर पर जो बड़ा परिवर्तन डराया जा रहा था, वह टल गया है — और इसका श्रेय समय पर की गई सरकारी नीति को जाता है।
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