बजट 2024: कृषि में उत्पादकता और लचीलापन बढ़ाने के लिए सरकार की नई पहल
25 जुलाई 2024, नई दिल्ली: बजट 2024: कृषि में उत्पादकता और लचीलापन बढ़ाने के लिए सरकार की नई पहल – केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में उत्पादन और लचीलेपन को बढ़ाने के लिए एक व्यापक रणनीति का अनावरण किया है। प्रधानमंत्री के विकसित भारत के विजन पर जोर देते हुए, केंद्रीय बजट 2024-25 में कई महत्वपूर्ण योजनाओं का ऐलान किया गया है।
प्राकृतिक खेती को मिलेगा बढ़ावा
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण देने की घोषणा की है। इसका उद्देश्य किसानों को रसायन मुक्त खेती के फायदे सिखाना और जैविक उत्पादों के लिए प्रीमियम बाजारों तक पहुंच सुनिश्चित करना है। प्राकृतिक खेती किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरणीय स्वास्थ्य में सुधार करेगी।
भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत एक उप-मिशन है, जो राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) के अंतर्गत आता है।
BPKP का उद्देश्य पारंपरिक स्वदेशी कार्य प्रणालियों को बढ़ावा देना है जो किसानों को बाहरी रूप से खरीदे गए इनपुट से मुक्ति दिलाती हैं। यह बायोमास मल्चिंग, गोबर-मूत्र निर्माण के उपयोग और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी सिंथेटिक रासायनिक इनपुट के बहिष्कार पर प्रमुख जोर देते हुए ऑन-फार्म बायोमास रीसाइक्लिंग पर ध्यान केंद्रित करता है।
इस योजना का छह साल (2019-20 से 2024-25) की अवधि के लिए कुल परिव्यय 4645.69 करोड़ रुपये है।
दलहन और तिलहन में आत्मनिर्भरता
दलहन और तिलहन के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-तिलहन के तहत तिलहन उत्पादन में वृद्धि हुई है और खाद्य तेल की घरेलू उपलब्धता में सुधार हुआ है।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2022-23 में तिलहन उत्पादन 41.4 मिलियन टन तक पहुंच गया। खाद्य तेल की घरेलू उपलब्धता 2015-16 में 86.30 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 121.33 लाख टन हो गई है। इससे आयातित खाद्य तेल का प्रतिशत हिस्सा 63.2 प्रतिशत से घटकर 57.3 प्रतिशत हो गया है।
उच्च उपज देने वाली और जलवायु-अनुकूल किस्में
सरकार ने 32 खेत और बागवानी फसलों में 109 नई उच्च उपज देने वाली और जलवायु-अनुकूल किस्मों को पेश किया है। इन किस्मों को जलवायु की विभिन्न परिस्थितियों का सामना करने के लिए विकसित किया गया है, जिससे फसल उत्पादकता बढ़ेगी और कृषि पद्धतियों में सुधार होगा।
2014-15 से 2023-24 के दौरान, कुल 2593 उच्च उपज देने वाली किस्में जारी की गईं, जिनमें 2177 जलवायु-अनुकूल (कुल का 83%) जैविक और अजैविक तनाव को सहन करने वाली और 150 जैव-फोर्टिफाइड फसल किस्में शामिल हैं। 56 फसलों की 2200 से अधिक किस्मों पर 1.0 लाख क्विंटल से अधिक प्रजनक बीज का उत्पादन किया जा रहा है। जलवायु-अनुकूल प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करने से असामान्य वर्षों के दौरान भी उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई है।
डिजिटल फसल सर्वेक्षण
सरकार ने कृषि में डिजिटल तकनीक का लाभ उठाने के लिए डिजिटल सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) लागू करने की योजना बनाई है। पायलट परियोजनाओं की सफलता से उत्साहित होकर, तीन वर्षों की अवधि में राज्य सरकारों के सहयोग से यह राष्ट्रव्यापी पहल की जाएगी।
शुरुआती चरण के हिस्से के रूप में, खरीफ सीजन के दौरान 400 जिलों में एक डिजिटल फसल सर्वेक्षण किया जाएगा। यह सर्वेक्षण फसल की खेती के पैटर्न, भूमि उपयोग और उपज अनुमानों पर विस्तृत डेटा एकत्र करने के लिए डीपीआई का उपयोग करेगा। इन पहलुओं को डिजिटल बनाकर, सरकार सब्सिडी के वितरण, बीमा कवरेज और आपदा प्रबंधन सहित कृषि रणनीतियों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में सटीकता बढ़ा सकती है।
किसान क्रेडिट कार्ड योजना
किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए जन समर्थ आधारित किसान क्रेडिट कार्ड योजना शुरू की गई है। इस योजना के तहत बैंकों ने 31 जनवरी, 2024 तक, बैंकों ने 9.4 लाख करोड़ रुपए की सीमा के साथ 7.5 करोड़ केसीसी जारी किए।
एक और उपाय के रूप में, 2018-19 में मत्स्यपालन और पशुपालन गतिविधियों की कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए केसीसी का विस्तार किया गया, साथ ही कॉलेटरल फ्री ऋण की सीमा को बढ़ाकर 1.6 लाख रुपए कर दिया गया। उधारकर्ताओं, दूध संघों और बैंकों के बीच त्रिपक्षीय समझौते (टीपीए) के मामले में, कॉलेटरल फ्री ऋण 3 लाख रुपए तक जा सकता है। मत्स्यपालन और पशुपालन गतिविधियों के लिए क्रमशः 2024, 3.49 लाख केसीसी और 34.5 लाख केसीसी जारी किए गए।
झींगा उद्योग में सुधार
भारत वर्तमान में, वैश्विक मछली उत्पादन में लगभग 8% हिस्सेदारी और 174.45 लाख टन (2023-24) के रिकॉर्ड उच्च मछली उत्पादन के साथ दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है। भारत के झींगा उद्योग को मजबूत बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण ब्रूड स्टॉक की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है। इससे झींगा पालन में सुधार होगा और वैश्विक मछली उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी बढ़ेगी।
झींगा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह 2011 के 8,175 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 40,013 करोड़ रुपये हो गया है। 2023-24 में, जमे हुए झींगा का निर्यात 7.16 लाख टन था, जिसकी कीमत 40,013 करोड़ रुपये थी।
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