किसान पुत्र से किसानों के सवाल ?
लेखक: राकेश दुबे
28 दिसंबर 2024, नई दिल्ली: किसान पुत्र से किसानों के सवाल ? – सही अर्थों में यह समय देश के कृषि मंत्री शिवराज सिंह पर भारी है। जैसे देश के उपराष्ट्रपति ये वाक्य कुछ महत्य रखते हैं “कर दूसरे पद पर विराजमान व्यक्ति आपसे अनुरोध कर रहा है कि कुया कर मुझे बताएं कि क्या किसानों से वायदा किया गया था? वायदा क्यों नहीं निभाया गया? वायदा निभाने के लिए हम क्या कर रहे हैं? गत वर्ष भी आंदोलन था, इस वर्ष भी आंदोलन है। कालचक्र घूम रहा है और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं।” उपराष्ट्रपति जगदीप चनठाढ़ ने किसानों को लेकर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से ये सवाल किए हैं। यह पहली बार है कि एक ही सरकार में उपराष्ट्रपति ने कृषि मंत्री से सवाल किए हैं।
उपराष्ट्रपति खुद किसान, ग्रामीण पृष्ठभूमि के है। उन्होंने यहां तक कहा कि यदि किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य दे दोगे, तो कोई पहाड़ नहीं गिरेगा। वैसे आंदोलन इस बार पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उम्र तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक आदि राज्यों से भी किसान मोर्चे आंदोलित होंगे। उपराष्ट्रपति का सवाल है कि देश का किसान लगातार परेशान, पीड़ित और आंदोलित क्यों है? जो किसान घर बैठे हैं, वे भी आंदोलित और चिंतित है, लिहाजा आंदोलन की संख्या बही न गिनी जाए, तो किसान सड़क पर उतरेंगे।
हालांकि उपराष्ट्रपति धनखड़ ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी पर कुछ नहीं कहा और इस संबंध में गठित समिति पर भी सवाल नहीं किया, ये सवाल कहते है उपराष्ट्रपति के रूप में किसानों को एक ताकतवर, सशक्त पैरोकार मिला है। शिवराज भी जून, 2024 में ही कृषि मंत्री बने है। जो भी वायदे किए गए होंगे, वे नरेंद्र तोमर और अर्जुन मुडा के कृषि मंत्री काल के होंगे। बहरहाल भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का 17 प्रतिशत से अधिक का योगदान है और देश के कार्यबल में करीब 47 प्रतिशत कृषि और किसान का योगदान है।
देश की करीब दो- तिहाई आबादी कृषि के भरोसे है, लेकिन आज भी किसान की औसत आय 16,928 रुपए माहवार है। किसान की आय से अधिक खर्च बढ़े है और प्रति किसान 91,000 रुपए से अधिक का कर्ज है। सवाल यह भी है कि उपराष्ट्रपति किसानों के पक्ष में सार्वजनिक रूप से क्यों बोले ? और एक ही मंच पर कृषि मंत्री से सवाल क्यों किए गए?
किसान संबंधी योजनाओं और नीतियों की अकेली जिम्मेदारी कृषि मंत्री पर ही नहीं है। यदि कृषि-भूमि का मुआवजा 2014 के बाद 4 गुना नहीं मिल पा रहा है. यदि एमएसपी की कानूनी गारंटी तय नहीं की गई है, तो ऐसी तमाम समस्याओं के समाधान का दायित्व केंद्रीय कैबिनेट पर है। खासकर प्रधानमंत्री मोदी की जिम्मेदारी है, क्योंकि ऐसे नीतिगत फैसले प्रधानमंत्री के स्तर पर ही सोचे जाते है और फिर कैबिनेट में औपचारिक तौर पर पारित किए जाते हैं। यदि एक बार फिर राजधानी दिल्ली या उसके आसपास के क्षेत्रों में किसान लामबंद होकर आदोलन छेड़ते है, तो चौतरफा जन-व्यवस्था अराजक हो जाएगी। जब पिछला किसान आंदोलन समाप्त कराया गया था, तो खुद प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें आश्वस्त किया था। एक समिति गठित की गई थी, जिसकी अध्यक्षता पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल को सौंपी गई थी। उन्हें तीन कथित काले कृषि कानूनों का प्रारूपकार माना जाता रहा है। उस समिति ति की बीते दो साल से अधिक अवधि के दौरान करीब 100 बैठकें हो चुकी है, लेकिन समिति की रपट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई है। कृषि विशेषज्ञों का एक तबका मानता है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी कोई समाधान नहीं है। सिर्फ खुला बाजार देने से ही किसान के हालात बदल सकते हैं. लेकिन आआंदोलित किसानों की सबसे अहम मांग यही है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए। किसान इस बार आर-पार के आआंदोलन के मूड में है, लेकिन सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक संकेत अभी तक नहीं आया है।
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