इफको नैनो यूरिया – किसानों की आय वृद्धि के लिए एक सार्थक कदम
- अनीता बुरडक
विद्यावाचस्पति छात्रा,
पादप प्रजनन एवं अनुवांशिकी विभाग, श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर,
जयपुर (राज.)
7 मई 2022, इफको नैनो यूरिया – किसानों की आय वृद्धि के लिए एक सार्थक कदम – विश्व में सर्वप्रथम भारत इफको द्वारा नैनो तकनीक का इस्तेमाल करके नैनो यूरिया तैयार किया गया है। यह इफको नैनो यूरिया तरल माध्यम में पाया जाता है, जो पारंपरिक यूरिया का एक कारगर विकल्प है। यह इकोफे्रंडली व उच्च पोषक तत्व उपयोग क्षमता वाला एक अनूठा उर्वरक है। इफको नैनो यूरिया को इफको द्वारा गुजरात में स्थित नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेन्टर कलोल में अपनी पेटेंटेड तकनीक से विकसित किया गया है।
भारत में यूरिया प्रमुख नाइट्रोजन उर्वरक ोत है। पिछले कुछ दशकों में यूरिया की खपत में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई है। यूरिया के दाने नैनो यूरिया की तुलना में मोटे आकार के होने के कारण उसकी पृष्ठीय सतह कम होती है जिससे इसका लगभग 30-50 प्रतिशत नाइट्रोजन का उपयोग ही पौधों द्वारा किया जाता है तथा शेष बचा भाग लीचिंग, वाष्पीकरण व सतही अपवाह हो जाने के परिणामस्वरूप पौधों की नाइट्रोजन पोषक तत्व उपयोग करने की क्षमता कम हो जाती है। इसके विपरीत इफको नैनो यूरिया तरल में अति सूक्ष्म आकार के कण पाये जाते हैं। जिसमें एक कण का आकार लगभग 30 नैनोमीटर होता है। कणों का आकार अतिसूक्ष्म होने के कारण इसका पृष्ठीय क्षेत्र व आयतन अनुपात सामान्य या पारंपरिक यूरिया की तुलना में करीब 10,000 गुना अधिक होता है। जिसके परिणाम स्वरूप पौधों द्वारा पोषक तत्वों की उपयोग करने की क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
इफको नैनो यूरिया तरल की 500 मि.ली. की एक बोतल में करीब 40,000 पीपीएम के बराबर नाइट्रोजन पाया जाता है, जो सामान्य या पारंपरिक यूरिया के एक बैग से प्राप्त नाइट्रोजन के बराबर है। उसके 500 मि.ली. की एक बोतल की कीमत इफको द्वारा 240 रु. तय की गई है। जो सामान्य यूरिया के एक बैग के मूल्य से करीब 10 प्रतिशत कम है। इस प्रकार यह किसानों के लिए एक सस्ता, सुलभ व टिकाऊ खेती के लिए अच्छा नाइट्रोजन उर्वरक है।
उपयोग विधि
इफको नैनो यूरिया तरल को 2-4 मि.ली. प्रति लीटर पानी के घोल तैयार करके पर्णीय छिडक़ाव के रूप में खड़ी फसल में दिया जाना चाहिए। अधिक नाइट्रोजन मांग वाली फसलों जैसे- अनाज वाली फसलें, सब्जी वाली फसलें आदि में 4 मि.ली. की दर से खड़ी फसल में दो बार पर्णीय छिडक़ाव के रूप में तथा कम नाइट्रोजन मांग वाली फसल जैसे- दलहन आदि में 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से खड़ी फसल में केवल एक बार पर्णीय छिडक़ाव किया जाना चाहिए। अधिक नाइट्रोजन मांग वाली फसलों में प्रथम छिडक़ाव बुवाई के अंकुरण के 30-35 दिन बाद तथा दूसरा छिडक़ाव फूल आने के 7 दिन पूर्व में किया जाना चाहिए।
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