फल बगीचे लगाने से पूर्व जरूरी कार्य
- पिन्टू लाल मीना
सहायक कृषि अधिकारी सरमथुरा, धौलपुर
फलों के बाग लगाना अन्नदाता के लिए आमदनी का अच्छाखासा जरीया भी साबित होता जा रहा है. मगर बगैर पूरी जानकारी के बाग लगाना घाटे का सौदा साबित होता है पूरी जानकारी ले कर के वैज्ञानिक तरीके से बाग लगाने में ही ज्यादा भलाई है. उत्पादन और जनसंख्या के हिसाब से हमें अभी हमारे देश और राज्य का उत्पादन कम है जिसे बढ़ाने के लिए फल बाग लगाने जरूरी है ।
बगीचे लगाने से पूर्व हमे कुछ बातों कक जरूर ध्यान रखना चाहिए :-
फलों के बाग की योजना : –
ज्यादातर फलों के पेड़ लंबे समय के लिए होते?हैं. इसलिए बाग इस तरह लगाए जाएं ताकि उन से फायदा मिलता रहे, देखने में अच्छा लगे, देखभाल में कम खर्च हो, पेड़ स्वस्थ रहें और बाग में मौजूद साधनों का पूरा इस्तेमाल हो सके. उद्यान यानी बाग की योजना इस प्रकार की होनी चाहिए कि हर फल वाले पेड़ को फैलने के लिए सही जगह मिल सके व फालतू जगह नहीं रहे और हर पेड़ तक सभी सुविधाएं आसानी से पहुंच सकें.
फलों के उत्पादन के लिए सिंचाई का इंतजाम, मिट्टी व जलवायु वगैरह ठीक होने चाहिए. उद्यान यानी बाग में काम करने के लिए मजदूर व तकनीकी कर्मचारी भी होने चाहिए.
2. भूमि का चयन :
आप प्रधानमंत्री मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के अंतर्गत अपने नजदीकी कृषि पर्यवेक्षक के माध्यम से करवा सकते है। फल उद्यानों यानी फलों के बगीचों के लिए गहरी, दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अच्छी रहती है. जमीन में अधिक गहराई तक कोई भी सख्त परत नहीं होनी चाहिए. जमीन में भरपूर मात्रा में खाद होनी चाहिए व जल निकासी का सही इंतजाम होना चाहिए. लवणीय व क्षारीय जमीन में बेर, आंवला, लसोड़ा, खजूर व बेलपत्र आदि फल लगाने चाहिए.
3. पौधों का चयन :
राजस्थान की जलवायु में खासतौर से अनार, आम, पपीता, करौंदा, आंवला, नीबू, मौसम्बी, माल्टा, संतरा, अनार, बेल, बेर व लसोड़ा आदि फलों की खेती आसानी से की जा सकती?है. जिन भागों में पाले का ज्यादा असर रहता?है, उन इलाकों में आम, पपीता व अंगूर के बाग नहीं लगाने चाहिए. अधिक गरमी व लू वाले इलाकों में लसोड़ा व बेर के पेड़ लगाने चाहिए. अधिक नमी वाले इलाकों में मौसमी, संतरा व किन्नू के पेड़ लगाने चाहिए.
खास फलों की कुछ किस्में
फल किस्में
आंवला कृष्णा, कंचन, एनए 7, आनंद 1, बनारसी
अमरूद लखनऊ 49, अर्कामृदुला, इलाहाबादी सफेदा, रेडफ्लेस
नीबू कागजी, बारहमासी, पंत लाइम, विक्रम, परमलिन
बेर गोला, सेव, उमरान, मुंडीया
अनार गणेश, अरक्ता, मृदुला सिंदूरी
आम दशहरी, दशहरी 51, लंगड़ा, तोतापुरी, केशर, हापूस
पपीता कुर्गहनीड्यू, पूसा मेजस्टी, पूसा नन्हा, हनीड्यू, पूसा डेलीसीयस, रेडलेडी
अंगूर थामसन सीडलैंस, अर्काकश्णा, अर्काश्याम, ब्यूटी सीडलैस, परलेट
खजूर हलावी, खरदावी, शामरान, बरही
4. वायुरोधी पेड़ लगाना :
गरम व ठंडी हवाओं और अन्य कुदरती दुश्मनों से रक्षा करने के लिए खेत के चारों ओर देशी आम, जामुन, बेल, शहतूत, खिरनी, देशी आंवला, कैथा, शरीफा, करौंदा, इमली आदि फलों के पेड़ लगाने चाहिए. इन से कुछ आमदनी भी होगी व खेत गरम व सर्द हवाओं से भी बचा रहेगा. अगर बाग का इलाका कम हो तो केवल उत्तर व पश्चिम दिशा में 1 या 2 लाइनों में इन वृक्षों को लगा सकते?हैं. ध्यान रहे कि इन पेड़ों की जड़ें बाग में घुस कर पोषक तत्त्वों का इस्तेमाल करने लग जाती हैं, जिस का नितिजा यह होता है कि उद्यान की उपज में कमी आने लगती है. इस से बचने के लिए उद्यान व बाड़ के बीच में 3 साल में 1 बार 3 फुट गहरी खाई खोद कर जड़ों को काट देना चाहिए.
5. सिंचाई :
बगीचा लगाने से पहले सिंचाई कैसे होगी, इस पर ध्यान देना जरूरी है. पानी की कमी वाले इलाकों में बूंदबूंद सिंचाई विधि का इस्तेमाल करना चाहिए, जिस से पानी व मेहनत दोनों की बचत होगी और पौधों को जरूरत के हिसाब से पानी मिलने के कारण पैदावार में बढ़ोतरी होगी. सिंचाई की नालियां पौधों की कतारों के बीच से निकाल कर दोनों ओर पौधों की जरूरत के हिसाब से थाले बना कर जरूरत के हिसाब से पानी दिया जाना चाहिए. पौधों की कतार में सीधे सिंचाई करने से पौधों में रोग फैलने की संभावना बढ़ जाती है और नाली का पहला पौधा काफी कमजोर हो जाता है. लवणीय व क्षारीय पानी सभी फलों के पेड़ों के लिए सही नहीं होता?है. इन इलाकों में आंवला, बेर, खजूर, कैर, लसोड़ा आदि फलों के पेड़ लगाने चाहिए. पानी के भराव वाले इलाकों में पानी निकास का सही इंतजाम होना चाहिए.
6. फल के पेड़ों का सही दूरी पर रेखांकन करना :- उद्यान का रेखांकन करने के लिए सब से पहले खेत के किसी एक किनारे से जरूरी दूरी की आधी दूरी रखते हुए पहली लाइन का रेखांकन करते हैं. इस के बाद हर लाइन के लिए जरूरी दूरी रखते हुए पूरे खेत में दोनों किनारे से इसी विधि द्वारा रेखांकन कर लेते हैं व निशान लगी जगहों पर पौधे रोपते हैं. बगीचों को वर्गाकार विधि से ही लगाना चाहिए, क्योंकि यह सब से आसान तरीका है. इस में सभी प्रकार के काम आसानी से किए जा सकते हैं. पौधे लगाने से 1 महीने पहले (मई- जून) गड्ढे खोद कर 20 से 25 दिनों तक गड्ढों को खुला छोड़ देना चाहिए, ताकि तेज धूप से कीटाणु खत्म हो जाएं. गड्ढे खोदते समय ऊपर की आधी उपजाऊ मिट्टी एक तरफ रख देनी चाहिए व आधी मिट्टी दूसरी तरफ डालनी चाहिए।
खास फलों के पेड़ों की दूरी व गड्ढों का आकार
फसल पौधों व कतारों के गड्ढों का प्रति हेक्टेयर
बीच की दूरी (मीटर) आकार (फुट) पौधों की संख्या
आंवला 8×8 3×3×3 156
आम 10×10/8×8 3×3×3 100/156
नीबू/मौसमी 5-6×5-6 1.5×1.5×1.5 277
अमरूद 8×8 2.5×2.5×2.5 156
लसोड़ा 10×10 3×3×3 100
करौंदा 4×4 1.5×1.5×1.5 625
अंगूर 3×3 1.5×1.5×1.5 1111
पपीता 3×3 1.5×1.5×1.5 1111
पपीता 2×2 1.5×1.5×1.5 2500
अनार 4×4 1.5×1.5×1.5 625
बेर 6×6 3×3×3 277
7. गड्ढों की भराई :-
गड्ढों की खुदाई के 1 महीने बाद गड्ढों को गोबर की सड़ी हुई खाद 20 से 25 किलोग्राम, सुपर फास्फेट 250 ग्राम, क्यूनाल्फोस 1.5 फीसदी 50 ग्राम, नीम की खली 2 किलोग्राम, क्षारीय जमीन हो तो 250 ग्राम जिप्सम और गड्ढे की मिट्टी डाल कर भर देना चाहिए. मिश्रण में खेत की ऊपरी मिट्टी को मिलाना चाहिए. बरसात शुरू होने से पहले मिश्रण से गड्ढे को खेत की सतह से कुछ ऊंचाई तक दबा कर भर देना चाहिए व काफी मात्रा में पानी डाल देना चाहिए, ताकि गड्ढे की मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए. पौधों की रोपाई जहां तक मुमकिन हो 2 से 3 बार अच्छी बारिश होने के बाद ही करनी चाहिए.
8. पौधा रोपाई :- सरकारी व अच्छी नर्सरी से खरीदे गए पौधों को तैयार गड्ढों में रोप देना चाहिए. रोपाई जुलाई- अगस्त में शाम के समय करनी चाहिए. पौधे को रोपने से 2 घंटे पहले लिपटी हुई घास पिंड व पालिथीन थैली को थोड़े समय के लिए पानी में रख कर उस में भरी हवा को बाहर निकालें जिस से पौधा लगाते समय पिंड की मिट्टी बिखरे नहीं. पौधा लगाने से पहले लिपटी हुई घास व पालीथीन थैली को मिट्टी के पिंड से हलके से हटा देना चाहिए व जड़ों को पूरी तरह बचा कर रखना चाहिए. पौधे पर लगे पैबंद वाले स्थान व शाखा के जुड़ाव वाले बिंदु को जमीन के तल से 25 सेंटीमीटर ऊपर रखना चाहिए. जरूरत हो तो पौधे को सहारा दें ताकि पौधा झुके नहीं. पौधा लगाने के बाद सिंचाई करें व जरूरत के हिसाब से पानी देते रहें. पैबंद के नीचे से निकलने वाली शाखाओं व रोग लगी शाखाओं को हटाते रहें..
9. सिंचाई : शुरू के 2 महीने तक पौधों को पानी की ज्यादा जरूरत होती?है. इस समय 2-3 दिनों के अंतर पर पानी देना चाहिए. 2 सिंचाइयों के बीच का समय जगह, मौसम, जमीन, फलों की किस्म, फलन का समय व वहां की जलवायु आदि पर निर्भर करता?है.
* अगर बारिश के मौसम में बारिश होती रहे तो पानी देने की जरूरत नहीं होती?है.
* सर्दी के मौसम में 10 से 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए.
* गरमी के मौसम में 7 से 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.
10. जलनिकास : बाग को उस की जरूरत से कम पानी देने से पेड़ों की बढ़वार कम होती है, जबकि जरूरत से अधिक पानी देने से भी नुकसान होता है.
पानी की अधिक मात्रा देने से जमीन पर पानी भर जाता?है और पेड़ों के खाद्य पदार्थ जमीन की निचली सतहों में चले जाते हैं. फलों में पानी की अधिक मात्रा होने के कारण मिठास कम हो जाती है व स्वाद खराब हो जाता?है. इसलिए ज्यादा पानी को तुरंत खेत से निकाल देना चाहिए. उद्यान क्षेत्र का जलस्तर 2 से 3 मीटर नीचे रहना चाहिए.