Horticulture (उद्यानिकी)

मक्का ‘बेबी कॉर्न’ की खेती करें

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मिट्टी और जलवायु –
यह सभी प्रकार की मिट्टी में उत्पन्न की जा सकती है जहां पर मक्का की खेती की जा सकती है वहीं पर यह खेती भी की जा रही है। अर्थात् सर्वोत्तम भूमि दोमट-भूमि जो जीवांश-युक्त हो उसमें सुगमता से खेती की जा सकती है तथा मिट्टी का पी.एच. मान 7.0 के आस-पास का उचित होता है। बेबीकोर्न के लिये हल्की गर्म एवं आर्द्रता वाली जलवायु उत्तम रहती है। लेकिन आजकल कुछ किस्में जो संकर हैं, वर्ष में तीन-चार बार उगायी जाती हैं तथा ग्रीष्म एवं वर्षाकाल इसके लिए उपयुक्त रहता है ।
उन्नत किस्में-
बेबीकोर्न (मक्का) के उत्पादन हेतु मक्का की चार श्रेष्ठ किस्में हैं जो निम्नलिखित हैं जिनमें तीन संकर एवं एक देशी चयन की हुई है-
संकर-बी.एल. 42, संकर-एम.ई.एच.-133, संकर-एम.ई.एच.-114 तथा अर्ली-कम्पोजिट
उपरोक्त किस्मों में से बेबीकॉर्न का आकार लगभग लम्बाई 17.0 से 18.8 सेमी. तथा व्यास 15.3 से 1.74 सेमी. छिलका सहित तथा छिलका रहित (गिल्ली) लम्बाई 8.2 से 9.3 सेमी. तथा व्यास 1.16 से 1.18 सेमी. के बीच होता है तथा पौधों की ऊंचाई 164 से 200 सेमी. तक होती है जो 48 से 58 दिन में काटी जा सकती है ।

भारतवर्ष में मक्का खेती पर अब खाद्य-प्रसंस्करण उद्योग को ध्यान में रखते हुए प्रगति के क्षेत्र में एक नई उपलब्धि सब्जी एवं खाद्य- उत्पादों के लिये अधिक ध्यान दिया जा रहा है । यह एक मक्का या भुट्टा का ही स्वरूप है । ‘बेबीकोर्न’ शब्द का तात्पर्य शिशु-मक्का से है जिसमें पौधे के मध्यम भाग पर गुल्ली या पिंदया निकल आती है जो रेशम जैसी कोमल कोंपल के साथ वृद्धि कर उग आती है । बेबीकोर्न (शिशु-मक्का) कहलाता है। यह एक अत्यंत स्वादिष्ट एवं पोषक-युक्त उत्पाद है। जिसकी आजकल भारत एवं विदेशों जैसे- थाईलैंड और ताइवान निर्यातक देश के रूप में उभरे हैं। कृषकों ने इसको बड़े स्तर पर व्यवसाय के रूप में विकसित कर लिया है। भारतीय मक्का उत्पादक बेबीकार्न से अभी तक उपयोग एवं आर्थिक महत्व से अपरिचित थे। यही कारण है कि अभी तक बेबीकोर्न का प्रचलन नहीं हो पाया। अब मक्का उत्पादक इसको भी सही एवं उसी तरह से उगा सकते हैं तथा मक्का की अपेक्षा 3-4 गुणा अधिक शुद्ध लाभ भी प्राप्त होता है ।

खाद एवं उर्वरक –
सड़ी गोबर की खाद 10-12 टन प्रति हेक्टर तथा नत्रजन 150-200 किग्रा, फास्फोरस 60 कि.ग्रा. तथा पोटाश 40 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर दें। नत्रजन को तीन भागों में बांटे । प्रथम भाग बुवाई के समय, फास्फोरस व पोटाश भी इसी समय दें । नत्रजन का दूसरा भाग 20-25 दिन बाद सिंचाई के तुरन्त बाद दें तथा तीसरा भाग बल्लियां निकलनी आरम्भ होने के समय देने से बल्लड या बेबीकॉर्न की अधिक उपज मिलती है।
बीज की मात्रा –
बेबीकॉर्न प्राप्त करने हेतु 30-40 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर बीज की आवश्यकता होती है ।
बुवाई समय एवं विधि –
बीज की बुवाई वर्ष में तीन या चार बार की जा सकती है। इसलिये प्रथम बुवाई मार्च-अप्रैल, जून-जुलाई, सितम्बर-अक्टूबर तथा कम ठंड वाले क्षेत्रों में दिसम्बर-जनवरी के माह में भी की जा सकती है। दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में तीन मुख्य फसलें ली जा सकती हैं जिनकी अवधि 50-60 दिन की होती है । बुवाई की विधि आमतौर पर पंक्तियों में की जाती है। इन पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी 40 सेमी. तथा पौधे से पौधे की आपस की दूरी 20 सेमी. रखते हैं क्योंकि पौधे अधिक बड़े नहीं होते हैं । बुवाई देशी हल या ट्रैक्टर द्वारा करनी चाहिए। बीज की गहराई 3-4 सेमी. रखनी चाहिए तथा बोते समय नमी पर्याप्त मात्रा में हो । इस प्रकार से इस दूरी की बुवाई का लगभग 1,50,000 पौधों की संख्या प्रति हेक्टर प्राप्त होगी ।
सिंचाई –
सर्वप्रथम सिंचाई बुवाई से पहले करें क्योंकि बीज अंकुरण हेतु पर्याप्त नमी का होना नितान्त आवश्यक है। बुवाई के 15-20 दिन बाद मौसमानुसार जब पौधे 10-12 सेमी. के हो जायें तो प्रथम सिंचाई करनी चाहिए तत्पश्चात् 12-15 दिन के अन्तराल से सर्दियों की फसल में तथा 8-10 दिन के अन्तराल से ग्रीष्मकालीन फसल में पानी देते रहना चाहिए। क्योंकि बेबीकोर्न या गिल्ली बनते समय पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है ।
खरपतवार-
वर्षा एवं ग्रीष्मकालीन फसल में कुछ खरपतवार या जंगली घास हो जाती हैं । जिनको निकालना जरूरी होता है। अन्यथा मुख्य फसल के पौधों से खाद्य प्रतियोगिता करेंगे। अर्थात् इन्हें निकालने के लिये 2-3 खुरपी से गुड़ाई करें क्या साथ-साथ हल्की-हल्की मिट्टी भी पौधों पर चढ़ावे । जिससे पौधे हवा में गिर न पायें ।
बेबीकॉर्न की तुड़ाई –
जब शिशु-गिल्लियों (बेबीकोर्न) को भुट्टे के छिक्कल से रेशमी कोंपल निकलने के 2-3 दिन के अन्दर ही सावधानीपूर्वक हाथों से तोडऩा चाहिए जिससे पौधे की ऊपरी व निचली पत्तियां टूटने न पायें। इस प्रकार से शिशु गिल्लियों को हर तीसरे-चौथे दिन अवश्य तोड़ें। इस प्रकार की वर्तमान किस्मों से 4-5 गिल्लियां प्राप्त कर सकते हैं ।
उपज –
बेबीकोर्न मक्का की एक फसल से 20-25 क्विंटल प्रति हैक्टर औसतन प्राप्त कर सकते हैं।
हरे चारे की उपज –
इन बेबीकोर्न की फसल प्राप्त करने के पश्चात् हरा चारा भी पौधों से प्राप्त किया जा सकता है । इस प्रकार से हरा चारा भी किस्म के अनुसार 250 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टर प्राप्त होता है ।
बेबीकॉर्न का बाजार मूल्य 30 रुपये प्रति कि.ग्रा. तथा हरे चारे का 70 रुपये प्रति क्विंटल होता है ।

  • संतरा हरितवाल
  • विवेक शर्मा
  • कौशल्या चौधरी
  • वर्षा गुप्ता
    email : santraharitwal7@gmail.com
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