जरूरी है समृद्ध कृषि व्यवसाय का संवर्धन
कृषि-पशुधन एवं संसाधनों के सरंक्षण की प्रणाली की ओर – जबकि कृषि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का 17 प्रतिशत और पशुधन की हिस्सेदारी करीब 4 फीसदी है। कृषि को लाभ का व्यवसाय तथा कृषकों की आय दोगुना करने का लक्ष्य प्रधानमंत्री के 2022 तक की रणनीति में कृषि, कृषि आधारित उद्यम तथा सहयोगी व्यवसायों से ही यह सफलता हासिल होगी। इसमें सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि छोटे/लघु कृषकों को खेती के लाभकारी मॉडल एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाना होगा जो संसाधनों के संरक्षण में महत्वपूर्ण तो होगा ही खेती के व्यवसाय से सतत् आय प्राप्ति का जरिया भी बनेगा।
एकीकृत कृषि प्रणाली:
खेती में लगातार एक ही प्रकार की फसलें उगाने व एक ही तरह के आदानों का प्रयोग करने से न केवल फसलों की पैदावार में कमी आई बल्कि उनकी गुणवत्ता में भी गिरावट दर्ज की गई है। एक ही प्रकार की फसल प्रणाली न तो आर्थिक दृष्टि से लाभदायक है और न ही पारिस्थिति की दृष्टि से अधिक उपयोगी है। अत: प्रक्षेत्र पर धान्य फसलों के साथ दलहन, तिलहन, बागवानी फसलों, पशुपालन, मछलीपालन, मधुमक्खी पालन, कृषि वानिकी जैसे अनेकों लाभकारी तकनीकी मॉडल्स को अपनाकर न केवल लाभ होगा बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का भी उचित उपयोग होता है। एकीकृत कृषि प्रणाली का मुख्य लक्ष्य ग्रामीण पर्यावरण एवं मृदा स्वास्थ्य का बचाव और उच्च कृषि बढ़वार बनाये रखने, ग्रामीण रोजगार सृजन व बेहतर आर्थिक लाभ पाने हेतु कृषि-बागवानी-पशुधन-मत्स्यकी-वानिकी प्रणाली के पक्ष में अनुकूल स्थितियाँ पैदा करना है। अत: एकीकृत कृषि प्रणाली के अभिन्न अंगों/तकनीकों को अपनाकर अधिक लाभ कमा सकें । इसके लिये कुछ प्रणालियों/घटकों का विवरण:-
| जब से सभ्यता शुरू हुई है तब से कृषि के साथ संबद्ध कृषि क्रियाकलाप हमारी आजीविका के अभिन्न अंग रहे हैं। ये न केवल खाद्य और शक्ति के रूप में योगदान देते रहे हैं बल्कि इनसे पारितंत्रीय संतुलन कायम रखने में भी मदद मिलती रही है। भौगोलिक विविधता और जलवायु के चलते संबद्ध कृषि क्षेत्र की देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज हमारी खेती से पशुधन का महत्व नदारद सा हो रहा है। लोग मशीनों और रसायनों पर अधिक निर्भर होते चले जा रहे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण उनके त्वरित परिणाम की महत्वाकांक्षा होती है। लेकिन इस महत्वाकांक्षा ने कृषि, कृषक और पशुधन के प्राकृतिक संवर्धन को नष्ट करने का प्रयास किया है। |
फसल प्रणाली:
लाभकारी कृषि के परिणामों के लिये क्षेत्रानुकूल फसलों की उन्नत व अनुशंसित प्रजातियों के साथ प्रकृति के अनुकूल सामंजस्य रखने वाली फसलों, नगदी फसलों इत्यादि के फसल चक्रों में पशुचारा फसलों का समावेश तथा भूमि की उपयुक्तता के अनुरूप तालमेल रखते हुए लाभकारी फसलों का समावेश किया जाना चाहिए। जो कृषकों की रूचि, संसाधनों की अनुरूपता के अनुसार लेनी होगी।
बागवानी प्रणाली:
कृषि में बागवानी का अभिन्न योगदान है। फल-फूल व सब्जियाँ-मसाला फसलों को फसल के क्रम में रखते हुए नगद फसलों के रूप में लाभ कमाया जा सकता है। शिवपुरी जिले के परिप्रेक्ष्य में टमाटर, शिमला मिर्च, शकरकंद, कद्दू, अजवाइन, कलोंजी जैसी फसलें तथा पपीता, अनार, अमरूद व नींबू वर्गीय फलों से अच्छा लाभ प्राप्त हो रहा है।
अन्य सहयोगी उद्यमों में रेशम कीटपालन, ऐमूपालन, वर्मीकम्पोस्टिंग एवं वर्मीकल्चरिंग जैविक आदानों की आपूर्ति हेतु नीम/करंज आधारित पौध संरक्षण उत्पादों की उपलब्धता, जड़ी बूटियों का उत्पादन एवं एकत्रीकरण-गिलोय, सफेद मूसली, शंखपुष्पी एवं पवार इत्यादि महत्वपूर्ण है जो शिवपुरी जिले में संवर्धित, संरक्षित है तथा आय का स्त्रोत बनी हुई है।
जरूरी है सूचना एवं प्रौद्योगिकी से जुड़ाव: देश में पहली बार ई-पशुधन पोर्टल www.epashuhaat.gov.in लांच किया गया है। यह पोर्टल देशी नस्लों के लिये प्रजनकों और किसानों को जोडऩे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इससे किसानों को देशी नस्लों की नस्लवार सूचना प्राप्त होगी। पशु क्रय-विक्रय में सहायक होंगी।
संबद्ध कृषि क्षेत्र का संवर्धन और आय का सर्जन का दायरा वर्ष 2022 तक दोगुनी करने के लक्ष्य के लिये क्रियाशीलता, एकीकृत कृषि प्रणालियों एवं सहयोगी उद्यमों, तकनीकों एवं प्रबंधन आयामों से बढ़ रही है। जिसे व्यक्तिगत एवं संस्थागत प्रयासों से और अधिक समर्पित व प्रोत्साहन करने की आवश्यकता है। एकीकृत कृषि प्रणाली की तकनीक और कार्यप्रणाली को किसानों तक पहँुचाकर देश में कृषि और संसाधनों की मात्रा व उनकी गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है। लघु व सीमांत कृषकों के लिये बारानी क्षेत्रों के जोखिम कम कर अधिक आय लेने के लिए एकीकृत कृषि प्रणाली एक आवश्यक कदम और समय की मांग है। साथ ही नवीनतम व विकसित तकनीक को किसानों तक पहुंचाने के लिए प्रसार की आवश्यकता है। जिससे किसान लाभकारी कृषि को अपनाकर अधिक लाभ कमा सके। आय बढ़ा सके तथा पारिस्थिति संतुलन में अहम योगदान/सामंजस्य को बढ़ाते हुए देश की तरक्की में योगदान दे सकें।
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सहायक उद्यम पशुधन पूर्ण, पूरक और सहायक उद्यम के रूप में पशुधन उद्यम कृषि क्षेत्र में मजबूत स्तम्भ के रूप में उभर रहा है। ये उद्यम कृषकों/ग्रामीण युवाओं को सस्ता और पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने के अलावा भूमिहीनों, लघु एवं सीमांत किसानों और महिलाओं के लिये लाभकारी, रोजगार सृजन में अहम भूमिका निभा रहा है। इसमें प्रमुख स्थान रखते हैं:-
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मांस और अण्डे की उपलब्धता के लिये व्यावसायिक स्तर पर मुर्गीपालन करना या छोटे व सीमांत कृषकों को घर के पिछवाड़े में मुर्गीपालन एक सहयोगी उद्यम ही नहीं करंट ए.टी.एम. की भूमिका के तौर पर कार्य करना है। जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी का फैलाव हुआ परिणामों के रूप में सार्थक निष्कर्ष भी दिखने लगे ऐसा ही कुछ हुआ है शिवपुरी जिले में कुक्कुट पालन की दिशा में कृषि विज्ञान केन्द्र शिवपुरी की पहल ने ओवर हेड मुर्गीपालन यूनिट जो प्रदर्शन बतौर कृषि विज्ञान केन्द्र पर कड़कनाथ नस्ल की मुर्गीपालन के साथ शुरू किया जो किसानों में लाभकारी परिणामें के रूप में सार्थक हो रही है। इसी क्रम में घर के पिछवाड़े छोटे कृषकों को भी कड़कनाथ नस्ल उपलब्ध करा कृषि विज्ञान केन्द्र ने नई पहल को प्रसारित कराया है।
जल कृषि के रूप में मत्स्य पालन संसाधनों की उपलब्धता अनुरूप कृषकों के लिये मत्स्य पालन व्यवसाय एकीकृत कृषि प्रणाली में बहुत ही लाभकारी व्यवसाय है। शासन की लाभकारी योजनाओं के माध्यम से लाभ लेते हुए मत्स्य पालन के साथ अन्य सहायक उद्यमों में जाल निर्माण, नाव, नायलोन, तार, रस्सा उद्योगों का भी विकास होता है जो रोजगार के अवसर पैदा करता है। मत्स्य पालकों को उन्नत तकनीकी की जानकारी तथा प्रशिक्षण लेकर सुदृढ़ तरीके से इस व्यवसाय से आय में वृद्धि कर सामाजिक और आर्थिक स्तर पर सुधार किया जा सकता है।
भूमिहीन श्रमिकों, छोटे किसानों व बेरोजगार ग्रामीण युवाओं के लिए पशुपालन एक अच्छा व्यवसाय है। पशुधन प्रबंध में भेड़-बकरियों का पालन भी करंट ए.टी.एम. से कम नहीं होता। बकरी के दूध की स्वास्थ्य के लिये उपयुक्त, औषधीय महत्व तो भेड़ों से ऊन उत्पादन तथा माँस की उपलब्धता होती है। छोटे/भूमिहीन कृषक शासन की योजनाओं से लाभ लेकर इस व्यवसाय में लाभ, प्रशिक्षण प्राप्त कर कुशाल तकनीक से यह व्यवसाय शुरू कर सकते हैं। ऐसे भूखण्डों जो खेती में उपयोगी नहीं हो पा रहे वहां चक्रीकरण तरीके (रोटेशनल ग्रेजिंग सिस्टम), स्टॉल फीडिंग इत्यादि उन्नत तरीकों से भेड़-बकरी का पालन प्रशिक्षण उपरांत कर ग्रामीण क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कर लाभकारी कृषि की ओर सार्थकता से बढ़ा जा सकता है। इसके लिये बकरी की उन्नत नस्लें जमुनापारी, बरबरी, सिरोही तो भेड़ की अविशान महत्वपूर्ण है।
व्यावसायिक स्तर पर मधुमक्खीपालन को एग्रीकल्चर कहते हैं जिसे मौन पालन के नाम से अधिक जानते हैं। कृषि आाधारित यह व्यवसाय पर्यावरण संवर्धक, पारितंत्र हितैषी और विकास की धारणीयता का वाहक है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार की सघन संभावना वाले इस व्यवसाय के आर्थिक उत्पाद, शहद, शाही जैली, मोम, पराग, मौन विष आदि है, जो बहुत कीमती और औषधीय उत्पाद है। मधुमक्खीपालन से फसलों में भी उत्पादन वृद्धि होती है शिवपुरी जिले में अजवाइन, सरसों व बरसीम तथा फूलों की फसलों के साथ इस लाभकारी व्यवसाय से युवा कृषक प्रशिक्षण उपरांत जुड़ रहे हैं।