Farming Solution (समस्या – समाधान)

पौधों में तनाव कम कर फसलों की पैदावार कैसे बढ़ाएं ?

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05 सितंबर 2020, इंदौर। पौधों में तनाव कम कर फसलों की पैदावार कैसे बढ़ाएं ?कृषक जगत फेसबुक लाइव की श्रृंखला में गत दिनों अमेरिकी कम्पनी सायटोजाइम के दक्षिण -पूर्व एशिया के निदेशक श्री आर.के. गोयल और वरिष्ठ कृषि विज्ञानी श्री उमेश वर्मा ने पौधों के तनाव को कम करने के कारणों और फसलों की पैदावार बढ़ाने में सहायक होने वाले सायटोजाइम के उत्पादों पर विस्तार से प्रकाश डाला. अंत में आयोजित प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम में किसानों, श्रोताओं/दर्शकों की जिज्ञासाओं का भी समाधान किया गया.

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नई तकनीक

श्री गोयल ने आरम्भ में स्पष्ट किया कि सायटोजाइम कम्पनी है, उत्पाद नहीं. यह कम्पनी 1975 में अमेरिका के साल्ट लेक सिटी, उटा स्टेट में श्री स्टीव वागमैन द्वारा स्थापित की गई थी. सायटोजाइम 40 देशों में काम कर रही है. देश में हजारों वर्षों से हो रही खेती में गत 150 सालों में बहुत बदलाव आया है. लेकिन निकट भविष्य नई तकनीक का है. खेती के लिए अच्छे बीज जरुरी है. लेकिन अब भी हमारे देश में बीजोपचार, पौधों की खुराक की जानकारी का अभाव, स्प्रे की तकनीक और भंडारण की कमियां हैं. पौधों में तनाव को दूर करने की नई तकनीक को अपनाकर बेहतर उत्पादन लिया जा सकता है. आपने बताया कि तीन साल के अनुसंधान के बाद गत जुलाई में हमने तरल जि़ंक के दो ब्रांड लांच किए हैं, जिसकी बहुत मांग है. साइटोजाइम 1984 से देश में कार्य कर रही है, लेकिन अब कोर्टिवा, यूपीएल, जेयू एग्री साइंस और ग्लोबल एग्री जेनेटिक्स जैसी कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही है. आपने क्रॉप मैक्स, मैकरीना, एक्सपर्ट, सीड प्लस और अडोरा जैसे उत्पादों की विशेषता बताते हुए कहा कि सोयाबीन फसल में दो वर्ष पूर्व कोटा में किए गए परीक्षण में हर्बीसाइड के साथ कम्पनी उत्पाद मैकरीना के प्रयोग से उत्पादन में 40 प्रतिशत की वृद्धि हो गई. ईडीटी जिंक की तुलना में साइटोजाइम जिंक डालने से 8 क्विंटल/हेक्टर उत्पादन ज्यादा मिलता है. यह दो घंटे में ही पौधे को मिल जाता है. साइटोजम पौधों को तनावमुक्त रखने की तकनीक है. जिसमें हमारी कोशिश है कि किसानों को उनकी लागत का चार -पांच गुना ज्यादा फायदा मिले.

उत्पादन कैसे बढ़ाएं

श्री उमेश वर्मा ने पौधों के तनाव को कम कर उत्पादन बढ़ाने की तकनीक पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि डॉ. ब्रे और उनकी टीम ने 5 माह के अध्ययन में बताया कि पौधों की वृद्धि के समय यदि कोई रुकावट आती है तो वह पौधे के तनाव का कारण बनती है. यह तनाव तापमान का कम-ज्यादा होना, सूखा होना, पोषक तत्वों की कमी होना, रोग और कीटों का प्रकोप का होना, खरपतवार का होना और आवश्यकता से अधिक दवाई का प्रयोग करने से भी पौधे तनाव में आ जाते है. पौधे के रोम छिद्र बंद हो जाते हैं और वह ठीक से साँस नहीं ले पाता है. पौधे में दो तरह के तनाव होते हैं जैविक और अजैविक. जैविक तनाव से 11 प्रतिशत नुकसान होता है, जिसे वह कीटनाशकों से नियंत्रित किया जाता है. जबकि अजैविक तनाव से 65 प्रतिशत का नुकसान होता है. यह तनाव दिखता नहीं है, जैसे ठंडी, गर्मी, हवा, सूखा, अचानक मौसम का बदलाव, अति वर्षा, ओलावृष्टि, पाला पडऩा आदि शामिल है. इसमें सायटोजाइम की तकनीक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है,क्योंकि यह नई पीढ़ी का नई तकनीक से बना जैविक उत्पाद है. जिसे 70 से ज्यादा देशों में परीक्षण के बाद विश्व के 40 देशों की कई बड़ी कंपनियां सायटोजाइम को अलग-अलग नामों से बेचती है. सायटोजाइम का मुख्यालय और आधुनिक तकनीक से सुसज्जित कारखाना साल्टलेक सिटी में है.

विशाल उत्पाद श्रृंखला

सायटोज़ाइम के उत्पादों की विशाल श्रृंखला है, लेकिन भारत में तीन-चार उत्पाद ही परिचित कराए हैं. इनमें से प्रमुख है सीड प्लस. यह दुनिया का नंबर वन सीड न्यूट्रीशनल सप्लीमेंट्स है. भारत में 10 प्रतिशत से ज्यादा लोग बीजोपचार नहीं करते हैं. बीजोपचार में कई किसान कीटनाशक और फफूंदनाशक का प्रयोग करते हैं. बेहतर, शीघ्र और स्वस्थ अंकुरण के लिए सीड प्लस जरुरी है. यह जड़ों और तनों की प्रारम्भिक अवस्था में ज्यादा पोषक तत्व उपलब्ध करवाता है. समान अंकुरण के अलावा जड़ों में बारीक रुओं की संख्या बढ़ाता है, जो भोजन की आपूर्ति में मदद करता है. यह वातावरण से उपजे तनाव को कम कर बीजों पर कीटनाशकों के दुष्प्रभाव को भी कम करता है. इसमें प्राकृतिक विधि द्वारा पोषक तत्वों एवं समुद्री शैवाल के अर्क का समावेश है. इसमें एमिनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट्स, विटामिन्स और 12 आवश्यक पोषक तत्व जैविक रूप में प्रचुर मात्रा में मिलाए गए हैं. सीड प्लस अंकुरण की ताकत को दुबारा गतिशील करता है. इसका बीजोपचार आसान है. बीज पर परत बनाता है जिसका छ: माह बाद भी इस्तेमाल किया जा सकता है. सोयाबीन, गेहूं, बाजरा, मक्का, टमाटर, भिंडी, मिर्च, चना, राजमा के बीजोपचार के लिए 2-3 ग्राम/किलो की मात्रा पर्याप्त है. डिब्बे में रखकर हिला दें. यह बीज पर चिपक जाएगा. पानी मिलाने की जरूरत नहीं है.

एसडीएम

सायटोजाइम के अन्य उत्पाद एसडीएम (एसडी मैक्रो) शुष्क के अलावा तरल रूप में सीड-100 के बारे में श्री वर्मा ने बताया कि यह गन्ना, आलू की के बीजोपचार के लिए उपयोगी है. इसमें समुद्री घास के बेक्टेरिया को बांधने की अनोखी तकनीक और कुछ अन्य विशिष्ट फार्मूले से इसका निर्माण किया जाता है. यह पूर्णत: जैविक उत्पाद है.

क्रॉपप्लस

क्रॉप प्लस के बारे में श्री वर्मा ने बताया कि यह जैविक उत्पाद बहुउपयोगी है. इसका पॉली, ड्रिप और ड्रेंचिंग में भी प्रयोग कर सकते हैं. यह पौधों के तनाव को कम करने के साथ पोषण भी करता है. इससे पौधे की शाखाएं और फूल ज्यादा निकलेंगे, जो फल में तब्दील करेगा. फलियां ज्यादा लगेंगी. दाना अच्छा आकार लेगा. पौधे को विशेष अवस्था में ज्यादा खुराक की जरूरत होती है, उस समय यह उसकी पूर्ति करता है. क्रॉप प्लस को अन्य कीटनाशकों में मिला सकते हैं. पौधों का पाचनतंत्र ठीक न होने से अजैविक तनाव होता है. इस कारण पौधा भोजन ग्रहण नहीं कर पाता है. यह उत्पाद पौधों का सम्पूर्ण आहार है. जिससे पौधा हर वातावरण में स्वस्थ रहता है. सायटोजाइम के उत्पाद 47 डिग्र्री उच्च तापमान और -5 डिग्री निम्न तापमान में भी परीक्षण में खरे उतरे हैं. यही नहीं यह उत्पाद रोपाई वाली फसलों गोभी, प्याज, मिर्च के पौधों को अन्यत्र रोपने पर होने वाले झटकों से बचाता है. 2 मिली/लीटर स्प्रे से जड़ें टूटती नहीं है. धान में पहला स्प्रे 25-30 दिन बाद 250 मिली/एकड़ की दर से करना चाहिए.

एक बार कटाई वाली फसल में दो बार तथा बार-बार कटाई वाली फसलों में फूल आने पर 8-10 दिन में पहला और दो हफ्ते में दूसरा स्प्रे करना चाहिए. मिर्च -कपास में 4-5 स्प्रे कर सकते हैं. इसके प्रयोग से फसल एक समान बनती है और एक साथ पकती है. इस कार्यक्रम के दौरान 6 साल से सीड प्लस का प्रयोग करने वाले अंजड़ जिला बड़वानी के किसान श्री हरिओम पाटीदार और श्री रिंकू धाकड़, ग्राम करोद जिला गुना म.प्र. ने अपने अनुभव साझा किए. श्री धाकड़ ने बताया कि धनिया में पाले के बाद फल नहीं लगने की शिकायत आने पर मैकरीना का दो बार स्प्रे किया था. नतीजे बहुत अच्छे रहे. इससे अन्य किसान भी संतुष्ट है साइटोजाइम के प्रदेश प्रभारी श्री मुकेश पायल भी अनेक किसानों के साथ इस वेबिनार में शामिल हुए.

प्रभात पट्टनम (बैतूल) के श्री प्रशांत के सोयाबीन फसल को कोहरे से बचाने संबंधी सवाल पर श्री वर्मा ने कहा कि तापमान के कम-ज्यादा होने का आभास पहले हो जाता है. क्रॉप प्लस का एक हफ्ता या तीन दिन पहले भी प्रयोग किया तो यह नुकसान को काफी हद तक कम कर देता है. नरसिंहपुर के श्री सौरभ दुबे ने पूछा कि सीड प्लस शुष्क का प्रयोग बुवाई के 20 -25 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग में भी किसी भी फसल में कर सकते हैं? इसके जवाब में कहा गया कि पहले यह शुष्क में उपलब्ध था, लेकिन अब तरल में सीड प्लस का प्रयोग बिजाई से पहले कर सकते हैं. यह दवाई नहीं खुराक है. क्रॉप प्लस का धान और सोयाबीन में फ्लावरिंग की अवस्था में प्रयोग कर सकते हैं ? जवाब दिया गया कि इसे 8-10 प्रतिशत फूल आने पर 8 दिन बाद 200 -250 मिली/एकड़ की दर से सुबह-शाम स्प्रे करें. इसे कीटनाशकों के साथ मिला सकते हैं. लेकिन घोल अलग बनाएं. सुबह -शाम स्प्रे करें. इस समय रोम छिद्र खुले रहते हैं. धान में बालियां आने पर स्प्रे करें. किसानों ने पूछा अन्य कीटनाशकों के साथ इसे मिला सकते है. जी हाँ मिला सकते हैं, लेकिन इसे कॉपर/सल्फर फंजीसाइड के साथ सीधे इस्तेमाल न करें. अलग से घोल बनाएं.

मैकरीना फूलों का रक्षक

श्री प्रशांत ने पूछा मैकरीना के प्रयोग से सोयाबीन की ऊंचाई तो नहीं बढ़ेगी? क्योंकि ऊंचाई बढऩे से शाखाएं बढ़ जाती है, लेकिन फलियां कम लगती है. जवाब दिया कि मैकरीना पीजीआर नहीं है. यह पौधे की अनुवांशिकता से छेड़छाड़ नहीं करता. यह वृद्धि के लिए नहीं है. यह फूलों को बचाने और फली बनाने में काम करता है. यह अच्छे नतीजे देगा. श्री सतीश कुमार मंदसौर ने पूछा कि सोयाबीन की करीब 50 दिन की फसल में फूल/फल कम आए हैं. जवाब दिया गया कि पौधे में तनाव सूखा, पोषक तत्व की कमी या बीमारी से भी हो सकता है. फूल बाहर नहीं आने पर फलियां नहीं बनती है. इसके लिए मैकरीना अच्छा विकल्प है. दो बार इस्तेमाल करें. इसके लिए उन्होंने गुना में एक किसान की बाँझ हो चुकी सोयाबीन फसल में दुबारा से फलियां आने की मिसाल भी दी.

सीड प्लस

श्री पवन विश्नोई (पंजाब) ने पूछा सीड प्लस का कपास और गेहूं में डोज क्या हो? श्री गोयल ने जवाब में कहा कि सामान्यत: उत्तर भारत के किसान कपास बीज के लिए दो पैकेट डालते हैं. इसके लिए 5 ग्राम सीड प्लस बहुत है. आने वाली गेहूं की फसल के लिए सीड प्लस डालने पर 40 के बजाय 36 किलो गेहूं बीज लें इसके लिए 70 मिली सीड प्लस तरल (2 मिली/ किलो) से बीजोपचार करने से अंकुरण अच्छा होगा. श्री अंकित लववंशी सिवनी मालवा और हरीश गंगराड़े झिरन्या ने सोयाबीन की फसल में पीलापन हटाने का उपाय पूछा. जिसके जवाब में श्री वर्मा ने कहा कि फसल में पानी ज्यादा भर जाने से या फफूंद के कारण पीलापन आ जाता है. इसके लिए अन्य कीटनाशक मिला सकते हैं, लेकिन क्रॉप प्लस पौधे को ताकत देगा. बीमारी को सहन कर लेगा इससे फसल की रिकवरी जल्द होगी. श्री कमलेश बांकर ने पूछा सोयाबीन की फूल की अवस्था में कोहरे से कैसे बचाएं? कहा गया कि कोहरा एक दम नहीं होता मौसम ठंडा होने से एक हफ्ता या तीन दिन पहले क्रॉप प्लस का इस्तेमाल करें. श्री कृष्ण कुमार नीमा ने सोयाबीन में बांझपन की समस्या का समाधान पूछा. श्री गोयल ने जवाब दिया कि बांझपन भी तनाव से आता है. फूल आने पर मौसम बदलता है और फलियां नहीं बन पाती. मप्र, राजस्थान. किसानों की समस्या जिन किसानों ने समय पर मैकरीना, एक्सपर्ट या क्रॉप प्लस का स्प्रे किया और दूसरा स्प्रे 15 दिन बाद किया वहां जादू की तरह काम हुआ.श्री दुशांक परमार ने पूछा कि सीड प्लस का उपयोग सब्जी/फल में किया जा सकता है. कहा गया कि हर प्रकार के बीज के लिए प्रयोग किया जा सकता है. केवल मात्रा का ध्यान रखना पड़ेगा. मक्का-कपास में 5 ग्राम, साधारण टमाटर बीज में 2-3 ग्राम और हाइब्रिड टमाटर बीज में 5-6 ग्राम इस्तेमाल कर सकते हैं.

माइक्रोन्यूट्रिएंट में प्रभावी उत्पाद

फल के लिए सीड -100 से ड्रेंचिंग कर सकते हैं. श्री मयंक कश्यप ने श्रेष्ठ माइक्रोन्यूट्रिएंट कौन सा उपयोग करना चाहिए. उन्हें बताया गया कि सायटोजाइम विश्व की नवीन तकनीक है. सायटोजाइम के उत्पाद क्रॉप मैक्स, मैकरीना,अडोरा विश्वसनीय है. इनका प्रयोग निर्धारित समय में निर्धारित मात्रा में करें. तुलना के लिए अन्य फसल की कटाई को अलग रखें. परिणाम सामने दिखेंगे. खरगोन के श्री मयंक सिंह ने कपास में पेराविल्ट की समस्या का समाधान बताए. कहा गया कि यह रोग कपास फसल में एकदम से आता है. रसायनिक खाद का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है इस कारण जमीन के मित्र फंगस खत्म हो जाते हैं. इसके लिए ताज़े ट्राइकोडर्मा 4 किलो/एकड़ की दर से बिजाई से पहले 5-7 दिन पहले तैयार कर अंतिम समय खेत में डालें लेकिन खेत में जैविक सामग्री होना जरुरी है, अच्छी पकी हुई गोबर खाद का प्रयोग करें. इससे लाभ होगा. सीड प्लस का सभी फसल में बिजाई से पहले प्रयोग किया जा सकता है. इसमें खर्चा कम मुनाफा ज्यादा है. सायटोजाइम के उत्पाद भारत में आयात किए जाते हैं . ग्लोबल एग्री साइंस, कोर्टिवा यूपीएल जैसी कंपनियों के वितरकों से यह जैविक उत्पाद प्राप्त किए जा सकते हैं.

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