फसल की खेती (Crop Cultivation)

जैव नियामक से फसलों की पैदावार कैसे बढ़ायें

  • डॉ. प्रमोद कुमार, डॉ. सुधीर कुमार
  • डॉ. मदन पाल सिंह, पादप कार्यिकी संभाग
    भा.कृ.अ.प.- भा.कृ.अनु.सं.,
    नई दिल्ली

5 अगस्त 2021, भोपाल । जैव नियामक से फसलों की पैदावार कैसे बढ़ायें – आधुनिक कृषि में लोगों ने फसलों के विकास एवं विकास को संचालन करने के लिए पादप हार्मोन के उपयोग को एक विकलप के रूप में स्थापित किया है। पौधों की वृद्धि एवं आर्किट्रेक्चर का नियंत्रण विभिन्न फसलों में उत्पादन हेतु एक मुख्य कारक है। वर्तमान में पौधों के विकास को नियंत्रित करने केलिए उत्पादकों के पास अनेकों प्रभावी विकल्प है जिनमें अधिकांश तकनीक रसायनों के प्रयोग पर आधारित है। पौधों की बढ़वार एवं विकास विभिन्न रसायनों द्वारा एकीकृत होती है जिन्हें हार्मोन के नाम से जाना जाता है। हार्मोन ग्रीक शब्द ‘‘होर्मा’’ से लिया गया है जिसका अर्थ है उत्तेजित करना है। पादप हार्मोन प्राकृतिक उत्पाद है जब उनको रसायनिक रूप से संश्लेषित किया जाता है तो उन्हें पादप नियामक कहा जाता है। कृत्रिम पादप नियामक सकारात्मक एवं नकारात्मक रूप से कार्य करते हैं। पौधों के भीतर एक विशिष्ट हार्मोन की स्थिति के रूप में कार्य करते हैं। पादप नियामक के नाम से ही पता चलता है कि ये वो रासायन जो पौधों की वृद्धि को सुविधाजनक बनाने के लिए डिजाइन किये जाते हैं। इनका प्रयोग विशेष कार्य के लिए किया जाता है, तनाव की स्थिति में पौधों के जीवन को बनाये रखने के लिए विशिष्ट प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करते हैं। इसलिए जैव नियामकों को विकास एवं उत्पादन बढ़ाने के त्वरित साधनों में से एक माना जाता है। जैव नियामकों के उपयोग से फसलों की उत्पादकता 10-65 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है।

जैव नियामकों के घोल बनाने की विधियां एवं उनका प्रयोग

फसल की प्रवृत्ति एवं आवश्यकता के अनुसार जैव नियामक की कम मात्रा में बहुत थोड़ा सा घोल प्रयोग किया जाता है पौधों को जैव नियामकों के साथ कई प्रकार से उपचारित किया जाता है। जैसे बीजों को उपचारित करके, पत्तियों पर छिडक़ाव करके, पौधों की जड़ों को इनके घोल में डुबोकर, ड्रेनचिंग करके, बीजों को उपचारित करके, जैव नियामकों के घोल में 24 घण्टे तक भिगोया जा सकता है। जैव नियामकों का घोल तैयार करने में अत्यन्त सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि यदि जैव नियामकों की मात्रा उस पौधों की आवश्यकता से अधिक है तो पौधों पर इनका दुष्प्रभाव हो सकता है तथा उपज भी कम हो सकती है। जिसके परिणामस्वरूप उत्पादक को लाभ की जगह हानि हो सकती है। इसलिए किसी भी जैव नियामक की उपयुक्त मात्रा का ही उपयोग करना चाहिए। प्राय: इनका प्रयोग भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) में होता है। एक पीपीएम का अर्थ होता है एक लीटर पानी में एक मिलीग्राम जैव नियामक का प्रयोग। कुछ जैव नियामक तो आसानी से पानी में घुल जाते हैं लेकिन कुछ के लिए एल्कोहल की कुछ बूंदे जैसे जी.ए. अथवा सोडियम हाइड्रोक्साइड (1/10) घोल एनएए का प्रयोग किया जाता है। वैसे आजकल जैव नियामक बाजार में मिलते हैं वे या तो साल्ट के रूप में या ईस्टर के रूप में होते है।

अत: वो पानी में घुल जाते हैं। तैयार किये घोल का क्षारकमान (पीएच) उदासीन होना आवश्यक है। यदि ना हो तो हाइड्रोक्लोराइड अम्ल (एन/10) घोल या सोडियम हाइड्रोक्साइड (एन/10) का प्रयोग करके उदासीन किया जा सकता है।

जैव नियामकों के प्रयोग के लिए सुझाव

सबसे पहले यह तय करें कि कोन सा जैव नियामक फसल के लिए सबसे उपयुक्त है। सावधानी से जैव नियामक उत्पादक का विवरण पढ़े तथा उसमें दी गई सूचनाएं जैसे जैव नियामक का प्रयोग, प्रयोग का तरीका, समय, घोल की सान्ध्रता, घोल की मात्रा तथा विवरण में दी गई सावधानियों को ध्यान से पढ़े एवं उनका प्रयोग करें। ड्रेंचिंग केवल नम भूमि में ही उपयोग करें। इसका उपयोग एक समान होना चाहिए। जैव नियामकों की मात्रा का आंकलन प्रयोग से पहले दो बार अवश्य करना चाहिए। जैव नियामकों की मात्रा सूक्ष्म जलवायु को ध्यान में रखते हुए ही करनी चाहिए। प्राय: उत्पाद के विवरण में सभी फसलों का विवरण नहीं दिया जाता है। अत: सही स्रोत से जानकारी लेकर ही प्रयोग करना चाहिए।

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जैव नियामकों का फसलों के उत्पादन में प्रयोग

बहुत सारे प्रयोगों द्वारा ज्ञात हुआ है कि जैव नियामकों के समयबद्ध प्रयोग से किसी विशिष्ट फसल पर प्रयोग करके लाभ प्राप्त किये जा सकते है। जैव नियामकों का आधुनिक बागवानी में विशेष रूप से विकसित तथा विकासशील देशों में इसका उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। जैव नियामक का फूलों वाले पौधों, सब्जियों एवं फलों वाली फसलों में इसका भरपूर प्रयोग किया जाता है। मुख्य क्षेत्र जहां जैव नियामक का प्रयोग उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है

वे मुख्यत: निम्मलिखित हैं –
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