किसानों की सफलता की कहानी (Farmer Success Story)

बकरी पालन और जैविक खेती कर युवाओं के लिए बने प्रेरणा स्त्रोत – टीवी रिपोर्टर हिमांशु विश्वकर्मा

14 सितम्बर 2022, भोपाल: बकरी पालन और जैविक खेती कर युवाओं के लिए बने प्रेरणा स्त्रोत – टीवी रिपोर्टर हिमांशु विश्वकर्मा – हर कोई पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करना चाहता है, पर कभी आपने सुना है कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद किसी ने खेती और पशुपालन करना चुना हो, पशुपालन और खेती से तो वैसे भी हमारे युवा दूर भागते है ऐसे में ये बात तो मजाक ही लगेगी, लेकिन ऐसा हुआ है और समाज में इस बदलाव की इबारत को लिखा है गाडरवारा के रहने वाले हिमांशु विश्वकर्मा नें |

हिमांशु ने भोपाल के  माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ़ जर्नलिस्म की पढ़ाई की है और अब वह जैविक खेती और बकरी पालन कर रहे हैं उनका सफ़र शुरू होता है 2012 से जब उन्होंने कुछ नया करने की तलाश में बारहबड़ा के पास सतपुड़ा पर्वतमाला की तराई में अपनी पैत्रिक जमीन पर जैविक खेती करना शुरू किया जैविक खेती में नए नए प्रयोग करना और उन प्रयोगों को आसपास के किसानो के साथ साझा करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा हो गया| वो पहले एक टीवी रिपोर्टर थे उन्होंने विभिन्न टीवी चेनलो एवं अखबारों में काम किया .खेती से लगाव और कुछ नया करने की चाहत में उन्होंने पत्रकारिता को अलविदा कह दिया उनके नजदीकी लोग उनके इस फैसले से हैरान थे उनकी पढ़ाई और डिग्री को देखकर हर कोई सोचता था कि सबकुछ छोड़कर खेती करने का ये फैसला बिल्कुल गलत है और इसमें कुछ नहीं रखा पर उन्हें तो कुछ नया करने की धुन सवार थी !

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खेती के साथ पशुपालन

जैविक खेती से कम उत्पादन और बाजार में उपज का उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण उन्होंने खेती के साथ पशुपालन भी करने का भी फ़ैसला किया इसी क्रम में उन्हें बकरीपालन को वैज्ञानिक तरीके से व्यावसायिक स्तर पर करने का विचार आया और इसके लिए उन्होंने देश प्रदेश के बकरी फार्मों का दौरा किया और जानकारी जुटाना शुरू किया, 2015 में उन्होंने बकरी फार्म का काम शुरू कर दिया .

परेशानियों का सामना किया , लिया प्रशिक्षण

व्यवसाय के एक वर्ष तक उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पडा, ऐसा लगने लगा कि बकरीयों को शेड के अन्दर पालना संभव नही है। पर 2017 में केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मथुरा से प्रशिक्षण लेने के बाद नए सिरे से व्यवसाय को पुनः सुव्यवस्थित करने का विचार बनाया।

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संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिको द्वारा कई सुझाव दिये गए, जैसे नस्ल परिवर्तन कर किसी उन्नत भारतीय नस्ल को रखकर, एक प्रजनन फार्म बनाए, साथ ही फार्म पर उत्पादित बकरीयों एवं बकरों को जीवित भार के आधार पर बेचने के लिए मार्केटिंग करें एवं सभी छोटे बड़े बकरी पालक मिलकर सहयोग से काम करें जैसे सुझाव प्रमुख थे।

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बनाई अपनी कंपनी

वर्तमान मे उनके फार्म पर अलग अलग प्रजातियों की सौ से ज्यादा बकरियां हैं. इनमें सिरोही, बरबरी, सोजत और गुजरी नस्ल के पांच हजार से लेकर एक लाख तक के बकरे बकरियां मौजूद हैं. बकरीयों एवं बच्चों को बेचने की प्रक्रिया जीवीत भार के आधार पर है| एवं 400 से 700 रु. प्रति किलो के हिसाब से बिक्री की जा रही है। हिमांशु ने बकरीपालन के लिए सतपुड़ा फार्मस एंड लाइवस्टॉक कम्पनी भी बना ली है वे अब जेविक खेती के साथ साथ बकरी पालन, देसी मुर्गीपालन और जानवरों का दाना बनाने का काम भी कर रहें हैं, फार्म पर बकरियों एवं अन्य उत्पादों की बिक्री इंटरनेट के माध्यम से भी होती है.जिसके लिए उन्होंने www.satpuralivestock.com वेबसाइट भी बनायी है |

हिमांशु का कहना है कि बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे पूरी लगन और मेहनत से किया जाये तो बहुत अच्छा लाभ कमाया जा सकता है .वे नरसिंहपुर जिले को गोट फार्मिंग इण्डस्ट्री के हब के रूप में देखना चाहते है | दूसरों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हे पशु पालन विभाग से  संचालित विभिन्न योजनाओं की जानकारी एवं बकरी पालन का प्रशिक्षण भी समय समय पर दिया जाता है। सतपुड़ा गोट फार्म नए बकरी पालकों के लिए सहायता केंद्र बनकर सामने आया है | इसके लिए उन्हें शासन द्वारा कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है |

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