Editorial (संपादकीय)

कृषि का गौरव बहाल करने की जिद में किसान पुत्र

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भारत कृषि प्रधान देश है। किसान अन्नदाता है। ऐसा कहकर हम उल्लासित हो जाते हैं, लेकिन वास्तव में आर्थिक उदारीकरण के युग में ये जुमले हास्यास्पद बन चुके हैं। क्योंकि खेती की लागत बढऩे से कृषि कर्म घाटे का सौदा हो चुका है। किसानों का दर्द एक दूसरे पर जवाबदेही थोपने के लिए इस्तेमाल करने का जरिया बन चुका है। कारण स्पष्ट है कि गांवों से भारत की आत्मा विदा ले चुकी है और किसान द्वारा उठाये जा रहे सवालों का रचनात्मक उत्तर खोजने के बजाय राज्य सरकारें इसे कानून व्यवस्था का प्रश्न मानने के लिए विवश हैं। नब्बे के दशक में देश में राजनैतिक परिवर्तन के साथ सेाच में बदलाव तब देखने को मिला जब केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिका गठबंधन की सरकार अटल जी के नेतृत्व में बनी और उन्होंने किसान की पीड़ा का अहसास करते हुए किसान के कर्ज पर लगने वाले ब्याज को घटाने की पहल की। तत्कालीन कृषि मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने ब्याज दर घटाने का सिलसिला आरंभ किया। बहुत कुछ कर पाते कि 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए प्रथम अवतीर्ण हो गई और यह सिलसिला थम सा गया।
हर परिवर्तन के लिए एक नायक चाहिए जो निमित्त बनता है। किसान पुत्र राजनेता शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में एक नई कृषि क्रांति को जन्म देने का बीड़ा उठा लिया और मुख्यमंत्री निवास पर किसानों की पंचायत बुलाकर किसानोन्मुखी नीतियों का ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया। कृषि कार्य की लागत घटाने का उपक्रम आरंभ हुआ। सात, पांच प्रतिशत से जब बात एक प्रतिशत ब्याज पर आई तो श्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान कर दिया कि यदि किसान को जीरो प्रतिशत ब्याज पर कर्ज दिया जाता है तो यह किसान के साथ अहसान नहीं। किसान से ऋण मुक्त होना ही होगा। सरकार ही नहीं समूचा समाज अन्नदाता का ऋणी है। उससे ब्याज वसूलना उसके कर्ज से बोझिल होते जाता है। तमाम अर्थशास्त्रियों, प्रशासकों ने विरोध किया, लेकिन मुख्यमंत्री ने किसानों के लिए खजाना खोलकर चाबी भी उन्हें सौंपते हुए कहा कि राज्य सरकार खाद-बीज के लिए दिए गये कर्ज का मूलधन घोटाले पर भी उन्हें 10 प्रतिशत की छूट देगी। किसान कर्ज में पैदा होता है, जीता है और कर्जदार ही मृत्यु का वरण करता है। इस नियति को बदलना ही श्री शिवराज सिंह चौहान का जज्बा और जुनून बन गया।
तथाकथित कृषि प्रधान देश में काश्तकारों की दयनीय दशा का राजनैतिक दलों ने जिक्र खूब किया। फिक्र भी सार्वजनिक मंचों से प्रदर्शित की। लेकिन ढाक के तीन पात जस के तस रहे। भारतीय जनता पार्टी की सरकार दिल्ली में बनी तो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जरूर कृषि की आय दोगुना करने की प्रतिबद्धता पर काम शुरू किया। लेकिन इसकी सीमा है, क्योंकि कृषि मुख्य रूप से राज्यों का विषय है। तथापि मोदी की पहल को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। उन्होंने प्रधानमंत्री फसल बीमा का किसानों को कवच दिया। सिंचाई का बंदोबस्त आंरभ किया और विपणन व्यवस्था को सरल प्रभावी बनाने का प्रयास आरंभ किया।
आर्थिक मंदी के दौर में जिन्सों के भाव गिरना किसानों के लिए कोढ़ में खाज साबित होता है। किसान के साथ विरोधाभास जुड़ा है। अच्छी फसल आने पर भाव गिर जाते हैं। सूखा पडऩे पर लागत का टोटा होता है। ऐसे में जब कृषि उत्पाद के भाव गिरे मध्यप्रदेश सरकार किसान के हित में भावान्तर भुगतान लेकर किसान के पीछे चट्टान की तरह खड़ी हुई। श्री शिवराज सिंह चौहान ने छाती ठोककर मुख्यमंत्री भावांतर योजना के साथ ऐलान किया कि जिन्स का न्यूनतम मूल्य और बाजार के मॉडल रेट में जो अंतर आयेगा राज्य सरकार वहन करेगी और मुख्यमंत्री भावान्तर भुगतान योजना में अंतर राशि का भुगतान किसान के बैंक खाते में दिया जायेगा। एक क्लिक में ऐसा करके दिखा दिया गया। किसान की नियति को जहां अन्य सरकारों ने व्यवस्था का प्रश्न बनाकर किसानों का दमन किया श्री शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों के घावों पर मरहम लगाया और भविष्य के लिये आश्वस्त किया कि भाजपा सरकार किसानों, गांव गरीब, मजदूर के साथ सुख-दुख में साथ खड़ी है।
पिछले तेरह-चौदह वर्षों का लेखा-जोखा यदि ईमानदारी से किया जाये तो महसूस किया जायेगा कि मुख्यमंत्री ने कुछ अवधारणाओं को बदलने की कोशिश की है। माना जाने लगा है कि सत्ता, अर्थव्यवस्था सभी कुछ का केंद्र शहर हो चुका है। किसान अलवत्ता गांव में रहता है जहां से भारत की आत्मा विदा ले चुकी है।
राजकाज व्यवस्था से चलते हैं और व्यवस्था कानून से चलती है लेकिन कानून जनता के लिए होते है जनता कानून के लिए नहीं होती। इस तर्क को शिवराज ने नियमों, कानूनों में संशोधन करके साबित कर दिया है। उन्होंने प्रदेश के अवाम से रागात्मक संबंध जोड़ कर साबित किया है कि मुख्यमंत्री के पहले वे जनता के प्रथम सेवक, वहनों के भाई, बालक-बालिकाओं के मामा और बड़े भाई हैं। बुजुर्गों के श्रवण हैं। जब गांव और शहर में जनता के बीच पहुंचते हैं, किशोरों, युवकों का सेलाब उमड़ता है और शिवराज के संबोधन में मामा-मामा की पुकार वातावरण को आत्मीयता घोल देती है। बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओं मुहिम देश में बाद में प्रारंभ हुई इसके पहले उन्होंने लाड़ली लक्ष्मी योजना आरंभ कर पुत्री जन्म को परिवार के लिए वरदान बना दिया। इसी तरह एक ओर जहां कोशल विकास अभियान को जनपदीय अंचल तक पहुंचाकर सबको स्किल्ड बना दिया वहीं उन्हें उद्यमिता से जोडऩे के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में लाखों से करोड़ रू. तक का कर्ज सरकार की गारन्टी पर सुलभ करा दिया। प्रदेश में युवा वर्ग अपनी ऊर्जा को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित हुआ है श्री शिवराज सिंह चौहान ने उनका हौसला बढ़ाने और गरीब अमीर की मानसिकता समाप्त करने के लिए मुख्यमंत्री मेधावी छात्र योजना आरंभ करके 70 प्रतिशत अंक बारहवीं कक्षा में लाने वाले छात्र-छात्राओं के लिए देश के सरकारी, निजी आईआईटी, आईआईएम, मेडीकल, इंजीनियरिंग जैसे कॉलेजों में प्रवेश और अध्ययन के द्वार खोल दिये हैं। सरकार उनके प्रवेश शुल्क से लेकर पाठ्यक्रम के अंतिम वर्ष तक का शुल्क वहन कर रही है। स्वर्णिम मध्यप्रदेश का निर्माण मध्यप्रदेश सरकार की कल्पना नहीं प्रतिबद्धता बन चुकी है। नगरों से लेकर ग्रामों में स्मार्ट बनने की लालसा उनकी प्रेरणा का फल है। भविष्य के प्रति आश्वस्ति। कुछ राजनैतिक विशेषज्ञ पिछले दिनों प्रदेश में राजनैतिक स्थिरता का श्रेय शिवराज को देकर संतुष्ट हो जाते हैं। लेकिन इतना पर्याप्त नहीं है। शिवराज ने नया सोच देकर दूर दृष्टि का परिचय दिया है। दुनिया का बदलता मौसम चिंता का विषय है। कृषि विज्ञानी, स्वामीनाथन का कहना है कि यदि एक सेल्सियस तापमान बढ़ता है तो गेहूं का उत्पादन 70 लाख टन घट जायेगा। वैज्ञानिकों का मत है कि यदि 2100 तक धरती का तापमान बढऩे से नहीं रोका गया तो कृषि बरबाद हो जायेगी। श्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में नर्मदा कछार में वर्ष 2017-18 में 6 करोड़ पौधे लगाकर सिर्फ रिकॉर्ड नहीं बनाया मौसम की क्रूरता के विरूद्ध हरीतिमा का कवच बनाने की अवधारणा सौंपी है। यह अवधारणा समाज के लिए विरासत बनती है तो दुनिया के लिए एक सबक भी बनेगी। एलईडी बल्ब को लोकप्रिय बनाकर कार्बन उत्सर्जन को रोकने की मुहिम छेड़ी है। मध्यप्रदेश में गत चौदह वर्ष का कार्यकाल उम्मीदों का आईना है लेकिन इसे देखने के लिए विमल विवेक की अपेक्षा युग बोध बनना चाहिए।

  • भरतचन्द्र नायक
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