Editorial (संपादकीय)

फलों में लोकप्रिय अमरूद लगाएं

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भूमि
अमरूद को लगभग प्रत्येक प्रकार की मृदा में उगाया जा सकता है परंतु अच्छे उत्पादन के लिये उपजाऊ बलुई दोमट भूमि अच्छी पाई गई है यद्यपि अमरूद की खेती 4.5 से 9.0 पी.एच.मान वाली मिट्टी में की जा सकती है परंतु 7.5 पी.एच.मान से ऊपर वाली मृदा में उकठा (विल्ट) रोग के प्रकोप की संभावना अधिक होती है।
उन्नत किस्में
ललित, इलाहाबाद, सफेदा, लखनऊ-49, अर्का मृदुला, चित्तीदार, ग्वालियर-27, एपिल कलर,बेदाना, लाल गूदे वाली किस्म, धारीदार आदि।
संकर किस्में
सफेद जाम, कोहीर सफेदा, अर्का अमूलिया, हाइब्रिड 16-1 आदि।
प्रवर्धन
अमरूद का प्रसारण बीज तथा वानस्पतिक विधियों द्वारा किया जा सकता है लेकिन बीज द्वारा प्रसारित पौधों की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है तथा फल आने में अधिक समय लेते हैं। अत: अमरूद का बाग लगाने के लिये वानस्पतिक विधियों द्वारा तैयार पौधों का ही उपयोग करना चाहिये। इसके व्यावसायिक प्रसारण के लिये गूटी, पेच बडिंग, विनियर एवं भेंट कलम विधि का प्रयोग करके पौधे तैयार करना चाहिये।
सघन बागवानी/रोपण
अमरूद की सघन बागवानी के बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं। सघन रोपण में प्रति हेक्टेयर 500 से 5000 पौधे रखे जाते है तथा समय-समय पर कटाई-छंटाई करके एवं वृद्धि नियंत्रकों का प्रयोग करके पौधों का आकार छोटा रखा जाता है। इस तरह की बागवानी से 300 से 500 क्विंटल उत्पादन प्रति हेक्टेयर लिया जा सकता है जबकि पारम्परिक विधि से लगाये गये बगीचों का उत्पादन 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है।

अमरूद भारत का एक लोकप्रिय फल है। यह विटामिन ‘सी’ एवं प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत है। फलों को ताजा खाने के अतिरिक्त जैम, जैली व टॉफी बनाई जा सकती है। यह असिंचित एवं सिंचित क्षेत्रों में सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा
प्रति पौधा प्रति वर्ष खाद एवं उर्वरक की मात्रा निम्नानुसार है-
खाद, उर्वरक देने का समय एवं विधि –
अमरूद में पोषक तत्व खींचने वाली जड़े तने के आसपास एवं 30 से.मी. की गहराई में होती है। इसलिये खाद देते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि खाद पेड़ के फैलाव में 15-20 से.मी. की गहराई में नालियां बनाकर देना चाहिये। गोबर खाद, स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा जून-जुलाई में बारिश होने पर तथा शेष नत्रजन की आधी मात्रा सितम्बर-अक्टूबर में बारिश समाप्त होने के पहले देना चाहिये।
उपरोक्त खाद एवं उर्वरकों के अतिरिक्त 5 किलो ग्राम (0.5 प्रतिशत) जिंक सल्फेट प्रति हेक्टर का छिड़काव फूल आने के पहले करने से पौधों की वृद्धि एवं उत्पादन बढ़ाने में सफलता पाई गई है।

खाद एवं उर्वरक प्रथम वर्ष  द्वितीय वर्ष तृतीय वर्ष  चतुर्थ वर्ष  पंचम वर्ष  छटा वर्ष व उसके बाद के वर्ष
गोबर या कम्पोस्ट 10 20 30 40 50 50
खाद (कि.ग्रा.)            
नत्रजन (ग्रा.) 50 100 150 200 300 300
स्फुर (ग्रा.) 100 100 150 200 250 250
पोटाश (ग्रा.) 150 300 450 600 600

जैविक खाद
अमरूद में नीम की खली 600 ग्रा. प्रति पौधा डालने से उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ उत्तम गुण वाले फेल प्राप्त किये जा सकते हैं। 40 कि.ग्रा. गोबर खाद अथवा 4 कि.ग्रा. वर्मी कम्पोस्ट के साथ 100 ग्राम जैविक खाद जैसे एजोस्पाइरिलम एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु (पीएसबी) के प्रयोग से उत्पादन में वृद्धि एवं अच्छी गुणवत्ता वाले फल पाये गये हैं।
उपरोक्त खाद एवं उर्वरकों के अतिरिक्त 5 किलो ग्राम (0.5 प्रतिशत) जिंक सल्फेट प्रति हेक्टर का छिड़काव फूल आने के पहले करने से पौैधों की वृद्धि एवं उत्पादन बढ़ाने में सफलता पाई गई है।
सिंचाई
अमरूद के एक से दो वर्ष पुराने पौधों की सिंचाई भारी भूमि में 10-15 दिन के अंतर से तथा हल्की भूमि में 5-7 दिन के अंतर से सिंचाई करते रहना चाहिये। गर्मियों में यह अंतराल कम किया जा सकता है। दो वर्ष से अधिक उम्र के पौधों को भारी भूमि में 20 दिन तथा हल्की भूमि में 10 दिन अंतर से पानी थाला बनाकर देना चाहिये। पुराने एवं फलदार पेड़ों की सिंचाई वर्षा बाद 20-25 दिन के अंतर से जब तक फसल बढ़ती है, करते रहना चाहिये तथा फसल तोडऩे के बाद सिंचाई बंद कर देना चाहिए।
मल्चिंग/बिछावन
असिंचित क्षेत्रों में वर्षा के जल को अमरूद में थाले बनाकर सिंचित करें तथा सितम्बर माह के पास घास एवं पत्तियां बिछाकर नमी को संरक्षित करके उत्पादन में वृद्धि तथा उत्तम गुण वाले फल प्राप्त किये जा सकते हैं।
कटाई – छंटाई
प्रारंभिक अवस्था में कटाई-छंटाई का मुख्य कार्य पौधों को आकार देना होता है। पौधों को साधने के लिये सबसे पहले उन्हें 60-90 से.मी. तक सीधा बढऩे देते हैं फिर इस ऊंचाई के बाद 15-20 से.मी. के अंतर पर 3-4 शाखायें चुन ली जाती हैं। इसके पश्चात मुख्य तने के शीर्ष एवं किनारे की शाखाओं की कटाई-छंटाई कर देनी चाहिये जिससे पेड़ का आकार नियंत्रित रहे। बड़े पेड़ों में सूखी तथा रोगग्रस्त टहनियों को निकालते रहना चाहिये। तने के आसपास तथा भूमि के पास से निकलने वाले प्ररोहों को भी निकालते रहना चाहिये नहीं तो पौधों की बाढ़ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पुराने पौधों जिनकी उत्पादन क्षमता घट गई हो उनकी मुख्य एवं द्वितीयक शाखाओं की कटाई करने से नई शाखायें आती हैं तथा उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है।
अंतरवर्तीय फसलें
प्रारंभ के दो तीन वर्षों में बगीचों के रिक्त स्थानों में रबी में मटर, फ्रेन्चबीन, गोभी एवं मेथी खरीफ में लोबिया, ज्वार, उर्द, मूंग एवं सोयाबीन तथा जायद (गर्मियों) में कद्दूवर्गीय सब्जियां उगाई जा सकती है, लेकिन बेल वाली सब्जियों उगाते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि बेल पौधों के ऊपर व चढऩे पायें।
फलन उपचार (बहार ट्रीटमेंट)
अमरूद में एक वर्ष में तीन फसलें ली जा सकती हैं लेकिन आमतौर पर वर्ष में एक फसल लेने का सुझाव दिया जाता है। फसल तोडऩे के मौसम के अनुसार इसे तीन मौसमों बरसात, जाड़ा एवं बसंत में विभाजित किया जा सकता है। स्थान एवं फसल के बाजार भाव को ध्यान में रखते हुए उपरोक्त में से कोई एक फसल ली जा सकती है। इस अवधि में दूसरी मौसम की फसल नहीं लेनी चाहिये मध्यप्रदेश में फूलने के तीन मौसम हैं। बसंत ऋतु ( मार्च-अप्रैल), वर्षा ऋतु (जुलाई-अगस्त) और शरद ऋतु में, वर्षा के फूलों से फल ठंड में तथा शरद ऋतु के फूलों से फल बसंत ऋतु में आते हैं।
बरसात की फसल के फल जल्दी पक जाते है तथा उत्तम गुण वाले नहीं होते हैं इस फसल में कीट एवं रोगों का प्रकोप भी अधिक होता है जबकि जाड़े की फसल के फल उत्तम गुण वाले होते है तथा फलों में विटामिन – सी की मात्रा सबसे अधिक पाई जाती है। बरसात की फसल में विटामिन -सी की मात्रा ठंड की फसल लगभग आधी पाई जाती है तथा वर्षात की फसल को बाजार में अच्छा मूल्य नहीं मिल पाता है। अत: ठंड की फसल लेने की सिफारिश की जाती है। बरसात की फसल को रोकने के लिये एवं ठंड की फसल लेने के लिये निम्नलिखित उपाय करना चाहिये-
1 फरवरी से जून तक पौधों को पानी नहीं देना चाहिये। पानी रोकने की यह क्रिया 4 वर्ष से अधिक उम्र के पौधों में ही करना चाहिये जिससे बसंत ऋतु में आये फूल गिर जाते हैं तथा वर्षात में फूल काफी संख्या में आते हैं।
110 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव मार्च या अप्रैल में करने से बसंत ऋतु में आये फूल एवं पत्तियां झड़ जाती है तथा मृग बहार (वर्षात के फूल) अच्छी आती हैं।
1 बसंत ऋतु के फूलों को गिराने के लिये 100-200 पी.पी.एम.नेफ्थलीन एसेटिक एसिड के घोल का छिड़काव फूलों के ऊपर 20 दिन के अंतराल में दो बार करने से सफलता पाई गई है।
उपज
तीन से चार वर्ष में फलन शुरू हो जाता है। 5 या 6 वर्ष में वृक्ष से अनुमानित 500-600 फल तथा 8 से 10 वर्ष शुरू से अनुमानत: 1000-2000 फल प्राप्त होते है।

गेहूं में उर्वरकों की मात्रा एवं उनका प्रयोग

पौध रोपण
अमरूद के पौधे लगाने का मुख्य समय जुलाई से अगस्त तक है लेकिन जिन स्थानों में सिंचाई की सुविधा हो वहां पर पौधे फरवरी-मार्च में भी लगाये जा सकते है। बाग लगाने के लिये खेत को समतल कर लेना चाहिये। इसके पश्चात पौधे लगाने के लिये निश्चित दूरी पर 60 & 60 & 60 से.मी. (लम्बा, चौड़ा, गहरा) आकार के गड्ढे तैयार कर लेना चाहिये। इन गड्ढों में 15-20 कि.ग्रा. अच्छी सड़ी हुई गोबर खाद, 500 ग्राम सुपर फास्फेट, 250 ग्राम पोटाश तथा 25 ग्राम एल्ड्रेक्स चूर्ण को अच्छी तरह से मिट्टी में मिलाकर पौधे लगाने के 15-20 दिन पहले भर देना चाहिये। बाग में पौधे लगाने की दूरी मृदा की उर्वरता, किस्म विशेष एवं जलवायु पर निर्भर करती है। बीजू पौधों को कलमी पौधे से ज्यादा जगह की आवश्यकता होती है। इस प्रकार कम उपजाऊ भूमि में 4 & 4 मी., 8 & 8 मीटर की दूरी पर पौधे लगाने की सिफारिश की जाती है।
  • डॉ. विशाल मेश्राम
  • डॉ. के.के. सिंह, सतना 
  • डॉ. उत्तम कुमार बिसेन
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