फसलों में बीजोपचार का महत्व एवं तरीका
बीज उपचार क्या है?- बीज उपचार वह प्रक्रिया है, जिसमें बीज को बीज से होने वाले मिट्टी रोगों तथा कीटों से बचाने के लिये भौतिक, रसायनिक (कवकनाशी या कीटनाशी), बायो एजेन्ट की एक निश्चित मात्रा से बीज शोधन किया जाता है। बीजों में किसी उपयुक्त रसायनिक या जैव अभिकर्ता की निश्चित मात्रा को इस प्रकार मिलाते हैं, कि जिससे बीजों के बाहर रसायन या जैव रसायन की एक सुरक्षात्मक परत बन जाये, जो बीज को बीज या मिट्टी के रोग कारकों से बचा सकें।
बीजोपचार कैसे करें? –
भौतिक उपचार- बीजों का अल्प समय के लिये उचित भंडारण – कुछ बीज जनित रोगों का जीवन-चक्र छोटा होता है, यदि बीज की उचित वायुमंडलीय दशाओं तथा कम तापक्रम, कम नमी में कुछ समय के लिये भंडार करने के बाद बोयें, तो रोग पैदा करने वाले कारक स्वयं ही समाप्त हो जाते हैं। उदाहरण के लिये हमारे देश में बाजरा का अर्गट रोगजनक 5-8 माह में (बुवाई के समय से पूर्व) समाप्त हो जाता है। अत: इस रोग द्वारा संक्रमित बीज को उचित भंडारण के बाद अगले वर्ष निडर होकर बोया जा सकता है।
सूखे बीजों को गर्म करना – कुछ बीजों को थोड़े समय तक ऊंचे ताप पर रखने से बहुत से रोग कारक जीवन मर जाते हैं। उदाहरण स्वरूप टमाटर का मौजेक विषाणु सूखे बीजों को 70 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर तीन दिन रखने से समाप्त हो जाता है।
गर्म पानी से उपचार – इस विधि से बीजों को चार घंटे तक ठंडे पानी मेें भिगोते हैं, जिससे कि रोगाणु रोग के प्रति अधिक असहिष्णु हो जाते हैं। फिर बीज को 49 -56 डिग्री सेंटीग्रेड गर्म पानी में बीज के अनुसार अलग-अलग समय के लिये डाल देते हैं। फिर बीज को सुखा कर बुवाई करते हैं। गेहूं का खुला कंडवा (लूज स्मट) की रोकथाम हेतु बीज को 54 डिग्री से गर्म पानी में दस मिनट के लिये उपचारित करते हैं।
सौर उपचार – इस विधि में भी बीज को सुबह चार घंटे तक पानी मेें भिगोते हैं फिर पक्के फर्श पर पतली तह में बीज को चिलचिलाती धूप में सुखाते हैं। सूखने के बाद बीज को शुष्क भंडारण की दशा में बुवाई के लिए भंडारित कर देते हैं। इस विधि से गेहूं का खुला कंडवा (लूज स्मट) का प्रभावी नियंत्रण हो जाता है।
गर्म वायु से उपचार- इस विधि से पानी में वायरस द्वारा होने वाले रोग का उपचार किया जाता है। उदाहरण स्वरूप गन्ने के मौजेक वायरस को नियंत्रित करने हेतु गन्ने बीज के टुकड़े को एक आद्र्र इनक्यूबेटर में आठ घंटे तक 54 डिग्री सेंटीग्रेड से गर्म वायु से उपचारित करते हैं, जबकि आलू के बीज कंद को वायरस से मुक्त करने हेतु अधिक आद्र्र दशा में 37 – 39 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर गर्म बक्से में रखते हैं।
रसायनिक उपचार-
धूल उपचार- बीजोपचार के लिये अधिकतर दवाएं पाउडर के रूप में मिलती है। 2-2.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से दवा व बीज को किसी पीपे, डब्बे, मटके अथवा ड्रम में डालकर अच्छी तरह हिलाते हैं। जिससे दवा की हल्की परत बीज की सतह पर अच्छी तरह छा जाये। इस विधि से बीज की सतह पर लगे व बीज के आवरणों में छिपे रोगजनक नष्ट हो जाते हैं।
द्रव उपचार- रसायनों के तरल रूप के प्रयोग को द्रव उपचार कहते हैं। द्रव रसायनों के घोल को फुहार (स्प्रे) तथा कुहासे (मिस्ट) के रूप में प्रयोग किया जाता है बीज को कुछ समय के लिये रसायनों के घोल में भिगोकर रखने से बीज के अंदर के रोगजनक भी नष्ट हो जाते हैं। आज कल थीरम, कैप्टान जैसे फफूंदनाशकों का उपयोग बीज उपचार में किया जाता है। बीजों को इनके 0.2 प्रतिशत के घोल में 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर 24 घंटे डुबोकर/भिगोकर रखा जाता है। बाद में बीजों को मिलाकर सुखा लिया जाता है इस विधि में कुछ प्रतिजैविक पदार्थों का भी प्रचलन बढ़ रहा है। टमाटर के बीजों को स्ट्रेप्टोमाइसिन प्रति जैविक के घोल में डुबाने से जीवाणु कैंकर रोग की रोकथाम की जाती है।
ध्रूमन उपचार – भंडारण दौरान कीटनाशी रसायनों को गैस रूप में प्रयोग करने की क्रिया ध्रूमन कहलाती है। इससे भंडारण में कीट व रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। गेहूं में सल्फास द्वारा 2-3 गोली (एक गोली 3 ग्राम) प्रति 10 क्विं. की दर से भंडारण के समय ध्रूमन से कीट पनप नहीं पाते हैं।
राइजोबियम कल्चर से उपचार- इस राइजोबियम कल्चर से बीजों को प्रकार से उपचारित करें, एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ डालकर गर्म कर घोल बनाएं व ठंंडा होने पर इसमें 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर डालें। इसे धीरे-धीरे लकड़ी के डंडे से हिलाते रहें। यह मिश्रण एक हे. भूमि में बोई जाने वाली बीज की मात्रा के लिये उपयुक्त है। अब इस घोल को बीज पर इस ढंग से छिड़कें कि इसकी परत बीजों पर समान रूप से चढ़ जाये। अब इन बीजों को छाया में सुखाना चाहिये। इस प्रकार उपचारित राईजोबियम कल्चर युक्त बीजों से दलहनी फसल को 20-25 कि.ग्रा. प्रति हे. तक नत्रजन की आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है।
पी.एस.बी.कल्चर से उपचार- इसके लिये 5 ग्राम पी.एस.बी. कल्चर प्रति किलो बीज की दर से प्रयोग करें। इन उपचारित बीजों को बोने से पैदावार बढ़ेगी व उर्वरकों की लागत भी कम आयेगी।
बीजों की अंकुरण क्षमता- बीज की मात्रा प्रति इकाई क्षेत्र निश्चित करने हेतु यह आवश्यक है कि कृषक को यह ज्ञात हो, कि जो बीज वह बो रहे हैं, उसकी अंकुरण क्षमता क्या हैं। बीज की अंकुरण क्षमता ज्ञात करने के बाद ही बीज की क्षमता का निर्धारण करना चाहिये।
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बीज पादप जीवन का मुख्य आधार है, जो एक संतति से दूसरी संतति तक जीवन वाहक कार्य करता है। क्योंकि पौधे का जीवन चक्र बीज से प्रारंभ होकर बीज में ही समाप्त हो जाता है अत: बीज का स्वस्थ होना अति आवश्यक है, ताकि वह स्वस्थ संतति को कायम रख सके अगर बीज ही रोगाणुओं से ग्रसित हो जाएंगे तो उससे उगने वाले पौधा अस्वस्थ, रोगग्रस्त, कमजोर, ओज रहित व किसानों के लिये अलाभकारी सिद्ध होंगे। बीज पर रोगाणु व कीट अत्यधिक आक्रमण करते हैं क्योंकि बीज में प्राय: सभी पोषक तत्व मौजूद होते हैं, जिसका उपयोग कर ये अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं इसलिये बीजों को स्वस्थ रखने के लिये बीजों के भंडारण एवं वर्धन काल में कीट एवं रोगों से बचाकर आगे के फसल समय में रोगों के आक्रमण से बचाया जा सके।