संपादकीय (Editorial)

प्रकृति के प्रकोप का सामना कैसे करें

15 मार्च 2023, भोपाल ।  प्रकृति के प्रकोप का सामना कैसे करें – कृषि को प्रकृति द्वारा समय-समय पर अतिरेक का सामना करना पड़ता है और सच मानो तो ये ओला, ये पाला  और मावठा प्रत्येक वर्ष माघ माह में ही आते हैं। ये कोई नई बात नहीं, नई चुनौतियां नहीं है जिससे घबराकर आगे का रास्ता चलना ही भटक जायें, कहीं आंशिक,कहीं कम रूप में ओला, पाला और मावठा इस वर्ष भी आया है। मावठा निश्चित ही सभी फसलों को लाभदायक है यह कहना/ मानना अतिश्योक्ति नहीं होगी। कुछ दलहनी फसलें जैसे विशेषकर मसूर, बटरी काट कर खेत में या खलिहान में रखी हों उन पर आंशिक असर माना जा सकता है जिन्हें कड़ी धूप में अच्छी तरह से सुखाया जाना चाहिये। जहां पूस में पाला पड़ा वहां सब्जी फसलों और कुछ अन्य फसलों को हानि हुई जिनकी बालों में दानों का वजन होगा यदि ओला गिरा होगा वहां नुकसान की सम्भावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। अगेती गेहूं मेंप्रभाव अधिक देखा गया होगा। ऐसी स्थिति जहां सिंचाई कर दी गई है और तुरन्त मावठा आ गया हो वहां भी जल लग्नता का असर दिख सकता है तो भी केवल गहरी काली भूमि वाले क्षेत्रों में प्राकृतिक अतिरेक के बाद की अफवाहों से हमेशा बचकर रहना चाहिए क्योंकि वह ऐसी स्थिति होती है जहां पर नुकसान की भरपाई की दिशा में प्रयास कम और राजनीति अधिक प्रवेश कर जाती है। सच्चाई तो यह है कि यह बात सर्वविदित है कि कुछ प्राप्त करने का लालच मानव स्वभाव की कमजोरी होती है। मुआवजा दिया जाये और जरूर दिया जाये परन्तु उसका आधार सर्वेक्षण प्रस्तुत हो, मान्य हो और विश्वनीय हो। जितना विश्वसनीय सर्वेक्षण किया गया होगा उतना ही लाभ यथार्थ में पीडि़तों को मिल सकेगा। इस कार्य में केवल शासन अकेला कुछ नहीं कर पायेगा। कुछ स्थानीय स्वयंसेवी संस्था और उससे जुड़े नि:स्वार्थ कार्यकर्ता का सहयोग ही खरे परिणाम दिखाने में मदद कर सकेंगे। सभी जानते हैं बुआई और कटाई में दिल्ली की दूरी रहती है। कृषकों की मेहनत तथा मैदानी कार्यकर्ताओं का कार्य सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। जिस पर किसी का भी बस नहीं चलता।

यदि हम पिछले खरीफ का उदाहरण सामने देखें तो वर्षा के अतिरेक से सुना जाता था कि सोयाबीन तो गई परन्तु सभी अफवाहों को ताक में रखकर परिणाम सामने आया। सोयाबीन का उत्पादन लक्ष्य के अनुरूप ही हुआ। प्रकृति के खेल निराले हैं वो एक हाथ से लेती है तो दोनों हाथों से देने की भी क्षमता रखती है। प्रकृति और कृषि का चोली दामन का साथ सदैव से रहा है और रहेगा ही। अब बीती ताहिं बिसार दे आगे की सुध ले वाली कहावत को मानने का समय है। आपको प्रमुख कार्य गेहूं का स्तंभ का बीज बनाना है, खेतों में घूम-घूम कर अच्छे क्षेत्रों का चयन करके ऊंची-नीची, भूरी, सफेद तथा कंडुआ  ग्रस्त बालियों को अलग करके मूल जाति के लक्षण वाले  गेहूं के क्षेत्र का चयन करके उसकी कटाई, गहाई, भण्डारण अलग से किया जाये ताकि आने वाले समय के लिये स्वयं का बना कुछ बीज आप अपने हाथों में रख सकें तथा भविष्य की चिन्ता को विराम लगा सकें।

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