जायद में फसलों की देखरेख जरूरी
8 फरवरी 2021, भोपाल। जायद में फसलों की देखरेख जरूरी- कृषि में रखरखाव, देखभाल का अपना अलग महत्व है या यूं कहें कि कृषि और इन शब्दों का गहरा संबंध है। जायद की फसलों की बुआई का समय वैसे तो पिछले माह से ही शुरू हो गया है परंतु इस वर्ष गिरते तापमान के चलते कद्दूवर्गीय फसल तरबूज, खरबूज, लौकी, टिन्डा, कद्दू, करेला आदि के बीजों की बुआई यदि सीधे -सीधे खेतों में नदी किनारे की गई हो तो अंकुरण में गिरावट आना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी। गिरते तापमान का सीधा असर अंकुरण पर होता है और एक बार यदि अंकुरण ही प्रभावित हो गया तो अच्छी पौध संख्या और अच्छे उत्पादन की कल्पना निर्थक होगी। कृषकों को चाहिये कि छोटी-छोटी पॉलीथिन की थैलियों में रेत मिट्टी/खाद का मिश्रण भरकर उसमें बीज डाल कर थैलियों को छाया में रखा जाये। फुहारे से सींच कर पौधे तैयार किये जायें फिर इन अंकुरित 2-3 पत्तियों वाले पौधों को मुख्य खेत में रोपा जाये ताकि वातावरण के अतिरेक को सहने की शक्ति पौधों को हो जाये।
अधिक संतोषजनक अंकुरण के लिये बीजों को 2-3 घंटे गुनगुने पानी में भिगोकर रखने के बाद यदि पॉलीथिन में बोया जाये तो लाभकारी होगा। इस प्रकार वर्तमान के मौसम को परखते हुए जायद फसल की बुआई का कार्यक्रम हाथ में लिया जाये तो अधिक उपयोगी होगा। प्रमुख फसलों में भिंडी, मूंगफली, तिल इन फसल के बोने का समय फरवरी माह है यथासम्भव तापमान की परख देखने के बाद ही इनकी बुआई कुछ दिनों के लिए बढ़ाया जाना अच्छा होगा ताकि अंकुरण प्रभावित होने से बच जाये। उल्लेखनीय है कि वर्तमान के मौसम में तापमान का उतार-चढ़ाव बहुत आ रहा है जिनका सामना अंकुरण को करना पढ़ता है। अत: बुआई के पहले इस और ध्यान रखें ताकि जायद से अतिरिक्त आय का उद्देश्य पूरा हो सके। इसी प्रकार मूंग, उड़द की बुआई भी अप्रैल माह में ही की जाये तो उत्तम होगा। ध्यान दें कि जितना खरीफ/रबी के बीजों का बीजोपचार किया जाना आवश्यक है उतना ही जायद के बीजों का भी उपचार आवश्यक होगा क्योंकि अधिकांश जिन्सों के बीज की बाहरी सतह में छुपी हुई फफूंदी रहती है जो अंकुरण प्रभावित कर सकती है और कालान्तर में पत्तियों के विभिन्न रोगों की कारक भी बन सकती है। कद्दूवर्गीय फसलों में नरपुष्पों की संख्या मादा पुष्प से अधिक होती है फलस्वरूप वृद्धि नियंत्रणों का उपयोग आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए ताकि अधिक से अधिक मादा पुष्प प्राप्त होकर अधिक फल बन सकें। अंकुरण उपरांत 4-6 पत्तियों की अवस्था में वृद्धि नियंत्रकों का छिड़काव लाभकारी माना गया है।
ध्यान रहे गोबर खाद के साथ रसायनिक उर्वरकों का उपयोग भी सिफारिश के अनुरूप किया जाना जरूरी होता है। अच्छा बीज, बीजोपचार, भरपूर पोषक तत्व के साथ क्रांतिक अवस्था में सिंचाई से ही लक्षित उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। बेलों वाली फसलों को सहारा देकर मिट्टी से ऊपर रखने की व्यवस्था यदि हो जाये पुख्ता मंडप यदि बन जाये तो फलों की गुणवत्ता बहुत बढ़ेगी यदि फल जमीन पर हो तो उनको उलट-पलट करते रहना जरूरी होगा। इसका रखरखाव भी उसी मान से किया जाये।