संपादकीय (Editorial)

खाद्यान्न की बर्बादी : खतरे में खाद्यान्न

  • सुदर्शन सोलंकी

1 जनवरी 2023, भोपाल । खाद्यान्न की बर्बादी : खतरे में खाद्यान्न दुनियाभर में सबके लिए पेट-भर भोजन एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है, लेकिन उससे पार पाने के लिए कोई कारगर उपाय सामने नहीं आ रहे हैं। दूसरी तरफ, बड़ी मात्रा में खाद्यान्न की बर्बादी इस संकट की विडंबना को उजागर कर रही है। आखिर कैसे इन समस्याओं से निपटा जाए ?

जलवायु परिवर्तन जीवों के लिए कई तरह के संकट उत्पन्न कर रहा है। इसमें से एक संकट खाद्य सुरक्षा के रूप में है। ऐसे में यह सवाल पैदा होता है कि क्या भारत जलवायु परिवर्तन के खतरों के बीच आने वाले समय में बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न उपलब्ध करा सकेगा? भारत ही नहीं, अपितु अन्य देश भी वर्तमान में जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनमें खाद्य सुरक्षा की चुनौती प्रमुख है। ‘फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाजेशन’ (एफएओ) द्वारा जारी एक रिपोर्ट ‘वल्नेरेबिलिटी ऑफ माउंटेन पीपल टू फूड इन्सेक्युरिटी‘ के अनुसार जलवायु में हो रहे परिवर्तन और जैव विविधता के घटने के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में खाने की कमी लगातार बढ़ती जा रही है। वहीं विकासशील देशों में भी खाद्य सुरक्षा की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। वर्ष 2000 में इन इलाकों में रहने वाले 24.3 करोड़ लोग भुखमरी का सामना कर रहे थे, जो 2017 में बढक़र 35 करोड़ हो गए हैं।

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शोधकर्ताओं की 21 दिसंबर 2020 की ‘प्रकृति स्थिरता रिपोर्ट’ के अनुसार मनुष्यों को पर्याप्त भोजन मिलता रहे, इसके लिए 2050 तक, कृषि के लिए अतिरिक्त 3.35 मिलियन वर्ग किलोमीटर भूमि की आवश्यकता हो सकती है। विस्फोटक रूप से बढ़ती जनसंख्या के सामने अब भोजन संकट उत्पन्न होने वाला है। इस वजह से भोजन के लिए मानव जाति की बढ़ती आवश्यकता पृथ्वी पर रहने वाले हजारों अन्य प्रजातियों के जीवों की आवश्यकता के विरुद्ध चल रही है। जेनेट रंगनाथन और अन्य (2018) के अनुसार 2050 में धरती पर 10 अरब लोग होंगे। ‘वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार 10 अरब लोगों को लगातार भोजन उपलब्ध करवाने के लिए हमें कृषि भूमि का विस्तार किए बिना ही खाद्य उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है।

‘एफएओ’ द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में करीब 13.5 करोड़ लोगों की स्थिति सबसे ज्यादा चिंतनीय है जो खाद्य संकट के सबसे ज्यादा शिकार हैं। इनमें से करीब 7.3 करोड़ लोग अफ्रीका और 4.3 करोड़ मध्यपूर्व और एशिया के हैं।

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संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वर्ष 2050 तक सतत रूप से खाद्य उत्पादन को दोगुना करने की जरूरत है। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का पेट भरने के लिए भारत के सामने बढ़ती खाद्य-जरूरत को पूरा करने में सर्वाधिक योगदान के अलावा कोई विकल्प नहीं है, लेकिन भूमि अवक्रमण की मौजूदा समस्या को देखते हुए इस लक्ष्य को हासिल करना और भी कठिन है। इसे जानने के लिए कि यह कैसे संभव होगा, विलियम्स और उनके सहकर्मियों ने ऐसे निवासों की पहचान की, जिसमें क्रॉपलैंड के लिए सबसे अधिक संभावना है। उसके बाद टीम ने 152 देशों के लिए अनुमानित मानव जनसंख्या वृद्धि को बनाए रखने के लिए आवश्यक भोजन की मात्रा की गणना की और पिछले भूमि उपयोग में परिवर्तन के आधार पर फसलों की संभावना बढ़ाई। टीम ने पाया कि 2050 तक दुनिया के 13 मिलियन वर्ग किलोमीटर के क्रॉपलैंड को 26 प्रतिशत तक बढ़ाना होगा।

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शोधकर्ता टीम के अनुसार, फसल की पैदावार में सुधार, अधिक पौधे-आधारित आहार में संक्रमण, भोजन की कमी और बर्बादी को रोकना और उन देशों के लिए खाद्य आयात में वृद्धि करना, जहां कृषि विस्तार से सबसे अधिक प्रजातियों को खतरा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी ‘ग्लोबल रिपोर्ट ऑन फूड क्राइसिस-2021’ रिपोर्ट के अनुसार 2020 के दौरान दुनिया के 55 देशों के करीब 15.5 करोड़ लोग गंभीर रूप से खाद्य संकट का सामना कर रहे हैं जो कि पिछले वर्ष (2019) की तुलना में 2 करोड़ ज्यादा है। इससे पहले 2019 में करीब 13.5 करोड़ लोग गंभीर खाद्य संकट का सामना कर रहे थे। गंभीर रूप से खाद्य संकट का सामना कर रहे लोगों का यह आंकड़ा अपने पिछले पांच वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है।

वहीं दूसरी ओर, संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट ‘फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट- 2021’ के अनुसार भारत में हर वर्ष करीब 6.88 करोड़ टन भोजन बर्बाद कर दिया जाता है। यह प्रति व्यक्ति के हिसाब से प्रति वर्ष 50 किलोग्राम भोजन की बर्बादी है। जबकि देश में अभी भी करीब 14 फीसदी आबादी कुपोषण का शिकार है। स्पष्ट है कि हमारे सामने भोजन की उपलब्धता को बनाए रखने संबंधी जो लक्ष्य है वह बहुत बड़ा है और इसे आसानी से पूरा नहीं किया जा सकता, किन्तु हर वर्ष होने वाली भोजन की बर्बादी को रोक दिया जाए तो न केवल करोड़ों लोगों को भोजन मिल पाएगा, बल्कि हर वर्ष होने वाले करोड़ों रुपयों के आर्थिक नुकसान से भी बचा जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि इसे वैश्विक स्तर पर हर व्यक्ति, संगठन, संस्था और सरकार मिल-जुलकर सामूहिक रूप से पूरा करने के लिए जुट जाएं, अन्यथा हम भोजन के महासंकट से जूझने के लिए तैयार रहें।          

  • (सप्रेस)

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