Editorial (संपादकीय)

वादा किसानों की आय दुगुनी का था, कर्ज लादने पर आ गए

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  • शशिकांत त्रिवेदी, मो.: 9893355391

budget

6 फरवरी 2023,  भोपाल । वादा किसानों की आय दुगुनी का था, कर्ज लादने पर आ गए – जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई तो किसानों की आमदनी सन् 2022 तक दुगुनी करने की कसमें खाई गईं थीं। लेकिन हाल ही में की गई बजट घोषणा में किसानों की आमदनी दुगुनी करना तो दूर उन्हें 20 लाख करोड़ रूपये कर्ज देने की बात कही गई है। देश में कई हृदय विदारक घटनाओं की रिपोर्ट सामने आईं हैं जिनमे सैंकड़ों किसानों ने कर्ज से निजात पाने के लिए परिवार सहित आत्महत्या की हैं। केंद्रीय बजट, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्त में खेती को कर्ज देने के अलावा पशुपालन, दुधारू पशुओं के व्यवसाय और मछली पालन पर ध्यान देने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के कर्ज देने का प्रस्ताव रखा है। इसका सीधा अर्थ है कि मूल खेती के अलावा खेती से जुड़े दूसरे धंधों में भी कर्ज लें।

इस साल के बजट में दूसरी निराशाजनक बात यह है कि पिछले बजट अनुमान में कृषि और किसान कल्याण विभाग के लिए आवंटन को घटा दिया गया और बजट के लिए वाहवाही लूटी जा रही है। पिछले बजट में जो आवंटन 1,24,000 करोड़ रूपये  था, लेकिन इस बार 1,15,531.79 करोड़, लगभग 8,469 करोड़ रूपये किसानों के लिए कम कर दिया है।

इसी प्रकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए आवंटन में पिछले बजट के अनुमानों में 15,500 करोड़ रुपये से घटकर इस बजट में 13,625 करोड़ रुपये रह गया। यह बीमा योजना में किसानों की रुचि घटने का भी संकेत देता है।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) में 60,000 करोड़ रूपये का आवंटन किया है  जो पिछले बजट की तुलना में रू. 8,000 करोड़ कम है। वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में कुल बजट में कृषि की हिस्सेदारी में भी भारी गिरावट आई है। जहां इस क्षेत्र को पिछले साल कुल आवंटन का 3.36 फीसदी हिस्सा मिला था, वहीं इस बार यह कुल बजट का महज 2.7 फीसदी है।

सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने वादे पर पूरी तरह से चुप्पी थी, तो दो प्रमुख योजनाएं – बाजार हस्तक्षेप योजना और मूल्य समर्थन (एमआईएस-पीएसएस) और प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना (पीएम -आशा) – जो देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद सुनिश्चित करने के लिए लाई गई थी उसमे भारी कटौती की गई है।

देखा जाए तो एमआईएस-पीएसएस को लगभग नजरअंदाज कर दिया गया क्योंकि इसका आवंटन 1,500 करोड़ रुपये से घटाकर महज 1 लाख रुपये कर दिया गया है। इसी तरह पीएम-आशा योजना में भी बजट 1 करोड़ रुपये से घटाकर महज 1 लाख रुपये कर दिया गया है।

बाजार हस्तक्षेप योजना और मूल्य समर्थन (एमआईएस-पीएसएस) योजना  को बागवानी उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए शुरू किया गया था और बम्पर उत्पादन के कारण कीमतों में गिरावट आने पर उन्हें संकट से बचाने के लिए ये योजना लाई गई थी।

किसानों के लिए बजट में एग्रीकल्चर एक्सिलिरेटर फंड (कृषि त्वरक कोष) की स्थापना की गई है। कहा गया है कि यह फंड ग्रामीण क्षेत्रों में युवा उद्यमियों द्वारा कृषि स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित करेगा। वित्त मंत्री का कहना है कि यह फंड किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों के लिए नवीन और किफायती समाधान लायेगा। यह कृषि पद्धतियों को बदलने, उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों को भी लाएगा।

लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कि ज़्यादातर स्टार्ट-अप मूल रूप से बिचौलिए शुरू करते हैं या करवाते हैं, और ज़्यादातर खुद संकट में हैं क्योंकि उन्हें भारतीय खेती का कोई अनुभव नहीं होता न ही वे पूरी तरह से खेती की देखभाल कर सकते। यदि इस घोषणा से कोई फायदा होगा भी तो वह कृषि से सबंधित व्यवसाय करने वालों को होगा और  भारत का आम किसान व्यवसायी नहीं है।

वित्त मंत्री ने बजट में कुल खाद्य सब्सिडी 2022-23 में 2,06,831.09 करोड़ रुपये से घटा कर इस बजट में 1,97,350 करोड़ रुपये कर दी है। सन 2022-23 के संशोधित अनुमानों में, खाद्य सब्सिडी रू. 2,87,194.05 करोड़ थी।

पिछले बजट की तुलना में उर्वरक सब्सिडी में एक तरह से तो काफी वृद्धि हुई है। लेकिन गौर से आंकड़ों को देखा जाए तो पिछले बजट में, यह 1,05,262.23 करोड़ रूपये प्रस्तावित थी जिसे बाद में यूक्रेन में युद्ध के कारण उर्वरकों और घटकों की कीमतों में वृद्धि के कारण संशोधित अनुमान में 2,25,261.62 करोड़ रूपये कर दिया गया था, अब इस बजट में अनुमानित आंकड़ा 1,75,148.48 करोड़ रुपये है।

अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) ने कहा कि कोविड महामारी के समय अतिरिक्त खाद्यान्न योजना की जगह प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त राशन आवंटन के बारे में बनाई गई कहानी वास्तव में खाद्य सब्सिडी में आवंटन में कमी को देखते हुए एक तमाशा है। स्पष्ट इरादा खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर खर्च को कम करना है। एआईकेएस ने कहा कि कम खाद्य सब्सिडी बिल का खाद्यान्न की खरीद पर सीधा असर पड़ता है।

जानकारों का मानना है कि नए फंड की घोषणा कर किसानों को व्यापक आवंटन कम किया जा रहा है।

कृषि क्षेत्र आज भी सबसे ज़्यादा रोजग़ार देने वाला क्षेत्र है  कृषि में लगे श्रमिकों की हिस्सेदारी 2020-21 में थोड़ी सी बढक़र 46.5 प्रतिशत हो गई, जो 2019-20 में 45.6 प्रतिशत थी। दूसरी ओर, इसी अवधि में विनिर्माण का हिस्सा 11.2 प्रतिशत से घटकर  10.9 प्रतिशत रह गया और व्यापार, होटल और रेस्तरां का हिस्सा 13.2 प्रतिशत से 12.2 प्रतिशत हो गया। अप्रैल-नवंबर 2022 के दौरान कृषि क्षेत्र में न्यूनतम  मजदूरी दरों की वृद्धि दर भी सबसे अधिक थी – पुरुषों के लिए 5.1 प्रतिशत और महिलाओं के लिए 7.5 प्रतिशत।

किसानों के लिए यह बजट न केवल वादाखिलाफी और निराशाजनक है बल्कि भारत जैसे विशाल देश में, जहाँ खेती से ही आम आदमी का घर चलता है उसका भविष्य फिलहाल संकट में बना हुआ है।

  • (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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