हरे चारे के संरक्षण का एक प्रभावी तरीका साइलेज
लेखक- आकाश जोशी, छात्र-: सेज विश्वविद्यालय इंदौर (म.प्र.)
09 जुलाई 2024, भोपाल: हरे चारे के संरक्षण का एक प्रभावी तरीका साइलेज – साइलेज वह दबा हुआ चारा है, जिसमें हरे चारे के सभी तत्व मौजूद हो, इनमें किसी प्रकार की सड़न अथवा बुरी गन्ध न उत्पन्न हुई हो तथा चारों में रसीलापन भी हो। साइलेज बनाने की इस क्रिया को साइलोइंग अथवा इनसाइलिंग कहते हैं
साइलेज बनाने के लिए कुछ आवश्यक बातें-
जिनफसलोंमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक हो, जैसे – ज्वार, मक्का व जई, उनसे उत्तम किस्म की साइलेज बनाई जा सकती है।
- जिनफसलों से साइलेज बनाना हो उनमें शुष्क पदार्थ 30-40% से अधिक नहीं होना चाहिए।
- साइलोमें चारा अच्छी प्रकार से दबाया जा सके, इसके लिए आवश्यक है कि चारे की कुट्टी काट ली जाए।
- मिट्टी मेंसाइलोकी दीवारों व फर्श पर पुआल या सूखे भूसे की पर्त बिछा देनी चाहिए।
- साइलोमें चारा भरने में कम से कम समय लगाना चाहिए।
- साइलो भरते समय कटे हुएचारेको पूरे क्षेत्र में पतली व एक समान पर्तों में फैलाकर अच्छी
- प्रकार से दबा-दबाकर भरना चाहिए जिससे हवा बाहर निकल आए।
- साइलोभूमि के धरातल से काफी ऊपर तक भरना चाहिए जिससे बाद में किण्वन क्रिया के
- बाद बैठने पर भी भूमि धरातल से ऊपर ही रहे।
- साइलोभरने के बाद उस पर भूसे की मोटी तह या पॉलीथीन की चादर बिछाकर ऊपर से 30
- सेंमी. ऊपर से मिट्टी की मोटी परत डालकर फिर इसके ऊपर लीप देते हैं।
- साइलोमें कहीं भी छेद नहीं होना चाहिए जिससे वर्षा का पानी अंदर न जा सके।
- फसलोंको साइलेज बनाने के लिए फूल आने की अवस्था में ही काट लेना चाहिए।
- साइलेजबनाने वाले चारे के तने काफी ठोस होने चाहिए।
साइलेज बनाने के लिए उपयोगी फसलें-
साइलेज बनाने के लिए चारों वाली फसलों की आवश्यकता होती है। साइलेज बनाने वाले चारे में काफी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पथा नमी होना आवश्यक है। मक्का एवं ज्वार साइलेज बनाने के लिए सर्वोत्तम चारे हैं। फलीदार फसलों से भी साइलेज बनाई जाती है। परन्तु इनमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है, अतः ऊपर से शीरा अथवा खनिज अम्ल छिड़कना पड़ता है।कार्बोहाइड्रेट की कमी पूरा करने से, फलीदार फसलों से भी अच्छी किस्म की साइलेज बन जाती है। इसके अतिरिक्त बाजरा, लोबिया, पुआल, लूसर्न, बरसीम, जई, घास-पात, अगौले इत्यादि हरे चारे से भी साइलेज बनाई जाती है। साइलेज बनाने के लिए फसलों को फूल आते समय ही काट लेना चाहिए क्योंकि इस समय इनमें पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में होते हैं।
साइलेज बनाने की विधियां अथवा साइलेज बनाने की निर्माण विधि-
साइलेज गड्ढों में बनाया जाता है उन्हें साइलो कहते हैं। जमीन के नीचे बनाए गये साइलो अच्छे रहते हैं और आसानी से बन जाते हैं। जमीन के नीचे साइलो को गोल बनाऐं | साइलोबनाने के कई तरीके हैं, किन्तु पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों और लघु किसानों के लिए इसे गड्ढे के रूप में तैयार करना सबसे उपयुक्त है। 2.44 मी. ( 8 फुट ) व्यास के 3.66 मी. ( 12 फुट ) गहरे गड्ढे
से चार डेरी पशुओं के लिए 3 माह का संरक्षितचारा मिल जाता है। गड्ढे की दीवारें धरातल से थोड़ी ऊपर उठी होनी चाहिए जिससे कि वर्षा का जल गड्ढे में प्रवेश न कर सके। इसके नजदीक पशुशाला भी हो तो पशुपालक को लाभकारी होगा।
- साइलेजबनाने के लिए एक अच्छा व सूखा स्थान छाँट ले जो पशुशाला के पास हो, लेकिन यह स्थान पशुशाला के ज्यादा पास भी न हो नहीं तो साइलेज की बदबू दूध में आ जाएगी
- शुरू में जमीन के तल में कुछ घास फूंस बिछा दें और कुछ आसपास लगा दें। जिससे चारे में मिट्टी नहीं लगेगी।
- एक गोल गड्ढा खोदें जो 8 फुट से ज्यादा गहरा न हो, उसका घेरा इस पर निर्भर करता है कि आप कितना साइलेज बनाते हैं।
- गड्ढे में रखने से पहलेचारेकी कुटी बना ले।
- कुटी को परतों में एक के ऊपर एक करके बिछाते जाएं। हर परत को खूँदकर अच्छी तरह
- दबा दें ताकि बीच में हवा न रहे। उसे तब तक भरें जब तक गड्ढे के मुंह से दो-तीन फुट
- ऊंची पढ़ते न चली जाए।
- ढेर को भूसे से ढक दें और बाद में मिट्टी पोत दें।
- चाराजैसे-जैसे बैठता जाएगा परतों में दरार पड़ती जाएगी, इन दरारों को मिट्टी से बंद करते जाएं।
- अगरचारागड्ढा के मुंह के नीचे तक बैठ जाए तो गड्ढे के मुंह से कुछ ऊंचाई तक मिट्टी भर देनी चाहिए तथा इसे पलस्तर करके ढक दें।
- साइलेज3 महीने में मवेशियों को खिलाने लायक तैयार हो जाता है तो उसके बाद गड्ढे को कभी भी खोल सकते हैं।
- अपने मवेशियों को खिलाने के लिए आपको जितनेसाइलेजकी जरूरत पड़े उतना ही गड्ढे में से बाहर निकाले।
अगरसाइलेजअच्छा तैयार हुआ है तो उसका रंग चमकदार हरा होगा। अगर साइलेज बिगड़ गया होगा तो उसका रंग भूरा और मटमैला हो जाएगा। अच्छा बना साइलेज प्रति घन फुट 15 से 18 किलो तक वजन का होगा।
साइलेज बनाने वाले गड्ढों में निम्नलिखित गुण वांछनीय है–
- गड्ढे की दीवारें हर तरफ से हवा बंद होनी चाहिए, जिससे कि चारे में हवा न
पहुंचकरसाइलेजको नष्ट न कर पाए। - दीवारें लम्बवत् तथा चिकनी होनी चाहिए।
- दीवारें काफी सुदृढ़ होनी चाहिए, ताकि वे किण्वन के समय पैदा हुए दबाव को भली-
भांति सहन कर सकें। - गड्ढे की ऊंचाई उसके व्यास से दुगुनी होनी चाहिए, जिससे साइलेज के ऊपर से हवा
निकलने के लिए काफी दबाव पड सकें।
गड्ढे को भरना- गड्ढे को चारे से भरते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि चारा खूब दबा दबाकर भरा जाए, जिससे गड्ढे में हवा न रहने पाए। अतः जो चारा भरना हो उसको गड्ढे में सतह में लगाकर पैरों से खूब दबाते जाते हैं। इस प्रकार चारे की सतह लगाकर तथा खूब दबाकर कई बार में गड्ढे को पूरा भर लेते हैं। जब काफी मात्रा में चारा काटकर साइलेज बनाना होता है, तो कुट्टी काटने वाली मशीन को गड्ढे के ऊपर एक किनारे पर लगा देते हैं ताकि चारा कट-कट कर स्वयं ही गड्ढे में गिर जाए।
गड्ढे को खोलना- लगभग 50 से 80 दिन गड्ढे में बंद रखने के पश्चात यह सारा अचार का रूप धारण कर लेता है, जो हरे चारे से बिल्कुल भिन्न होता है। इसी को साइलेज कहते हैं। जब साइलेज बनकर तैयार हो जाए तो इस गड्ढे से लगभग 5-10 सेंमी. नित्य निकालकर पशुओं को खिलाना चाहिए। पूरा गड्ढा न खोलकर, उससे एक किनारे से ही साइलेज निकालनी चाहिए। ऐसा न करने से गड्ढे की साइलेज के सड़ने-गलने का भय रहता है।
साइलेज बनाने से लाभ-
- हरे चारेके अभाव में साइलेज से कमी पूरी की जा सकती है तथा खर्चा भी कम होता है।
- वर्षा ऋतु में जब” हे “बनाना कठिन होता है, तो साइलेज आसानी से बनाई जा सकती है।
- साइलेज सूखे चारोंकी अपेक्षा कम स्थान घेरती है। इस प्रकार डेरी फार्म पर स्थान की अधिक बचत होती है।
- साइलेजपौस्टिक अवस्था में अधिक समय तक रखा जा सकता है। यह जाड़े के दिनों में तथा चारागाहों के अभाव में पशुओं को खिलाया जा सकता है।
- साइलेजकी फसल के साथ-साथ खरपतवारों को भी नियंत्रण किया जा सकता है।
- साइलेजके लिए फसल को फूल आने से पहले काट लेने के कारण अगली फसल की तैयारी के लिए समय मिल जाता है।
- फसलपकने से पहले काट लेने से उसमें लगने वाले रोग व कीड़ों से सुरक्षा हो जाती है।
- साइलेजपशुओं को सालभर खिलाया जा सकता है।
- फसलके सड़ने व गलने तथा आग लगने का डर नहीं रहता।
- साइलेजअन्य चारों की अपेक्षा अधिक पाचक और पौष्टिक होने के कारण पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ाता है। इसके साथ ही पशुओं को स्वस्थ भी रखता है।
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