Editorial (संपादकीय)

आलू बीज उत्पादन तकनीक

Share

 मैदानी क्षेत्रों में 

ग्रीष्म कालीन कृषि क्रियायें

ग्रीष्मकाल में खेत को 2-3 बार जुताई करें एवं खेत खाली छोड़ दें। अगर पानी की उपलब्धता पर्याप्त हो तो 15-15 दिनों के अन्तराल पर हल्की सिंचाई भी करें। हरी खाद की फसलें जैसे ढैंचा, सनई, लोबिया आदि खरीफ मौसम में उगाकर उनहे खेत में ही अच्छी तरह मिला दें।

बीज प्राप्ति

बीज हमेशा विश्वसनीय स्त्रोतों, विशेषकर सरकारी बीज उत्पादन संस्थान से ही लेें। हर तीन-चार वर्ष के पश्चात बीज बदल लेेें। बीजीय आलू प्राप्त करते समय प्रस्ताविक बीज फसल से एक श्रेणी अधिक श्रेष्ठ बीज का प्रयोग करें।

बीज का आकार

बीज आलू उत्पादन के लिये बड़े आकार के बीज कंदों का प्रयोग करें जिनमें अंकुर अधिक संख्या में निकले हों। इनका वजन लगभग 40 से 50 ग्राम हो।

बीज से बीज की दूरी

बीज से बीज की दूरी के लिये यदि हमारा बीज बड़े आकार का  50-60 ग्राम हैं तो इसमें आलू कंद की दूरी 15-25 से.मी. एवं कतार से कतार 55-60 से.मी. की दूरी पर रखेें।

बीज की तैयारी

बीज को बुवाई से कम से कम 10 दिवस पूर्व बीज कंदों को भण्डार गृह से बाहर निकाल लें। और उन्हें 2-3 परतों में छायादार या ठण्डे स्थान पर फैलाकर रखेें।

बुवाई का समय

मैदानी क्षेत्र में बीज आलू की बुवाई अक्टूबर माह के मध्य में करें। इससे अगेती बुआई से छोटी पत्तियों वाले दुबले कमजोर पौधे निकलेगें। बुवाई में देरी भी न करें नहीं तो फसल एवं कंद बढ़वार हेतु आवश्यक दिन कम हो जायेगें और जनवरी माह के शुरू में माहू कीट का आक्रमण प्रारम्भ हो जायेगा।

आलू एक महत्वपूर्ण फसल है जिसके बीज उत्पादन के लिये किसान भाईयों को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है अगर आलू के बीज उत्पादन की तकनीक की सही जानकारी किसान भाईयों को नहीं होगी तो अच्छे बीजीय आलू का उत्पादन नहीं किया जा सकता है। आलू उत्पादन के लिये सबसे अधिक लागत (कुल लागत का लगभग 50 प्रतिशत) आलू के बीज पर खर्च होता है। बीज फसल के उत्पादन हेतु केवल राज्य/केन्द्रीय बीज उत्पादन इकाईयों से बीज लेकर उन्हें बीज एक्ट के अन्तर्गत निर्देशित उन क्षेत्रों में उगाना चाहिये जो माहो प्रभावित न हो तथा मिट्टी खुरण्ड (स्केब) कृमियों (निमेटोड) व भूरा गलन (ब्राउन राट) से मुक्त हो। 

खाद एवं उर्वरक

बीज आलू की फसल के लिये 260 किलोग्राम 260 यूरिया, 250 किलोग्राम स्फुर एवं 167किलोग्राम म्यूरेट पोटाश प्रति हेक्टर की दर से अनुशंसा की गई है। नत्रजन की आधी मात्रा एवं स्फुर व पोटाश पूरी मात्रा बुवाई के समय दें। शेष बच गई नत्रजन की आधी मात्रा गुड़ाई के समय दें। उर्वरकों का प्रयोग नालियों में इस प्रकार करें कि कंद उर्वरको के सीधे सम्पर्क में आयें।

सिंचाई

बुवाई के तुरन्त बाद सिंचाई जरूर करें। सिंचाई 7-12 दिन के अन्तराल से मिट्टी की किस्में, मौसम व फसल की मांग पर करें।

निराई-गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण

आलू फसल के अंकुरण में 15-20 दिवस का समय लगता है इसलिये, बुवाई के पश्चात 25 दिन तक का समय खरपतवारों को विकास व बढ़वार को समय प्रदान करता है। फसल की बीजाई के तुरन्त पश्चात खरपतवारों के उगने से पूर्व प्रति हेक्टर 200 ग्राम सेन्कोर नामक खरपतवार -नाशक या आलू के 5-10 प्रतिशत पौधे निकलने पर ग्रामोक्सोन नामक खरपतवारनाशक का छिड़काव करें। जब पौधे 8-10 से.मी. ऊचें हो जायें तो बुवाई के 20-25 दिनों बाद मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें।

पौधे उखाडऩा

आलू के बीज उत्पादन के लिये महत्वपूर्ण बात यह है कि उसमें पत्ते और डण्ठल 10 जनवरी से 20 जनवरी के मध्य काट दें ताकि फसल में माहू द्वारा विषाणु रोग फैलने से रोका जा सकें।

रोगिंग

पहली रोगिंग बुवाई के 20-25 दिन बाद जब पौधे निकल आये तब करें। फसल से जिस किस्म के आलू का बीज उत्पादन किया जा रहा है उसके अलावा अन्य किसी भी किस्म के आलू के आलू के पौधे यदि प्राप्त हो तो उन्हें उखाड़कर बीज की शुद्धता बनाये रखें। दूसरी बार रोगिंग 50-55 दिन पश्चात करें तथा तीसरी व अंतिम बर रोगिंग बीज फसल में पत्ते हटाने से पूर्व में करना चाहिये इस समय अन्य प्रजाति के पौधों को कंद समेत हटा दें।

पौध संरक्षण

आलू के मैदानी क्षेत्रों में बीज उत्पादन में पिछेता झुलसा रोग एक बड़ी समस्या आती है इससे बचाव के लिये मेंकोजब की 2 किलोग्राम मात्रा 300-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें। दिसम्बर माह के दौरान आलू की फसल पर माहो कीट का आक्रमण होता है इनसे फसल के बचाव हेतु प्रति हेक्टर 10 किलोग्राम की दर से फोरेट 10 जी दानेदार कीटनाशक का प्रयोग मिट्टी चढ़ाते समय करें या माहो आक्रमण के समय 1.0 लीटर डाइमिथिएट 30 ईसी या मिथाइल डेमेटान 25 ईसी को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। कटुआ कीट से 2 प्रतिशत से अधिक पौधे ग्रसित पाये जाने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 2.5 लीटर मात्रा को 1000-1200 लीटर पानी में घोलकर मेड़ों पर छिड़काव करें। पत्ती भक्षक कीट के नियंत्रण के लिये 2.5 लीटर कार्बोरिल 50 डब्लू. पी. को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

बीज उपचार एवं भण्डारण

वर्गीकृत कंदों को पानी से धोयें ब्लेक स्कर्फ तथा स्केब जैसे मिट्टी जनित रोग से बचाव हेतु धुले हुये बीज आलू कंदों को बोरिक एसिड के 3 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर उपचारित करें फिर सूखने दें। सूखने के बाद इन्हें बोरियों में भरकर लेबल लगाकर शीतगृत में ले जाये। उपचारित कंदों का प्रयोग खाने में न करें। बीजीय आलू को 30 मार्च तक हर हालत में भण्डारण में सुरक्षित रख दें। इस प्रकार बीज आलू उत्पादन की तकनीक अपना कर किसान भाई मैदानी क्षेत्रों में अपने लिये स्वयं आलू बीज उत्पादित कर सकते हैं।

  • डॉ. ए.के. बढ़ोलिया
  • अजय हालदार

   कृषि महाविद्यालय, ग्वालियर, मो. : 9926722700

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *