फसल की खेती (Crop Cultivation)

इस वर्ष किसान सरसों की अधिक पैदावार लेने के लिए लगाए सरसोंकी यह उन्नत किस्म

20 सितम्बर 2023, भोपाल: इस वर्ष किसान सरसों की अधिक पैदावार लेने के लिए लगाए सरसोंकी यह उन्नत किस्म – भारत में मूँगफली के बाद सरसों दूसरी सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है जो मुख्यतया राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम और गुजरात में उगायी जाती है। सरसों की खेती कृषकों के लिए बहुत लोकप्रिय होती जा रही है क्योंकि इससे कम सिंचाई व लागत से अन्य फसलों की अपेक्षाकृत अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है। इसकी खेती मिश्रित फसल के रूप में या दो फसलीय चक्र में आसानी से की जा सकती है।

भूमि: सरसों की खेती को करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। क्षारीय तथा अम्लीय मिट्टी में इसकी फसल को नहीं उगाया जा सकता है।

सरसों की उन्नतशील प्रजातियाँ:

पूसा बोल्ड: इस किस्म के पौधे 125 से 140 दिन में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है। इसके पौधों की फलिया मोटी होती है। इसके दानो से 37-38 प्रतिशत तक ही तेल प्राप्त किया जा सकता है | यह प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 20 से 25 क्विंटल की पैदावार देता है।

वसुंधरा (R.H. 9304): इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 180-190 सेमी. होती है। इसमें निकलने वाली फली सफ़ेद रोली तथा चटखने के प्रति प्रतिरोधी है। इसके पौधे पककर 130-135 दिन में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है, तथा यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 25 से 27 क्विंटल की पैदावार देती है।

अरावली (आर.ऍन. 393): सरसों की इस किस्म में फसल को पककर तैयार होने में 135 से 140 दिन का समय लगता है। इसके पौधे माध्यम ऊंचाई के होते है, तथा इसके बीजो से 43 प्रतिशत तक का तेल प्राप्त हो जाता है। यह सफ़ेद रोली प्रतिरोधी पौधा होता है, जिसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 22 से 25 क्विंटल होती है।

अन्य किस्में: क्रांति, माया, वरुणा, पूसा बोल्ड उर्वशी, तथा नरेन्द्र राई प्रजातियों की बुवाई सिंचित दशा में की जाती है तथा वरुणा, वैभव और वरदान, इत्यादि प्रजातियों की बुवाई असिंचित दशा में करना चाहिए।

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