फसल की खेती (Crop Cultivation)

पूसा अहिल्या और पूसा वानी: गेहूं की ऐसी किस्में जो देंगी एक हेक्टेयर में 70 क्विंटल उपज

08 नवंबर 2024, इंदौर: पूसा अहिल्या और पूसा वानी: गेहूं की ऐसी किस्में जो देंगी एक हेक्टेयर में 70 क्विंटल उपज – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, इंदौर द्वारा गेहूं की दो किस्में, पूसा अहिल्या (एच.आई.1634) और पूसा वानी (एच.आई.1633), विकसित की गई हैं, जो अपनी उच्च उत्पादन क्षमता और बेहतरीन चपाती गुणवत्ता के लिए जानी जा रही हैं। इन किस्मों का विकास डॉ. एस.वी. साई प्रसाद और वैज्ञानिक श्री जंगबहादुर सिंह के मार्गदर्शन में किया गया है, और इन्हें अगस्त में आयोजित अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ शोध कार्यशाला में चिन्हित किया गया है।

पूसा अहिल्या (एच.आई.1634): इस किस्म को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, झांसी, और उदयपुर क्षेत्रों के लिए देर से बुवाई की सिंचित स्थिति में अनुशंसित किया गया है। इसकी औसत उपज क्षमता 51.6 क्विंटल/हेक्टेयर है, जबकि अधिकतम उत्पादन 70.6 क्विंटल/हेक्टेयर तक पहुँच सकती है। यह किस्म काले और भूरे रतुआ के साथ-साथ करनाल बंट रोग के प्रति भी प्रतिरोधी है। इसका अनाज बड़ा, कठोर, चमकदार और प्रोटीनयुक्त है, जिससे चपाती की गुणवत्ता उत्कृष्ट होती है।

पूसा वानी (एच.आई.1633): महाराष्ट्र और कर्नाटक के प्रायद्वीपीय क्षेत्रों के लिए तैयार की गई यह किस्म देर से बुवाई और सिंचित स्थिति में बेहतर उत्पादन देती है। इसकी औसत उपज 41.7 क्विंटल/हेक्टेयर है, और अधिकतम उपज 65.8 क्विंटल/हेक्टेयर तक हो सकती है। यह प्रचलित किस्म एच.डी.2992 की तुलना में 6.4% अधिक उपज देती है और काले व भूरे रतुआ रोग से पूर्ण रूप से प्रतिरोधी है। इसके दानों में 12.4% प्रोटीन, 41.6 पीपीएम लौह तत्व और 41.1 पीपीएम जिंक तत्व पाया जाता है, जो इसे पोषक तत्वों से भरपूर बनाता है।

इन नई किस्मों के कारण किसान अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा सकते हैं और बेहतरीन चपाती गुणवत्ता का लाभ उठा सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन दोनों प्रजातियों की विशेषताएं इन्हें किसानों के लिए एक लाभकारी और स्थिर विकल्प बनाएंगी।

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