फसल की खेती (Crop Cultivation)

मिथायलो बेक्टेरियम द्वारा जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याओं का निवारण

  • अपेक्षा बाजपाई ,भारती कोल्लाह
  •  संतोष रंजन मोहंती,
    भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् – भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल

04 जनवरी 2023,  भोपाल । मिथायलो बेक्टेरियम द्वारा जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याओं का निवारण – जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, जिसका सीधा असर पादप समूह पर होता है क्योंकि ये बाहरी प्रतिकूल वातावरण की परिस्थितियों से सीधे संपर्क में होते हैं तथा जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों के लिए पौधे अति संवेदनशील होते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए जलवायु परिवर्तन का विभिन्न फसलों के गुणधर्मों एवं उनके उत्पादन पर हो रहे दुष्प्रभावों पर विचार अत्यंत आवश्यक है। हाल में हुए अध्ययनों के द्वारा यह अनुमानित किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों के बीजों की पोषण गुणवत्ता एवं उत्पादन (-3.5 ङ्ग 1013 किलो कैलौरी प्रति वर्ष) में वैश्विक स्तर पर लगभग 0.8 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसके अलावा अनेकों देशों में गेहूं व चावल जैसी मुख्य फसलों के उत्पादन में भी कमी देखी गई है। ग्रीन हाउस गैसें जैसे कार्बन डाईऑक्साईड, मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन की मात्रा बहुत तेज़ी से वातावरण में बढ़ रही है, हालाँकि सूक्ष्मजीवों के द्वारा इन गैसों का वातावरण में लगातार हो रहे अंतर्वाह को नियंत्रित किया जा सकता है। सूक्ष्मजीवों में ग्रीन हाउस गैसों के मेटाबोलिज्म की क्षमता पाई जाती है उदाहरण के तौर पर मिथानोबेक्टेरिया, मिथानोब्रावीबेक्टर जैसे जीवाणु मीथेन गैस को मेटाबोलाइज़ करके स्टेबल पदार्थ में बदल देते हैं। उसी प्रकार मेथनॉल जो मीथेन गैस के उत्सर्जन के द्वारा बनता है उसे मीथायलोट्रोप्स जीवाणु जैसे मिथायलो बेक्टेरियम और मीथायलो वोरस के द्वारा अवशोषित किया जाता है।

मिथायलो बेक्टेरियम कल्चर की क्रियाविधि

वायुमंडल में उपस्थित ओजोन परत का जलवायु परिवर्तन के कारण दिन-प्रतिदिन क्षरण हो रहा है जिससे सूर्य से उत्सर्जित होने वाली पराबैंगनी किरणें धरती की सतह तक पहुँचने लगी हैं। इसके हानिकारक प्रभाव जैसे त्वचा कैंसर, तापमान में वृद्धि बहुतायत में देखने में आ रहे हैं। कुछ सूक्ष्मजीवों जैसे मिथायलो बेक्टेरियम एक्सटोरक्यूएंस और अन्य स्पीशीज में ऐसा गुण पाया  जाता है कि ये जीव अपनी स्वयं की कोशिका के डीएनए, प्रोटीन व लिपिड्स को पराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभाव से होने वाले निम्नीकरण से बचने के लिए कुछ विशेष प्रकार के रंजकों का संचय करते हैं। ये रंजक एन किरणों को अवरुद्ध कर कोशिका के रक्षा करने में मदद करते हैं। केरोटीनोइड नामक रंजक जो लगभग सभी प्रकार के पौधों, फंजाई और बहुत से जीवाणुओं की स्पीशीज जैसे एसिटीनोबेक्टर, बेसिडियोमायसिटीज, सोरडारिओमायसिटीज, मिथायलो बेक्टेरियेसी आदि में बहुतायत में पाया जाता है। सूर्य से उत्सर्जित होने वाली पराबंैगनी किरणें विभिन्न फसलों के उत्पादन, पोषक मान एवं जैवभार को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं। ऐसा पाया गया है कि पराबैंगनी किरणों के प्रभाव के कारण सोयाबीन के बीजों के तेल में अवांछनीय बहु असंतृप्त लिनोइक अम्ल व लिनोएनिक अम्ल की मात्रा बढ़ रही है जबकि एकल संतृप्त ओलिक अम्ल, प्रोटीन्स, कार्बोहायड्रेट व वसीय अम्लों की मात्रा घट रही है। इसी प्रकार की दूसरे शोध अध्ययनों में यह पाया गया है की पराबैंगनी किरणों की मात्रा में 20 प्रतिशत की बढ़त होने पर फसलों के उत्पादन में लगभग 6 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है। केरोटीनोइड रंजक जीवों की कोशिका के लिए विकिरणरोधी सतह की तरह कार्य कर पराबैंगनी किरणों के दुष्प्रभाव से बचाता है।

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मिथायलो बेक्टेरियम एक जैव उर्वरक

भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल के विज्ञानिकों ने यह शोध में पाया है कि मिथायलो बेक्टेरियम एक बहुउपयोगी बैक्टीरिया है। यह पादप समूह को न सिर्फ पराबैंगनी किरणों से बचाता है, बल्कि मृदा की गुणवत्ता तथा फसलों की उत्पादकता में एक महत्वपूर्ण संतुलन स्थापित करने में इसका एक बहुत बड़ा योगदान पाया गया है। पौधों के मूलपरिवेश में मिथायलो बेक्टेरियम पाया जाता है जो अपनी अनेकों जैविक क्रियाओं के संपादन द्वारा पौधों के लिए उपयोगी विभिन्न जैव रसायनों का स्त्रावण करते हैं और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पौधों के विकास में सहयोगी होते हैं। उदहारण स्वरुप, मिथायलो बेक्टेरियम एसीसी डीएमीनेस नामक एंजाइम का स्त्रावण करते हैं जिससे इथेलीन का स्तर कम हो जाता है। इस क्रियाविधि के द्वारा ये सूक्ष्मजीव सूखा तनाव क्षेत्रों में विकास करते हैं। सूखा तनाव परिस्थितियों में ये सूक्ष्मजीव एब्सिसिक एसिड के द्वारा पौधों में तनाव जीनों को उत्तेजित कर उनमें रन्धों के खुलने को नियंत्रित करते हैं जिससे ट्रांसपिरेशन कम हो जाता है। इसके अलावा सूक्ष्मजीव इण्डोल एसिटिक एसिड पादप हार्मोन का स्त्रावण करते हैं जिससे पाशर््िवक मूल विकसित होती है जो मृदा से जल के अवशोषण को बढ़ाती है। विभिन्न जैव पदार्थ जैसे प्रोलीन, ग्लाइसिन, ग्लूटामेट और ट्रीहेलोस को संचित करके परासरण दबाव को कम करता है जबकि जीवाणु द्वारा स्त्रावित एक्सोपोलीसेकेराइड पौधों की कोशिका झिल्ली अखंडता को सूखा तनावपूर्ण वातावरण में भी बनाये रखता है। अत: यह एक बहुपयोगी बैक्टीरिया है जिससे जलवायु परिवर्तन से होने वाली समस्या का निवारण होना निश्चित है। 

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मिथायलो बेक्टेरियम कल्चर के लाभ
  • मिथायलो बेक्टेरियम एक सूखा सहनशील बैक्टीरिया है जिनमे कम पानी और अधिक तापमान को सहन कर पौधों के वृद्धि और विकास करने की क्षमता पाई जाती है।
  • केरोटीनोइड रंजक जो कि मिथायलो बेक्टेरियम में पाया जाता है उसका पत्तियों पर छिडक़ाव करने से पौधों को पराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभाव से बचाया जा सकता है। यह विशेषता मिथायलो बेक्टेरियम को एक अनोखा सूक्ष्मजीव बनाती है।
  • मिथायलो बेक्टेरियम कल्चर में यह क्षमता होती है की उसे रसायनिक उर्वरक की जगह प्रयोग में लाया जा सकता है।

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