राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)संपादकीय (Editorial)

जलवायु परिवर्तन से संकट एवं उसका निवारण

लेखक: डॉ आशीष सिंह एवं डॉ विकास जैन कृषि महाविद्यालय, पवारखेड़ा, नर्मदापुरम

21 फ़रवरी 2025, भोपाल: जलवायु परिवर्तन से संकट एवं उसका निवारण –

जलवायु परिवर्तनः जलवायु परिवर्तन एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है जो पृथ्वी के जलवायु पैटर्न में महत्वपूर्ण और स्थायी परिवर्तन को इशांती है। यह मुख्यत ग्रीनहाउस गैसे “वह गैसे होती है जो वातावरण में ऊष्मा को फंसाकर नरती का तापमान बढ़ाने का कारण बनती हैं.।” इनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2): जीवाश्म इंधना (कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस) के जलने बनस्पति की कटाई और कछ औद्योगिक प्रक्रियाओं के कारण उत्सर्जित होती है।

मीथेन (CH4) पशुपालन, चावल की खेती लैंडफिल, और प्राकृतिक गैस उत्पादन से उत्सर्जित होती है। यह CO: की तुलना में अधिक ऊष्मा फसाने बाली गैस है।

नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O): N₂O एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। इसकी गर्मी को फैलाने की क्षमता CO₂ की तुलना में 300 गुना अधिक है, जिससे यह वैश्विक तापमान वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारण बनती है। नाइट्रस ऑक्साइड ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचाता है, जो हानिकारक पराबैंगनी (यूबी) किरणों से पृथ्वी को बचाने का काम करती है। 03 परत के कमजोर होने से त्वचा के कैंसर और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। कृषि में N₂O का उपयोग उर्वरकों के रूप में किया जाता है, जिससे मिट्टी और जलखोत प्रदूषित हो सकते हैं। यह प्रदुषण पौधों और जल जीयों के लिए हानिकारक होता है। नाइट्रस ऑक्साइडू के प्रदूषण से पर्यावरणीय स्वास्थ्य भी प्रन्नावित होता है. जिससे जीव-जंतुओं और पौधों की प्रजातियों की बुद्धि और विकास में बाधा आ सकती है। NO उत्सर्जन को कम करने से ग्लोबल वार्मिंग को रोकने में तेजी से और महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है, क्योंकि CO, की तुलना में इसका जीवनकाल छोटा होता है। हालाँकि, इन उत्सर्जनों को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि यह जाय उत्पादन से जुड़े होते हैं। कुल मिलाकर, नाइट्रस ऑक्साइड का अधिक उत्सर्जन पर्यावरण के लिए कई प्रकार की समस्याए उत्पन्न करता है, जिन्हें नियंत्रित करना आवश्यक है।

फ्लोरोकार्बन (CFC): फ्लोरोकार्बन (CFC), क प्रकार की रसायनिक यौगिक है जिसमें कार्बन, क्लोरीन और फ्लोरीन सामिल होते हैं। इन्हें आमतौर पर रेफ्रिजरेंट प्रोसोल प्रोपेलेंट और क्लीनिंग सॉल्वेंट के रूप में उपयोग किया जाता था। CPC वातावरण में पहुंचकर ओजोन प्ररत को क्षति पहुंचाते हैं, जिससे ओजोन छिद्र उत्पन्न होते हैं। ओजोन परत के कमजोर होने से हानिकारक पूड़ी किरणें पुथ्वी पर अधिक पहन सकती है, जो स्वास्थ्य और पुर्यावरण के लिए हानिकारक होती हैं। CFC ग्रीनहाउस गैसों के रूप में भी काम करते हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि होती है। वातावरण में का अपघटन बहुत धीमा होता है, जिससे यह लबे समय तक वातावरण में बना रहता है और लगातार नुकसान पहुंचाता है CFC के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों जैसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को अपनाया गया है, जिसके तहत इन रसायनों का उत्पादन और उपयोग कम किया जा रहा है।

ये गैसें वातावरण में क अदृश्य आवरण बनाती हूँ, जो सुमं से आने वाली ऊष्मा को धरती पर ही रोक लेती हूँ और उसे वापस अतीि में नहीं जाने देती। इससे ग्लोबल मामिग और जलवायु परिवर्तन के प्रभाय बढ़ते हैं। में गैसे वातावरण में कृष्मा को फत्ताती हूँ, जिससे पृथ्वी का तापमान बढता है। डॉ. यह सही है। चरती का औसत तापमान बढ़ रहा है और इसे हम ग्लोबल वार्मिंग के नाम से जानते है। इसका मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैसों का बढता उत्सर्जन है, जो हमारे वातावरण में ऊष्मा को फंसा लेता है। इसके परिणामस्वरूप, मौसम में परिवर्तत समुद्र के आड़ में पुद्धि और प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और तीव्रता में वृद्धि देखी जा रही है। जलमायु परिवार्तन एक गंभीर और वैश्विक मुद्दा है जो हमारे पर्यावरण, मौसम और जीवनशैली पर गहरा प्रभाव डालता है। ग्लेशियर और बूषीय बर्फ का पिघलना जलपायु परिवर्तन के प्रमुख परिणामों में से एक है। यह पिघलाय समुद्र के स्तर में वृद्धि और तटीय क्षेत्रों में बात का खतरा बढाता है। इसके अलावा ग्लेशियरों के पिघलने से ताप्ने पानी के स्रोत भी प्रभावित हो सकते हैं, जो कई जीयों और मानव समाजों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसका कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

तटीय बाढ़ः समुद्र के स्तर में बुद्धि से तट्टीय क्षेत्रों में बात का खतरा बढ़ जाता है, जिससे वहां की आबादी और संपत्ति को नुकसान हो सकता है।

नमक के जल स्रोतों में घुलनाः समुद्र का पानी ताजे पानी के स्रोतों में मिलकर उन्हें खारा बना सकता है, जिससे पीने और खेती के लिए पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रः समुद्र के तार में बुद्धि से समुद्री जीवन और तटीय पारिस्थितिकी तत्र पर भी प्रभाव पड़ता है. जैसे कि मन्द्रीय पन और प्रवाल मितियों।
जलवायु परिवर्तन के कारण तुफान, तुखा और बाल जैसी चरम् मौसम की घड़नाओं में वृद्धि हो रही है। यह घटनाएं दुनिया भर में समाज और पुर्यावरण पर गहरा प्रभाव डाल रही हुरू

तुफानः वाममंतलीय तापमान में वृद्धि से अधिक शक्तिशाली और विनाशकारी तुफान पैदा हो रहे हैं, जो भारी बारिश, तेज जुवाए और बात का कारण बनते हैं।

सुखाः बढ़ता तापमान और बदलते मौसम पैटर्न के कारण सुखे की घटनाएं बढ़ रही हैं जिससे कृषि, जल संसाधन और जीविका प्रभावित हो रही है।

बाढ़ः ग्लेशियरों के पिघलने और अधिक वर्षों के कारण नदियों और जलाशयों में बाड़ की घटनाएं बढ़ रही है, जिससे सम्पत्ति और जीवन को खतरा है

जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों के कारण कई वन्यजीव प्रजातियां संकट में हैं और उनके प्राकृतिक नावास तेजी से नष्ट हो रहे हैं। इसके प्रमुख कारण हुरू
वनों की कटाई: कृषि, उद्योग और सहरीकरण के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कढ़ाई हो रही है, जिससे कई प्रजातियों का आवास नष्ट हो रहा है।

जलवायु परिवर्तनः तापमान में बुद्धिः असामान्य मौसम की घटनाए, और समुद्र के उहार में बुद्धि प्रजातिलों के आवाओं को प्रभावित कर रहे हैं।

प्रदूषणः जल, वायु, और मुनि प्रदूषण जीवों के लिए विषात परिस्थितियों का निर्माण कर रहे हैं.।

अत्यधिक शिकार अवैध शिकार और अत्यधिक मछली पकड़ना बन्यजीव आबादी को कम कर रहे हैं।

आप्रवासी प्रजातियाः कुछ प्रजातियों का परिचय नए आवासों में करवाना वहां की मौजूदा प्रजातियों के लिए खतरा बन सकता है।
इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए सुरक्षण के प्रयास और सतत विकास के उपाय आवश्यक है। वैरिवार समुदाय सरकारें और व्यक्तिगत हार पर हुमें कुम्यजीयों और उनके आवालों की सुरक्षा के लिए कुदस जाने चाहिए। यहाँ कुछ उपाय हूँ जिनसे सरक्षण के
माध्यम से जलवायु परिवर्तन का समाधान किया जा सकता हूँरु

वन संख्क्षण और पुनः वनीकरणः पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा कम होती है। पन संरक्षण और पृक्षारोपण से कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।

जैव विविधता का सख्क्षणः पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता बनाए रखने के लिए जैव विविधता का संरक्षण महत्वपूर्ण है। यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से मुकाबला करने में मदद पारता है।

पानी का संख्क्षणः जल सुसाधनों का सतत उपयोग और संरक्षण जलवायु परिवार्तन के प्रभावों को कम करने में मदद करता है। जल संचय और पुनर्षक्रण उपायों को अपनाया जा सकता है।

ऊर्जा सचक्षणः ऊर्जा की बचत और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करणे कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का अधिकतम उपयोग करें।

सतत कृषि प्रथाओं को अपनानाः सतत कृषि प्रभाओं के मुध्यम से मुद्रा सुरक्षण उर्वरकों और कीटनाशकों का सतत उपयोग, उत्तल चक्रण, समेकित पाँच सुख्ला (IPM) कजरवेशन दिलेज (Conservation Tillage) ऑर्गेनिक खेती जल प्रबंधन, कुवरहॉपिंग अग्रोफोरेस्ट्री (Agroforestry), अपशिष्ट प्रबंधन और जलवायु स्मार्ट कृषि तकनीकों का अपनाना जलवायु परिवर्तन के समाधान में सहायक हो सकता है।

इन प्रथाओं को अपनाकर न केवल पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है बल्कि किसान की आय में भी वृद्धि हो सकती है और भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधनों का संखाण किया जा सकता है।

शहरी नियोजन और परिवहन्ः सार्वजनिक परिवहन, साइकिलिग और पैदल चलने को प्रोत्साहित करें। स्मार्ट राहरी नियोजन से कुज़र्जा की बचत होती है और प्रदूषण कम होता है।

शिक्षा और जागरूकताः जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के बारे में लोगों को शिक्षित करें और जागरूकता बढ़ाएं। इससे समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद मिलती है।

नीतियां और नियमः सरकारे जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए कड़े नीतियों और नियमों को लागू करें जैसे कार्बन टैक्स, और नवीकरणीय ऊर्जा सब्सिडी।
ये समाधान मिलकर जलवायु परिवर्तन के प्रनायों को कम करने और एक स्थायी मुविष्य की ओर बढ़ने में मदद कर सकते हैं।

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