पाले से गेहूं की फसल को बचाने के लिए ICAR की महत्वपूर्ण सलाह
17 जनवरी 2025, नई दिल्ली: पाले से गेहूं की फसल को बचाने के लिए ICAR की महत्वपूर्ण सलाह – ठंड के मौसम में पाले का प्रकोप गेहूं की फसल के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है। पाले के कारण पौधों की पत्तियां झुलस जाती हैं, जिससे उनकी वृद्धि रुक जाती है और उपज में भारी गिरावट आती है। विशेष रूप से जिन क्षेत्रों में तापमान तेजी से गिरता है, वहां यह समस्या अधिक देखने को मिलती है।
किसानों को इस समस्या से बचाने के लिए ICAR-भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा) ने उपयोगी और वैज्ञानिक सुझाव दिए हैं। इनमें हल्की सिंचाई, खेत में नमी बनाए रखना, और मौसम की निगरानी जैसे उपाय शामिल हैं। ICAR की इन सिफारिशों को अपनाकर किसान अपनी फसल को पाले के प्रकोप से बचा सकते हैं और उत्पादन को सुरक्षित बना सकते हैं।
खरपतवार प्रबंधन (शाकनाशी स्प्रे):
गेहूं की फसल में खरपतवारों का प्रबंधन प्रभावी तरीके से करना उत्पादन को बढ़ाने के लिए बेहद ज़रूरी है। यहां संकरी और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए सुझाव दिए गए हैं:
1. संकरी पत्ती वाले खरपतवारों का नियंत्रण
गेहूं की फसल में संकरी पत्ती वाले खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए दो प्रमुख रसायन उपयोगी हैं। क्लोडिनाफॉप 15 डब्ल्यूपी को 160 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें, या पिनोक्साडेन 5 ईसी को 400 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। इनका छिड़काव खेत में खरपतवार की शुरुआती अवस्था में करें, ताकि खरपतवार फसल के विकास में बाधा न बन सके।
2. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का नियंत्रण
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के प्रबंधन के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं। 2,4-डी ई को 500 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, बेटसल्फ्यूरॉन 40 डब्ल्यूपी को 40 ग्राम प्रति एकड़ या काफैट्राजोन 8 डीएफ को 20 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करना भी प्रभावी है। इन रसायनों का छिड़काव खरपतवार की सक्रिय अवस्था में करना बेहतर होता है।
3. संकरी और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के मिश्रित नियंत्रण के उपाय
यदि खेत में संकरी और चौड़ी पत्ती वाले दोनों प्रकार के खरपतवार मौजूद हैं, तो सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 डब्ल्यूपी को 13.5 ग्राम प्रति एकड़ या मेटसल्फ्यूरॉन 20 डब्ल्यूपी का उपयोग करें। इसे 16 लीटर पानी में मिलाकर पहली सिंचाई से पहले या उसके 10-15 दिन बाद छिड़काव करें। इसके अलावा, मेसोसुल्फ्यूरॉन + आयोडोसुल्फ्यूरॉन 3.6% डब्ल्यूडीजी का उपयोग भी मिश्रित खरपतवार नियंत्रण के लिए किया जा सकता है।
4. फलारिस माइनर (गुल्ली डंडा) के प्रबंधन के लिए विशेष उपाय
बहु खरपतवारनाशी प्रतिरोधी फलारिस माइनर के प्रबंधन के लिए, बुवाई के 30-60 दिन बाद मैट्रिब्यूजिन डब्ल्यूपी का 120 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। यदि पहले से यह खरपतवार मौजूद है, तो पायरोक्सासल्फोन + क्लोडिनाफॉप 42 डब्ल्यूपी मिश्रण का 200 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। अगर बुवाई के समय पायरोक्सासल्फोन का उपयोग नहीं किया गया है, तो इसे बुवाई के 1-2 दिन पहले या पहली सिंचाई के बाद भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
5. महत्वपूर्ण सावधानियां
इन सभी शाकनाशियों का उपयोग करते समय यह ध्यान दें कि छिड़काव के लिए साफ पानी का उपयोग हो और मौसम साफ हो। छिड़काव से पहले खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए, जिससे रसायन का प्रभाव बेहतर हो। इन निर्देशों का पालन कर किसान अपनी फसल को खरपतवारों से मुक्त और स्वस्थ रख सकते हैं।
पीला रतुआ और भूरा रतुआ: रोकथाम और प्रबंधन
रतुआ रोग गेहूं की फसल को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, खासकर जब मौसम इसके अनुकूल हो। किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी फसल का नियमित रूप से निरीक्षण करें और पीला रतुआ (धारीदार रतुआ) या भूरा रतुआ के लक्षणों की पहचान करें। यदि रतुआ का प्रकोप पाया जाए, तो निम्नलिखित उपाय अपनाएं:
संक्रमित क्षेत्र में रसायन का छिड़काव
रतुआ रोग के नियंत्रण के लिए प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी को 0.50 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें। इसके विकल्प के रूप में टेबुकोनाजोल 1% + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% डब्ल्यूजी को 0.06 प्रतिशत की दर से उपयोग करें। इन फफूंदनाशकों का छिड़काव रतुआ के फैलाव को रोकने में प्रभावी होता है।
सही मात्रा और मिश्रण विधि का पालन करें
फफूंदनाशकों का सही तरीके से उपयोग सुनिश्चित करें। एक लीटर पानी में 1 मिलीलीटर प्रोपिकोनाजोल मिलाएं और इसे 200 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ छिड़कें। इसी तरह, टेबुकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% डब्ल्यूजी को 0.6 प्रतिशत की दर से मिलाकर प्रति एकड़ 120 लीटर पानी में छिड़काव करें। सही मिश्रण और मात्रा का पालन करना फसल की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।
वैकल्पिक फफूंदनाशकों का उपयोग
जिन किसानों ने पिछले वर्ष एक ही प्रकार के फफूंदनाशक का छिड़काव किया हो, उन्हें इस वर्ष किसी अन्य अनुशंसित फफूंदनाशक का उपयोग करना चाहिए। इससे रतुआ रोग के खिलाफ प्रभावी नियंत्रण सुनिश्चित होगा।
मौसम को ध्यान में रखते हुए छिड़काव करें
फसल पर फफूंदनाशकों का छिड़काव केवल तभी करें जब मौसम साफ हो। बारिश, कोहरा या ओस के दौरान छिड़काव से बचें, क्योंकि यह फफूंदनाशक के प्रभाव को कम कर सकता है।
इन सावधानियों और उपायों का पालन कर किसान अपनी फसल को रतुआ रोग से बचा सकते हैं और गेहूं की उपज को सुरक्षित बना सकते हैं।
जल्दी बोई गई गेहूं की फसल के गिरने पर नियंत्रण
जल्दी बोई गई गेहूं की फसल में अत्यधिक उर्वरता और सिंचाई की अधिकता के कारण फसल गिरने की समस्या आम है। इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए वृद्धि नियामकों का उपयोग एक प्रभावी उपाय हो सकता है। क्लोरमेक्वेट क्लोराइड (सीसीसी) को 0.2% और टेबुकोनाजोल 250 ईसी को 0.1% की दर से उपयोग करें। इनका छिड़काव टैंक मिश्रण के रूप में दो बार करना चाहिए। पहला छिड़काव फसल की पहली नोड अवस्था (बुवाई के 50-55 दिन बाद) और दूसरा छिड़काव फ्लैग लीफ अवस्था (बुवाई के 75-85 दिन बाद) किया जाए।
जो किसान पहले चरण में छिड़काव नहीं कर सके, वे फसल की स्थिति को देखते हुए 70-80 दिन बाद एक बार छिड़काव कर सकते हैं। यह उपाय फसल की मजबूती बढ़ाकर इसे गिरने से बचाता है।
गुलाबी छेदक का प्रबंधन
गुलाबी छेदक (कैटरपिलर) विशेष रूप से धान, मक्का, कपास और गन्ना उगाने वाले क्षेत्रों में गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाता है। यह कीट तने में घुसकर ऊतकों को खा जाता है, जिससे पौधे पीले पड़ जाते हैं और आसानी से उखाड़े जा सकते हैं। जब प्रभावित पौधे उखाड़े जाते हैं, तो उनकी निचली नसों पर गुलाबी रंग के कैटरपिलर दिखाई देते हैं।
इस समस्या से बचने के लिए नियमित फसल निरीक्षण करना अनिवार्य है। संक्रमित पौधों को हाथ से उखाड़कर नष्ट करना सबसे पहला कदम है। इसके अतिरिक्त, कीट के प्रकोप को रोकने के लिए विभाजित खुराक में नाइट्रोजन उर्वरकों का उपयोग करें। इस तरह की सावधानियां और उपाय अपनाकर किसान गुलाबी छेदक के प्रभाव को कम कर सकते हैं और अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं।
कीट प्रबंधन
फसल को कीट संक्रमण से बचाने के लिए प्रभावी उपायों का पालन करना बेहद आवश्यक है। संक्रमण रोकने के लिए नाइट्रोजन उर्वरकों का विभाजित खुराक में उपयोग करने की सलाह दी जाती है। यह विधि पौधों को पोषण देते हुए कीट प्रकोप की संभावना को कम करती है।
यदि फसल में संक्रमित टिलर पाए जाते हैं, तो उन्हें तुरंत हाथ से उठाकर नष्ट कर देना चाहिए। यह तरीका बोरर के हमले को प्रभावी रूप से रोकने में सहायक होता है।
संक्रमण के अधिक होने की स्थिति में क्विनलफॉस 25% ईसी का उपयोग करें। इसे 1000 मिलीलीटर की मात्रा में 500 लीटर पानी के साथ मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। यह उपाय फसल को कीटों से सुरक्षित रखता है।
दीमक नियंत्रण
दीमक प्रभावित क्षेत्रों में फसल की सुरक्षा के लिए बीज उपचार सबसे महत्वपूर्ण उपाय है। बीजों को क्लोरोपायरीफॉस (0.9 ग्राम ए.आई.) से उपचारित करें। इसके लिए 4.5 मिलीलीटर उत्पाद मात्रा प्रति किलोग्राम बीज का उपयोग करें।
इसके अलावा, थियामेथोक्साम 70 डब्ल्यूएस (कूजर 70 डब्ल्यूजी) को 0.7 ग्राम ए.आई./किलोग्राम बीज (4.5 मिलीलीटर उत्पाद मात्रा प्रति किलोग्राम बीज) या फिप्रोनिल (रीजेंट 5 एफएस) को 0.3 ग्राम ए.आई./किलोग्राम बीज (4.5 मिलीलीटर उत्पाद मात्रा प्रति किलोग्राम बीज) से उपचारित करना भी बेहद प्रभावी है।
इन उपायों को अपनाकर किसान अपनी फसल को दीमक और अन्य कीटों से बचा सकते हैं और उपज में सुधार कर सकते हैं। फसल की नियमित निगरानी और सावधानीपूर्वक कीट प्रबंधन पद्धतियां अपनाने से खेती अधिक लाभदायक और सुरक्षित बनती है।
सामान्य सुझाव
1. हाल ही में उत्तर भारत में हुई वर्षा को देखते हुए, अच्छी वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए प्रति एकड़ किलोग्राम 40 यूरिया की खुराक डालने की सलाह दी गई है।
2. जिन क्षेत्रों में वर्षा नहीं होती है, वहां फसल को पाले से बचाने के लिए, यदि मिट्टी में पर्याप्त नमी न हो तो हल्की सिंचाई की जा सकती है
3. पानी बचाने और लागत कम करने के लिए खेतों में समय पर और विवेकपूर्ण तरीके से सिंचाई करें। इस अवस्था में उचित खरपतवार प्रबंधन का पालन किया जाना चाहिए।
4. सिंचाई से पहले मौसम पर नज़र रखे और यदि बारिश का पूर्वानुमान हो तो सिंचाई न करें, ताकि अधिक पानी की स्थिति से बचा जा सके।
5. यदि फसल में पीलापन आ रहा है, तो अत्यधिक नाइट्रोजन का उपयोग न करें। (यूरिया) साथ ही, कोहरे या बादल वाली स्थिति में नाइट्रोजन के उपयोग से बचे।
6. पीले रतुआ संक्रमण के लिए फसल का नियमित रूप से निरीक्षण करें और रोग के लक्षण मिलने पर निकटवर्ती संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय अथवा कृषि विज्ञान केन्द्रों से संपर्क करें।
7. संरक्षण कृषि में यूरिया का छिड़काव सिंचाई से ठीक पहले की जानी चाहिए।
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