राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)फसल की खेती (Crop Cultivation)

अच्छी उपज के लिए गेहूँ की सफल खेती के सूत्र एवं पोषक तत्वों के कमी के लक्षण

लेखक: उपेन्द्र सिंह, कैलाष चन्द्र शर्मा, दिलीप कुमार वर्मा एवं कुलदीप सिंह सोलंकी, भा.कृ.अनु.प.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय गेहूँ अनुसंधान केंद्र, इन्दौर-452001

09 नवंबर 2024, नई दिल्ली: अच्छी उपज के लिए गेहूँ की सफल खेती के सूत्र एवं पोषक तत्वों के कमी के लक्षण –

  • खेत की तैयारी (जुताई तथा पठार) खरीफ फसल कटते ही करें ।
  • पलेवा नहीं करे, बल्कि सूखे में बुवाई करके तुरन्त सिंचाई करे।
  • क्षेत्र के लिए अनुषंसित प्रजातियों का ही इस्तेमाल करें। प्रजाति का चुनाव अपने संसाधनों यानि उपलब्ध सिंचाई की मात्रा तथा आवष्यकताओं के अनुरूप करें।
  • सूखा रोधी एवं कम सिंचाई चाहने वाली उन्नत किस्मों का अधिकाधिक उपयोग करें।
  • पोषक तत्वों का उपयोग मृदा स्वास्थ्य जाँच रिपोर्ट के आधार पर करें।
  • नत्रजन: स्फुर: पोटाष संतुलित मात्रा अर्थात 4ः2ः1 के अनुपात में डालें।
  • ऊँचे कद की (कम सिंचाई वाली) जातियेॉं में नत्रजनःस्फुरःपोटाष की मात्रा 80ः40ः20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुआई से पूर्व ही देना चाहिये।
  • बौनी शरबती किस्मेंा को नत्रजनःस्फुरःपोटाष की मात्रा 120ः60ः30 तथा मालवी किस्मों को 140ः70ः35 किलो ग्राम प्रति हैक्टेयर देना चाहिये।
  • नत्रजन की आधी मात्रा और स्फुर एवं पोटाष की पूरी मात्रा बुआई पूर्व देना चाहिये तथा नत्रजन की ष्ेाष आधी मात्रा प्रथम सिंचाई (बुआई के 20 दिन बाद) देनी चाहिये।
  • बुवाई से पहले मिश्रित खाद जैसे 12ः32ः16 तथा यूरिया का उपयोग करें।
  • मृदा में जीवांष पदार्थ यानि कार्बनिक या हरी खादों का प्रति तीसरे वर्ष प्रयोग अवष्य करें ताकि भूमि को सूक्ष्म तत्वों की कमी से बचा जा सके।
  • बीज दर के लिए हमेषा याद रखें कि बडे दाने वाले बीज की दर अधिक रखी जाती है तथा छोटे दाने के लिए कम । इसलिये 1000 दाने गिनें इसका बजन करें, जितने ग्राम बजन होगा उतने ही किलोग्राम बीज एक एकड़ क्षेत्र के लिये प्रर्याप्त होगा।
  • खाद तथा बीज अलग-अलग बोयें, खाद गहरा (ढाई से तीन इंच) तथा बीज उथला (एक से डेढ़ इंच गहरा) बोयें, बुवाई पष्चात पठार/ पाटा न करें।
  • बुवाई के बाद खेत में दोनों ओर से (आड़ी तथा खड़ी) नालियाँ प्रत्येक 15-20 मीटर (खेत के ढाल के अनुसार) पर बनायें तथा बुवाई के तुरन्त बाद इन्हीं नालियों द्वारा बारी- बारी से क्यारियों में सिंचाई करें।
  • अर्द्धसिंचित/कम सिंचाई (1-2 सिंचाई) वाली प्रजातियों में एक से दो बार सिंचाई 35-40 दिन के अंतराल पर करें।
  • पूर्ण सिंचित प्रजातियों में 20-20 दिन के अन्तराल पर 4 सिंचाई करें।
  • सिंचाई समय पर, निर्धारित मात्रा में, तथा अनुषंसित अंतराल पर ही करें।
  • खड़ी फसल में डोरे (व्हील हो) या मजदूरों द्वारा खरपतवारों की सफाई करायें।
  • खेती में जहरीले रसायनों का उपयोग सीमित करे। रोग व नीदा नियत्रंण के लिये जीवनाशक रसायनों का उपयोग वैज्ञानिक संस्तुति के आधार पर ही करें।
  • चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये 2-4 डी 650 ग्राम सक्रिय तत्व/है, अथवा मैटसल्फ्युरॉन मिथाइल 4 ग्राम सक्रिय तत्व/है, 600 लीटर पानी में मिलाकर 30-35 दिन की फसल होने पर छिङकें।
  • संकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये क्लॉडीनेफॉप प्रोपरजिल – 60 ग्राम सक्रिय तत्व/है, 600 लीटर पानी में मिलाकर 30-35 दिन की फसल होने पर छिङकें।
  • दोनों प्रकार के खरपतवारों के लियेेः एटलान्टिस 400 मिलीलीटर अथवा वैस्टा 400 ग्राम अथवा सल्फोसल्फ्युरॉन 25 ग्राम सक्रिय तत्व/है अथवा सल्फोसल्फ्युरॉन 25 ग्राम सक्रिय तत्व/है, $ मैटसल्फ्ूरॉन मिथाइल 4 ग्राम सक्रिय तत्व/है, 600 लीटर पानी में मिलाकर 30-35 दिन की फसल होने पर छिङकें।
  • गेरूआ रोग से बचाव तथा कुपोषण निवारण के लिए कम से कम आधे क्षेत्रफल में मालवी गेहूँ की नई किस्मों की खेती अवष्य करें।
  • सतत अच्छी उपज के लिए फसल विविधता एवं किस्म विविधता अपनायें ।
  • फसल अवशेषों को जलायें नहीं, उनकी खाद बनायें ।
  • परस्पर सहभागिता व सहकारी समूहों के माध्यम से गेहूँ की सामुदायिक खेती, वैज्ञानिक भडारण व यथोचित समय पर बिक्री द्वारा खेती का लाभांष बढ़ायें।

मध्य भारत के लिये अनुषंसित गेहूँ की नवीन प्रजातियाँ:

 बुवाई अवस्था बुवाई का स़मय सिंचाई प्रजातियाँ खाद की मात्रा
(नत्रजनःस्फुरःपोटाश कि.ग्रा./हैक्टेयर)
 उत्पादन
(क्ंिव./है.)
चन्दौसी/शरबती  कठिया/मालवी
 अगेती 20 अक्टूबर
से 10 नवम्बर
 1-2
सिंचाई
 एच.आई. 1605 (पूसा उजाला) ,
जे‐डब्ल्यू. 3020, जे‐डब्ल्यू. 3173,
जे‐डब्ल्यू. 3211, जे‐डब्ल्यू. 3269,
एम‐पी‐ 3288, डी.बी.डब्ल्यू. 110
एच.आई. 1655 (पूसा हर्षा)
एच.आई. 8802 (पूसा गेहूँ 8802),
एच.आई. 8805 (पूसा गेहूँ 8805),
एच.आई. 8823 (पूसा प्रभात),
एच.आई. 8830 (पूसा कीर्ति) 
 80%40%20 30&40
 समय से 11 से 25
नवम्बर
 4-5
सिंचाई
 जी.डब्ल्यू. 366, जी.डब्ल्यू. 513,
एच.आई.1544 (पूर्णा),
एच.आई.1636 (पूसा वकुला)
एच.आई 1650 (पूसा ओजस्वी)
 एम.पी.ओ.1255,
एच.आई. 8663 (पोषण),
एच.आई. 8713 (पूसा मंगल) ,
एच.आई.8737 (पूसा अनमोल),
एच.आई. 8759 (पूसा तेजस)
एच.आई. 8826 (पूसा पोष्टिक)
 चन्दौसी/ शरबती
120ः60ः30
कठिया/ मालवी
140ः70ः35
 50&60
 पछेती 26 नवम्बर से
5 जनवरी
 4-5
सिंचाई
 जे‐डब्ल्यू.1202, जे‐डब्ल्यू.1203,
एम.पी. 3336, राज. 4238,
एच.डी.2932
एच.आई.1634 (पूसा अहिल्या)
 – 100%50%25 35&45

गेहूँ फसल में पोषक तत्वों के कमी के लक्षण

जिस तरह से हर व्यक्ति को पोषक तत्वों की जरूरत होती हैए उसी तरह से पौधों को भी अपनी वृद्धिए प्रजननए तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए कुछ पोषक तत्वों की जरूरत होती है। इन पोषक तत्वों के न मिल पाने से पौधों की वृद्धि रूक जाती है यदि ये पोषक तत्व एक निश्चित समय तक न मिलें तो पौधा सूख जाता है।
वैज्ञानिक परीक्षणो के आधार पर 17 तत्वों को पौधो के लिए जरूरी बताया गया हैए जिनके बिना पौधे की वृद्धि.विकास तथा प्रजनन आदि क्रियाएं सम्भव नहीं हैं। इनमें से मुख्य तत्व कार्बनए हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश है। नाइट्रोजनए फास्फोरस तथा पोटाश को पौधे अधिक मात्रा में लेते हैंए इन्हें खाद.उर्वरक के रूप में देना जरूरी है। इसके अलावा कैल्सियमए मैग्नीशियम और सल्फर की आवश्यकता कम होती है अतः इन्हें गौण पोषक तत्व के रूप मे जाना जाता है इसके अलावा लोहाए तांबाए जस्ताए मैंग्नीजए बोरानए मालिब्डेनमए क्लोरीन व निकिल की पौधो को कम मात्रा में जरूरत होती है।

फसलों में पोषक तत्वों के कमी के लक्षण

नत्रजन के प्रमुख कार्य

नाइट्रोजन से प्रोटीन बनती है जो जीव द्रव्य का अभिन्न अंग है तथा पर्ण हरित के निर्माण में भी भाग लेती है। नाइट्रोजन का पौधों की वृद्धि एवं विकास में योगदान इस तरह से है

  • यह पौधों को गहरा हरा रंग प्रदान करता है।
  • वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा मिलता है।
  • अनाज तथा चारे वाली फसलों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाता है।
  • यह दानो के बनने में मदद करता है।

नत्रजन. कमी के लक्षण

  • पौधों मे प्रोटीन की कमी होना व हल्के रंग का दिखाई पड़ना। निचली पत्तियाँ झड़ने लगती हैए जिसे क्लोरोसिस कहते हैं।
  • पौधे की बढ़वार का रूकनाए कल्ले कम बननाए फूलों का कम आना।
  • फल वाले वृक्षों का गिरना। पौधों का बौना दिखाई पड़ना। फसल का जल्दी पक जाना।

फॉस्फोरस के कार्य

  • फॉस्फोरस की उपस्थिति में कोशा विभाजन जल्द होता है। यह न्यूक्लिक अम्लए फास्फोनत्रजन.कमी के लक्षणलिपिड्स व फाइटीन के निर्माण में सहायक है। प्रकाश संश्लेषण में सहायक है।
  • यह कोशा की झिल्लीए क्लोरोप्लास्ट तथा माइटोकान्ड्रिया का मुख्य अवयव है।
  • फास्फोरस मिलने से पौधों में बीज स्वस्थ पैदा होता है तथा बीजों का भार बढ़नाए पौधों में रोग व कीटरोधकता बढ़ती है।
  • फास्फोरस के प्रयोग से जड़ें तेजी से विकसित तथा मजबूत होती हैं। पौधों में खड़े रहने की क्षमता बढ़ती है।
  • इससे फल जल्दी आते हैंए फल जल्दीबनते है व दाने जल्दी पकते हैं।
  • यह नत्रजन के उपयोग में सहायक है तथा फलीदार पौधों में इसकी उपस्थिति से जड़ों की ग्रंथियों का विकास अच्छा होता है।

फॉस्फोरस.कमी के लक्षण

  • पौधे छोटे रह जाते हैंए पत्तियों का रंग हल्का बैगनी या भूरा हो जाता है। फास्फोरस गतिशील होने के कारण पहले ये लक्षण पुरानी ;निचलीद्ध पत्तियों पर दिखते हैं। दाल वाली फसलों में पत्तियां नीले हरे रंग की हो जाती हैं।
  • पौधो की जड़ों की वृद्धि व विकास बहुत कम होता है कभी.कभी जड़े सूख भी जाती हैं।
  • अधिक कमी में तने का गहरा पीला पड़नाए फल व बीज का निर्माण सही न होना।
  • इसकी कमी से आलू की पत्तियां प्याले के आकार कीए दलहनी फसलों की पत्तियाँ नीले रंग की तथा चौड़ी पत्ती वाले पौधे में पत्तियों का आकार छोटा रह जाता है।

पोटैशियम के कार्य

  • जड़ों को मजबूत बनाता है एवं सूखने से बचाता है। फसल में कीट व रोग प्रतिरोधकता बढ़ाता है। पौधे को गिरने से बचाता है।
  • स्टार्च व शक्कर के संचरण में मदद करता है। पौधों में प्रोटीन के निर्माण में सहायक है।
  • अनाज के दानों में चमक पैदा करता है। फसलो की गुणवत्ता में वृद्धि करता है। आलू व अन्य सब्जियों के स्वाद में वृद्धि करता है। सब्जियों के पकने के गुण को सुधारता है। मृदा में नत्रजन के कुप्रभाव को दूर करता है।

पोटैशियम-कमी के लक्षण

  • पत्तियाँ भूरी व धब्बेदार हो जाती हैं तथा समय से पहले गिर जाती हैं।
  • पत्तियों के किनारे व सिरे झुलसे दिखाई पड़ते हैं।
  • इसी कमी से मक्का के भुट्टे छोटेए नुकीले तथा किनारोंपर दाने कम पड़ते हैं। आलू में कन्द छोटे तथा जड़ों का विकास कम हो जाता है
  • पौधों में प्रकाश.संश्लेषण की क्रिया कम तथा श्वसन की क्रिया अधिक होती है।

कैल्सियम के कार्य

  • यह गुणसूत्र का संरचनात्मक अवयव है। दलहनी फसलों में प्रोटीन निर्माण के लिए आवश्यक है।
  • यह तत्व तम्बाकूए आलू व मूँगफली के लिए अधिक लाभकारी है।
  • यह पौधों में कार्बोहाइड्रेट संचालन में सहायक है।

कैल्सियम-कमी के लक्षण

  • नई पत्तियों के किनारों का मुड़ व सिकुड़ जाना। अग्रिम कलिका का सूख जाना।
  • जड़ों का विकास कम तथा जड़ों पर ग्रन्थियों की संख्या में काफी कमी होना।
  • फल व कलियों का अपरिपक्व दशा में मुरझाना।

मैग्नीशियम के कार्य

  • क्रोमोसोमए पोलीराइबोसोम तथा क्लोरोफिल का अनिवार्य अंग है।
  • पौधों के अन्दर कार्बोहाइड्रेट संचालन में सहायक है।
  • पौधों में प्रोटीनए विटामिनए कार्बोहाइड्रेट तथा वसा के निर्माण मे सहायक है।
  • चारे की फसलों के लिए महत्वपूर्ण है।

मैग्नीशियम-कमी के लक्षण

  • पत्तियां आकार में छोटी तथा ऊपर की ओर मुड़ी हुई दिखाई पड़ती हैं।
  • दलहनी फसलों में पत्तियो की मुख्य नसों के बीच की जगह का पीला पड़ना।

गन्धक; सल्फरद्ध के कार्य

  • यह अमीनो अम्लए प्रोटीन ;सिसटीन व मैथिओनिनद्धए वसाए तेल एव विटामिन्स के निर्माण में सहायक है।
  • विटामिन्स ;थाइमीन व बायोटिनद्धए ग्लूटेथियान एवं एन्जाइम 3ए22 के निर्माण में भी सहायक है। तिलहनी फसलों में तेल की प्रतिशत मात्रा बढ़ाता है।
  • यह सरसोंए प्याज व लहसुन की फसल के लिये जरूरी है। तम्बाकू की पैदावार 15.30 प्रतिशत तक बढ़ती है।

गन्धक-कमी के लक्षण

  • नई पत्तियों का पीला पड़ना व बाद में सफेद होना तने छोटे एवं पीले पड़ना।
  • मक्काए कपासए तोरियाए टमाटर व रिजका में तनों का लाल हो जाना।
  • ब्रेसिका जाति ;सरसोंद्ध की पत्तियों का प्यालेनुमा हो जाना।

लोहा; आयरनद्ध के कार्य

  • लोहा साइटोक्रोम्सए फैरीडोक्सीन व हीमोग्लोबिन का मुख्य अवयव है।
  • क्लोरोफिल एवं प्रोटीन निर्माण में सहायक है।
  • यह पौधों की कोशिकाओं में विभिन्न ऑक्सीकरण.अवकरण क्रियाओं मे उत्प्रेरक का कार्य करता है। श्वसन क्रिया में आक्सीजन का वाहक है।

लोहा-कमी के लक्षण

  • पत्तियों के किनारों व नसों का अधिक समय तक हरा बना रहना।
  • नई कलिकाओं की मृत्यु को जाना तथा तनों का छोटा रह जाना।
  • धान में कमी से क्लोरोफिल रहित पौधा होनाए पैधे की वृद्धि का रूकना।

जस्ता; जिंकद्ध के कार्य

  • कैरोटीन व प्रोटीन संश्लेषण में सहायक है।
  • हार्मोन्स के जैविक संश्लेषण में सहायक है।
  • यह एन्जाइम ;जैसे.सिस्टीनए लेसीथिनेजए इनोलेजए डाइसल्फाइडेज आदिद्ध की क्रियाशीलता बढ़ाने में सहायक है। क्लोरोफिल निर्माण में उत्प्रेरक का कार्य करता है।

जस्ता-कमी के लक्षण

  • पत्तियों का आकार छोटाए मुड़ी हुईए नसों मे निक्रोसिस व नसों के बीच पीली धारियों का दिखाई पड़ना।
  • गेहूं में ऊपरी 3.4 पत्तियों का पीला पड़ना।
  • फलों का आकार छोटा व बीज की पैदावार का कम होना।
  • मक्का एवं ज्वार के पौधों में बिलकुल ऊपरी पत्तियाँ सफेद हो जाती हैं।
  • धान में जिंक की कमी से खैरा रोग हो जाता है। लालए भूरे रंग के धब्बे दिखते हैं।

ताँबा; कॉपर द्ध के कार्य

  • यह इंडोल एसीटिक अम्ल वृद्धिकारक हार्मोन के संश्लेषण में सहायक है।
  • ऑक्सीकरण.अवकरण क्रिया को नियमितता प्रदान करता है।
  • अनेक एन्जाइमों की क्रियाशीलता बढ़ाता है। कवक रोगो के नियंत्रण में सहायक है।

ताँबाकमी के लक्षण

  • फलों के अंदर रस का निर्माण कम होना। नीबू जाति के फलों में लाल.भूरे धब्बे अनियमित आकार के दिखाई देते हैं।
  • अधिक कमी के कारण अनाज एवं दाल वाली फसलों में रिक्लेमेशन नामक बीमारी होना।

बोरान के कार्य

  • पौधों में शर्करा के संचालन मे सहायक है। परागण एवं प्रजनन क्रियाओ में सहायक है।
  • दलहनी फसलों की जड़ ग्रन्थियों के विकास में सहायक है।
  • यह पौधों में कैल्शियम एवं पोटैशियम के अनुपात को नियंत्रित करता है।
  • यह डीएनएए आरएनएए एटीपी पेक्टिन व प्रोटीन के संश्लेषण में सहायक है

बोरान-कमी के लक्षण

  • पौधे की ऊपरी बढ़वार का रूकनाए इन्टरनोड की लम्बाई का कम होना।
  • पौधों मे बौनापन होना। जड़ का विकास रूकना।
  • बोरान की कमी से चुकन्दर में हर्टराटए फूल गोभी मे ब्राउनिंग या खोखला तना एवं तम्बाखू में टाप.सिकनेस नामक बीमारी का लगना।

मैंगनीज के कार्य

  • क्लोरोफिलए कार्बोहाइड्रेट व मैंगनीज नाइट्रेट के स्वागीकरण में सहायक है।
  • पौधों में ऑक्सीकरण.अवकरण क्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य करता है।
  • प्रकाश संश्लेषण में सहायक है।

मैंगनीज-कमी के लक्षण

  • पौधों की पत्तियों पर मृत उतको के धब्बे दिखाई पड़ते हैं।
  • अनाज की फसलों में पत्तियाँ भूरे रंग की व पारदर्शी होती है तथा बाद मे उसमे ऊतक गलन रोग पैदा होता है। जई में भूरी चित्ती रोगए गन्ने का अगमारी रोग तथा मटर का पैंक चित्ती रोग उत्पन्न होते हैं।

क्लोरीन के कार्य

  • यह पर्णहरिम के निर्माण में सहायक है। पोधो में रसाकर्षण दाब को बढ़ाता है।
  • पौधों की पंक्तियों में पानी रोकने की क्षमता को बढ़ाता है।

क्लोरीन-कमी के लक्षण

  • गमलों में क्लोरीन की कमी से पत्तियों में विल्ट के लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
  • कुछ पौधों की पत्तियों में ब्रोन्जिंग तथा नेक्रोसिस रचनायें पाई जाती हैं।
  • पत्ता गोभी के पत्ते मुड़ जाते हैं तथा बरसीम की पत्तियाँ मोटी व छोटी दिखाई पड़ती हैं।

मालिब्डेनम के कार्य

  • यह पौधों में एन्जाइम नाइट्रेट रिडक्टेज एवंनाइट्रोजिनेज का मुख्य भाग है।
  • यह दलहनी फसलों में नत्रजन स्थिरीकरणए नाइट्रेट एसीमिलेशन व कार्बोहाइड्रेट मेटाबालिज्म क्रियाओ में सहायक है।
  • पौधों में विटामिन.सी व शर्करा के संश्लेषण में सहायक है।

मालिब्डेनम-कमी के लक्षण

  • सरसों जाति के पौधो व दलहनी फसलों में मालिब्डेनम की कमी के लक्षण जल्दी दिखाई देते हैं।
  • पत्तियों का रंग पीला हरा या पीला हो जाता है तथा इसपर नारंगी रंग का चितकबरापन दिखाई पड़ता है।
  • टमाटर की निचली पत्तियों के किनारे मुड़ जाते हैं तथा बाद में मोल्टिंग व नेक्रोसिस रचनायें बन जाती हैं।
  • इसकी कमी से फूल गोभी में व्हिपटेल एवं मूली मे प्याले की तरह रचनायें बन जाती हैं।
  • नीबू जाति के पौधो में मॉलिब्डेनम की कमी से पत्तियों मे पीला धब्बा रोग लगता है।

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