Crop Cultivation (फसल की खेती)

उर्वरक के लिये मोहताज हुआ किसान

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  • विनोद के. शाह
    मो. : 9425640778
    shahvinod69@gmail.com

25 नवंबर 2021, उर्वरक के लिये मोहताज हुआ किसानमप्र में किसानों के लिये खाद व्यवस्था संभालने वाले सरकार के विभागीय अधिकारी फसल बोनी तक प्रदेश सरकार एवं किसानों को अंधेरे में रखे हुये है। राज्य के जिम्मेदार अधिकारी अक्टूबर माह के अंत तक राज्य में खाद की पर्याप्त उपलब्धता की बात कर रहे थे। जबकि हकीकत यह है कि सरकारी अफसरों का झूठ सरकार एवं अन्नदाता दोनों पर ही भारी रहा है। राज्य में फसल कटाई के बाद हुई बरसात से राज्य का पचास फीसदी किसान अक्टूबर माह में बोनी के लिये तैयार था। लेकिन बीज बोने किसानों को पर्याप्त खाद नहीं मिल सकी है। जब पूरे प्रदेश में किसान के आक्रोश से हालात बिगडऩे लगे तब मोर्चा संभालने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को ही आगे आना पड़ा है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार से 32 रैक उर्वरक की मात्रा तुरंत उपलब्ध कराने के साथ ही, कालाबजारी करने वालों को शक्ति से कुचलने की बात भी कही, तो हालात सुधरे हैं । लेकिन इसके पहले राज्य में उर्वरक की जमकर कालाबाजारी हो चुकी है। राज्य के 40 फीसदी किसानों को अक्टूबर माह में खुले बाजार से महंगे दामो में उर्वरक खरीदकर बोनी करने को मजबूर होना पड़ा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पूर्व में उपलब्ध खाद अक्टूबर माह में सहकारी समिति एवं विपणन संघ के कर्मचारियों के माध्यम से कालाबाजारियों तक पहुंचा है। विपणन संघ द्वारा राजनैतिक दबाव में सभी सहकारी समितियों को समानता के आधार पर वितरण न करके कुछ ही सहकारी समितियों तक वितरित किया है। वहीं राजनैतिक दबाव में कुछ चुनिंदा समितियों को तय कोटे से अधिक उर्वरक प्रदाय किया गया है। जबकि अक्टूबर माह के अंत तक अनेकों सहकारी समितियां ऐसी भी रही हैं, जिन्हे खाद की एक भी बोरी राज्य विपणन संघ द्वारा उपलब्ध नहीं कराई गई थी।

 

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चालू अवधि में राज्य में दलहनी, सरसों एवं लम्बी अवधि के गेहंू की 50 फीसदी से अधिक बोनी हो चुकी है। लेकिन प्रदेश के नौकरशाह यह स्वीकारनेे कतई तैयार नहीं है कि मप्र में उर्वरक का कोई संकट रहा है। मंत्रालय स्तर के अधिकारी मुख्यमंत्री सहित पूरी सरकार से कह रहे हंै कि प्रदेश में खाद का कोई टोटा है ही नहीं है, ब्लकि किसान खाद का आवश्यकता से अधिक संग्रह कर रहा है। यही बात जिला स्तर पर भी जिम्मेदार अधिकारी कर रहे हैंै। लेकिन इसके विपरीत सत्य जो सबके सामने है, उपचुनाव वाले क्षेत्र को छोडक़र प्रदेशभर में किसान खाद के लिये हैरान—परेशान रहा है। सहकारी समितियों के बाहर लम्बी—लम्बी कतारें, कतारों में खड़े बीमार, बुजुर्ग एवं महिलाओं की दर्दभरी तस्वीरें राज्य के नौकरशाहों के झूठ को उजागर करने के लिये पर्याप्त है। मप्र में राज्य विपणन संघ के पास खाद भंडारण एवं वितरण का जिम्मा है। चालू रबी सीजन के लिये राज्य विपणन संघ को साढ़े चार लाख टन यूरिया,चार लाख टन डीएपी,03 लाख 90 हजार टन मिश्रित खाद एनपीके का भंडारण 01 अगस्त से 15 सितंबर की अवधि में सहकारी समितियों में करना था। इसके लिये राज्य सरकार 600 करोड़ रुपये की राशि बतौर बैंक गारंटी अग्रिम रुप में राज्य विपणन संघ को प्रतिवर्ष उपलब्ध कराती आ रही है। लेकिन अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी डीएपी की कीमतों एवं इसके तुरन्त बाद केन्द्र सरकार की सब्सिडी में बढ़ौत्तरी,एनपीके खाद में मूल्य वृद्धि के दृष्टिगत राज्य विपणन संघ की नीयत अधिक मुनाफा कमाने की थी। इस कारण जानबूझकर राज्य की सभी सहकारी समितियों में अग्रिम रुप में उर्वरक का भंडारण नहीं किया गया था। अब जबकि सरकार के आकड़े से राज्य में उर्वरक की उपलब्धता गत वर्ष की तुलना में 53 हजार टन की अधिक मात्रा दृष्टीगोचर हो रही है।

राज्य विपणन संघ अब भी सत्य पर पर्दा डालने में लगा है। खाद न मिलने से आक्रोशित किसान आन्दोलित हुये थे। स्थानीय स्तर पर किसानों को चक्काजाम, धरना सहित रेल ट्रैक जाम जैसे आन्दोलन करने को मजबूर होना पड़ा है। चुनावी जिलों को छोड़ राज्य के शेष सभी जिलों में खाद की आसान उपलब्धता नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से राज्य सरकार बारिश के दिनों में सहकारी समितियों के माध्यम से राज्य के किसानों को ब्याज मुक्त राशि पर अग्रिम खाद उपलब्ध कराती आ रही है। इस नीति से राज्य सरकार की भंडारण पर खर्च होने वाली करोड़ों रुपये की राशि की बचत हो रही थी। लेकिन राज्य विपणन संघ की चालू वर्ष में मुनाफा कमाने की नीति राज्य शासन को आर्थिक नुकसान पहुंचाने के साथ संकट में डालने वाली भी रही है। राज्य सरकार के अधिकारी स्वदेशी एनपीके खाद को डीएपी का उत्तम विकल्प बताने के साथ उसकी भरपूर उपलब्धता की बात अवश्य कर रहे हैं। लेकिन सहकारी समितियों के पास किसानों को देने एनपीके खाद भी उपलब्ध नहीं है। एनपीके, सिंगल सुपर फास्फेट एवं यूरिया का मिश्रण डीएपी के विकल्प बन सकते हंै, लेकिन इस मिश्रण को किसान को कैसे उपयोग में लाना है, ऐसी जागरुकता भरी जानकारी उपलब्ध कराने में राज्य का कृषि विभाग पूर्णता नाकाम बना हुआ है।

राज्य सरकार ने खाद की कालाबाजारी एवं इसके अनावश्यक प्रयोग को रोकने सीजन से पूर्व ई वाउचर जैसी व्यवस्था लागू करने की बात भी कर रही थी। योजना में राज्य के किसानों के पास उपलब्ध कृषि भूमि के आधार पर तय मात्रा की खाद किसानों को देना थी। लेकिन राज्य की सुस्त प्रशासनिक व्यवस्था योजना को अमलीजामा पहनाने में नाकाम होती दिखाई दे रही है। चालू वर्ष में राज्य का 25 फीसदी किसान अपना पिछला सहकारी समिति का कर्ज अदा न करने के कारण डिफाल्टर की श्रेणी में है। सरकारी समितियां ऐसे कर्जधारियों को किसी भी प्रकार से खाद नहीं दे रही है। इसके कारण गत वर्ष की तुलना में सहकारी समितियों के पास खाद—ग्राहकों की संख्या कम रही है, जबकि सरकार की माने तो प्रदेश के सरकारी रिकॉर्ड में खाद की उपलब्धता गत वर्ष की तुलना में अधिक है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर राज्य का खाद कहां गया? सरकार एवं अन्नदाता को अंधेरे में रखकर, गुमराह करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर दंड की कार्यवाही आवश्यक है। तभी प्रदेश के किसानों को शोषित होने से बचाया जा सकेगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं कृषि मामलों के जानकार हैं।)

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