फसल की खेती (Crop Cultivation)

जायद मूंग की उन्नत उत्पादन तकनीक

  • डॉ. सर्वेश कुमार, मुकेश बंकोलिया
  • डॉ. ओ.पी. भारती ,डॉ. एस. के. तिवारी
  • डॉ. संध्या मुरे
    वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र, हरदा

23 मार्च 2023,  जायद मूंग की उन्नत उत्पादन तकनीक – पिछले 8-10 वर्षों में मूंग की अनेक प्रजातियंा विकसित की गयी हैं। इनमें से अधिकांश प्रजातियंा प्रमुख रोगों और कीटों के प्रति अवरोधी है। इसके अलावा ये शीघ्र्र पकने वाली, फलियंा एक साथ पकने वाली तथा बड़े आकार के दाने वाली हंै। ये नवीनतम प्रजातियंा अधिक उत्पादक देने वाली भी हैं। इनकी उत्पादन क्षमता कुशल फसल प्रबंधन के अंतर्गत 12-17 क्विंटल/हेक्टेयर हैं। ये प्रजातियंा परंपरागत प्रजातियों की अपेक्षा 15-20 प्रतिशत तक अधिक उपज देती है।

भूमि का चुनाव

ग्रीष्मकालीन मँूग फसल के लिए मध्यम से भारी भूमि उपयुक्त है।

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खेत की तैयारी

रबी फसल गेहंू कटाई उपरान्त गेहँू की नरवाई न जलायें। रोटावेटर अथवा लोहे की भारी चौखटा (नरवाई तोडक़ घिसटा यंत्र) को खेत में दो-तीन बार आड़ा-तिरछा चलायें इससे नरवाई टूटकर छोटे टुकड़ों में मिट्टी में मिल जायेगी। बुआई से पहले खेत अच्छी तरह तैयार करें। खेत में उचित नमी होने पर ही बुआई करें। भुरभुरे, बारीक व चूर्णिल खेत को मूंग की खेती के लिए अच्छा माना जाता है। खेत की दो तीन बार हैरो से जुताई करें। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगायें। जिससे भूमि की नमी संरक्षित बनी रहे। असिंचित व वर्षा आधारित क्षेत्रों में खेतों की मेड़बंदी करके वर्षा के पानी को बहने से रोकें, जिससे वर्षा जल का अधिकांश भाग मृदा अच्छी तरह से सोख लें।

बुआई का उपयुक्त समय

बसंतकालीन/ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई सामान्यत: मार्च के प्रथम सप्ताह से 15 अप्रैल के मध्य करें। गेहंू, आलू, गन्ना, चना और सरसों की कटाई उपरांत 70 से 80 दिनों में पकने वाली प्रजातियों की बुआई की जा सकती है। जिन क्षेत्रों में गेहंू की फसल देर से पकती है या किसी कारणवश खेत समय पर तैयार न हो तो वहंा पर मूंग की 60 से 65 दिनों में पकने वाली किस्मों की बुआई 15 अप्रैल के बाद कर सकते हैं। ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती उन्ही क्षेत्रों में करें जहंा पर सिंचाई का पर्याप्त प्रबंध हो। मध्य नर्मदा घाटी में ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई हेतु 25 फरवरी से 25 मार्च तक सबसे उपयुक्त समय है। 

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उन्नतशील किस्में

पूसा बैशाखी, पूसा विशाल, आई.पी.एम.  205-7 (विराट), एम.एच. 421, आई.पी.एम. 410-3 (शिखा), पी.डी.एम. 139, (सम्राट)

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बीज की मात्रा

बसंतकालीन/ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई के लिए 25-30 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। ग्रीष्मकालीन मूंग की पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी 30 से.मी. रखें। पंक्तियों में पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 से.मी. रखें। बुआई हमेशा पंक्तियों में करें, जिससे फसल की निराई-गुड़ाई आसानी से की जा सके।

बीजोपचार

बीज बोने से पहले फफूंदीनाशक दवा से उपचारित अवश्य करें। इसके लिए फफूंदीनाशक दवा बाविस्टीन 2.5 ग्राम दवा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से प्रयोग करें। इसके बाद बीज को थायोमेथोक्सम 70 डब्ल्यू.एस. 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें जिससे सफेद मक्खी के प्रकोप को रोका जा सके तथा इसके बाद राइजोबियम जीवाणु से उपचारित करना अति आवश्यक है। इससे फसल द्वारा वायुमण्डलीय नाइट्रोजन के यौगिकीकरण क्रिया पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। बीज उपचार बुआई के 10-12 घंटे पहले कर लें। एक हेक्टर क्षेत्र में बुआई करने हेतु राइजोबियम जीवाणु के दो पैकेट पर्याप्त होते हैं। राइजोबियम उपचार हेतु एक लीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ तथा दो ग्राम गोंद को अच्छी तरह उबाल लें। उसके बाद ठंडा होने पर इस घोल में राइजोबियम के दोनों पैकेट मिला दें। इस प्रकार बनी लेई को  बीज के साथ अच्छी तरह से मिला दें, जिससे बीज के चारों और लेई की महीन परत चढ़ जाये। इसके बाद बीज को छाया में सुखा लें। ध्यान रहे कि बीज को कभी भी धूप में न सुखाएं।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

खेत की मिट्टी की जांच के बाद ही खाद एवं उर्वरकों की मात्रा सुनिश्चित की जाये। मूंग के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा बुआई के समय प्रयोग करें। राइजोबियम जैविक उर्वरक के प्रयोग द्वारा मूंग की पैदावार में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जा सकती है। जीवाणु उर्वरक सस्ते और आसानी से उपलब्ध हैं तथा इनका प्रयोग भी सुगम है। फास्फोरस जड़ों के विकास हेतु पोषक तत्व है। बारानी व कम पानी वाले क्षेत्रों में फास्फोरस का प्रयोग करने से पौधों की जड़ें गहराई तक जाती हंै, जिससे पौधे गहराई से पानी और पोषक तत्वों का अवशोषण कर सकते हैं। मूंग की खेती में उत्पादन लागत कम करने के लिए फास्फेट घुलनशील जीवाणु का भी प्रयोग करें, जिससे मृदा में उपस्थित अघुलनशील फास्फोरस की उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए पी.एस.बी. का 500 ग्राम का चार पैकेट प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। मूंग में 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. पोटाश 20 कि.ग्रा. सल्फर एवं 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर का प्रयोग पर्याप्त होता है।

सिंचाई प्रबंधन

मूंग की फसल में पानी की कम आवश्यकता होती है। ग्रीष्मकालीन/ बसंतकालीन मूंग की अच्छी वृद्धि व विकास के लिए 3-4 सिंचाई आवश्यक है।

खरपतवार नियंत्रण

ग्रीष्मकालीन मूंग में खरपतवारों की कोई विशेष समस्या नहीं रहती है। सामान्यत: फसल की वृद्धि के साथ ही कई प्रकार के चौड़ी व संकरी पत्तियों वाले खरपतवार उग आते हैं, जो फसल को दिए गए पोषक तत्वों व पानी का अवशोषण कर लेते हैं, जिससे मूंग की पैदावार और गुणवत्ता में कमी आ जाती है। इस प्रकार किसान को अपनी फसल का अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता है। बुआई के प्रथम 20-25 दिनों में खरपतवार फसल से ज्यादा स्पर्धा करते हैं। अत: बुआई के 15-20 दिनों के अंदर कसोले के निराई-गुड़ाई कर खरपतवारों को नष्ट कर दें। आजकल निराई गुड़ाई के लिए मजदूरों की कम उपलब्धता और उनकी अधिक मजदूरी के कारण खरपतवारों को नियंत्रण करने के लिए बहुत से शाकनाशी बाजार में उपलब्ध हैं। मँूग की बोनी उपरांत एवं अंकुरण पूर्व पेंडीमिथालीन (स्टाम्प एक्सट्रा) एक एकड़ में 600 मि.ली. दवा को 200 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ेेंं। फसल की 20-25 दिन की अवस्था पर डोरा या कुल्पा चलायें।

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सहफसली खेती

मूंग अल्प अवधि वाली फसल है। इसकी बढ़वार बहुत तेजी से होती है। ऐसी स्थिति में मूंग को अन्य फसलों के साथ सह फसल के रूप में उगाना लाभदायक है। ऐसा करने से किसानों को मुख्य फसल के साथ अतिरिक्त आय भी मिल जाती है। साथ ही सहफसली खेती से मुख्य फसल की पैदावार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। बसंतकालीन गन्ने क दो पंक्तियों के बीच में मूंग की दो पंक्तियंा बोना लाभदायक पाया गया है। सहफसली खेती में खरपतवारों को भी पनपने का कम मौका मिलता है। इससे न केवल फार्म संसाधनों का उचित उपयोग होता है बल्कि प्रति इकाई क्षेत्र शुद्ध लाभ भी बढ़ता है।

  • (आगामी अंक में देखें मूंग के प्रमुख कीट एवं उनका नियंत्रण)

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