संपादकीय (Editorial)

संपादकीय (Editorial) में भारत में कृषि, कृषि नीतियों, किसानों की प्रतिक्रिया और भारतीय परिदृश्य में इसकी प्रासंगिकता से संबंधित नवीनतम समाचार और लेख शामिल हैं। संपादकीय (Editorial) में अतिथि पोस्ट और आजीविका या ग्रामीण जीवन से संबंधित लेख भी शामिल हैं।

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द ग्रेट टेल ऑफ़ हिन्दुइज्म : गागर में सागर

द ग्रेट टेल ऑफ़ हिन्दुइज्म  : गागर में सागर – क्या  है हिंदुत्व ? वैदिक धर्म किसे कहते हैं ? संस्कृति की उत्पत्ति कैसे हुई ? ये सवाल पहले भी हमारे  रहे हैं और आगे भी रहेंगे । परंतु ये

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फर्टिलाइजर के हर दाने का उपयोग जरूरी

फर्टिलाइजर के हर दाने का उपयोग जरूरी – कृषि की छोटी-छोटी तकनीकी का कृषकों द्वारा शत-प्रतिशत अंगीकरण आज भी अपेक्षित है जिसके कारण उत्पादकता बढ़ाई जाने में अवरोध दिखाई दे रहा है। कृषि आदानों में बीज एवं खाद सबसे महंगे

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सोयाबीन दिवस का आयोजन

सोयाबीन दिवस का आयोजन – कृषि विज्ञान केन्द्र शहडोल द्वारा ग्राम कठोतिया में वरिष्ठ वैज्ञानिक सह प्रमुख डा. मृगेंद्र सिंह के मार्गदर्शन में सोयाबीन की फसल का प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया गया ण् केन्द्र द्वारा सोयाबीन की नई किस्म

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कृषि में जल का जलवा

कृषि में जल का जलवा – मानसून के अतिरेक को सहते, सुलझते खरीफ अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच ही गया। कृषि की निरंतरता से सभी परिचित हंै, खरीफ के अंतिम पड़ाव से ही रबी की शुरूआत होने लगती है और

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प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना का लाभ कैसें उठाए किसान – जानिए

प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना का लाभ कैसें उठाए किसान – जानिए – अब किसान भाई प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना में अपना पंजीयन कराकर योजना का लाभ उठाए। योजना में 60 वर्ष की आयू पूर्ण होने पर उन्हें प्रति वर्ष 36

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किसानों को नहीं, बाजार को ज़रूरत किसानों की

किसानों को नहीं, बाजार को ज़रूरत किसानों की – किसानो के बिल पर विरोध हो रहा है. बिल में लिखा है किसान जहाँ मर्जी चाहे अपनी उपज का सौदा कर सकते हैं. सन 2013 में मैंने किसानों की एक स्थिति

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संसद के राष्ट्रीय राजनीतिक पश्चाताप अधिवेशन की माँग

ध्रुव शुक्ल (9425301662) संसद के राष्ट्रीय राजनीतिक पश्चाताप अधिवेशन की माँग – कोरोना काल में ही प्रधानमंत्री जी को कहते सुना कि देश के अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज बाँटने का इंतज़ाम किया गया है। यह तथ्य जानकर दिल

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असली खाद को कैसे पहचानें

डी.ए.पी. किसान भाइयों , डी.ए.पी.के कुछ दानों को हाथ में लेकर तम्बाकू की तरह उसमें चूना मिलाकर मलने पर यदि उसमें से तेज गन्ध निकले जिसे सूंघना मुश्किल हो जाये तो समझें कि ये डी.ए.पी. असली है । किसान भाइयों

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रसायनों की खपत कम क्यों ?

रसायनों की खपत कम क्यों ? – देश व प्रदेश के किसान पौध संरक्षण के प्रति उदासीन हैं। इस कारण देश में पौध संरक्षण रसायनों की खपत मात्र 0.6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। एशिया महाद्वीप के अन्य देशों में यह

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कीमती जल का संरक्षण

कीमती जल का संरक्षण – प्रकृति की क्षमता को कोई पार नहीं पा सकेगा। भारतीय कृषि में मानसून का दखल इतना अधिक है कि पल में तोला और पल में माशा जैसी स्थिति बन जाती है। आमतौर पर भारत में

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