Animal Husbandry (पशुपालन)

दूध उत्पादन के लिए पशुओं का चुनाव

Share

8 फरवरी 2021, भोपाल। दूध उत्पादन के लिए पशुओं का चुनाव पशु पालक भाई पशु हाट या बाजार में पशु खरीदने जाते हैं तो उनके साथ बड़ी समस्या यह रहती है कि अधिक दुग्ध उत्पादन हेतु/भैंस का चुनाव कैसे करें। इस समस्या के निवारण के लिये आवश्यक जानकारी इस लेख के माध्यम से प्रदाय की जा रही है। दूध उत्पादन हेतु पशुओं का चुनाव करते समय पशुपालकों को निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा।


(1) बाह्य आकृति के आधार पर
(2) वंशावली के आधार पर
(3) संतान के उत्पादन के आधार पर

बाह्य आकृति के आधार पर:

हाट या मेले में जहाँ कि पशुओं की जानकारी उपलब्ध नहीं होती है, वहाँ पर दुधारू पशुओं का चुनाव, उनकी बाह्य आकृति के अनुसार किया जाता है। इसमें कुछ प्रमुख बिन्दुओं पर ध्यान दें।
शारीरिक बनावट : दुधारू गाय की पहचान उसकी त्रिभुजाकार शारीरिक बनावट से की जा सकती है। ऐसी दुधारू गाय का पिछला भाग आकार में बड़ा और भारी, परन्तु अग्रिम भाग अपेक्षाकृत पतला और छोटा होता है। दुधारू होता है। दुधारू गाय की त्वचा पतली, ढीली, चिकनी और मुलायम होती है।
पाँव: पशु के अगले पैर का नीचला भाग खड़ा (सीधा) होता है तथा पिछले पैर बगल से देखने पर हासिये के आकार के होते हंै।
छाती: दुधारू पशुओं की छाती चौड़ी, पसली अंदर की ओर होना चाहिए। आँखें चौकनी और चमकीली होनी चाहिए।
अयन एवं थन का आकार: दुधारू गाय का अयन का अगला हिस्सा पुष्ट और वृहद होना उचित माना जाता है। पिछले भाग से अयन चौड़ी दिखनी चाहिए तथा शरीर से इस तरह जुड़ा हो ताकि उथला जैसा लगे। अयन को स्पर्श करने पर वह मुलायम प्रतीत होता है। जिसकी दुग्ध शिराएँ विशेष रूप से विकसित होती है। गाय अथवा भैंस के अयन चार थनों में विभाजित रहते हैं। गाय का थन 5-6 सेमी लम्बा और 20-25 मि.मी. व्यास का हो, वह गाय अच्छी समझी जाती है समतल भूमि में खड़ी एक दुधारू गाय के थनों और जमीन के बीच 40-45 सेमी या अधिक से अधिक 48 सेमी की दूरी आदर्श मानी जाती है। झूलते या लपकते हुए अयन अच्छे नहीं माने जाते हंै, क्योंकि जब गाय व भैंसे चरने हेतु छोड़ी जाती है तो काँटे या नुकेले पदार्थ से थन को जख्म होने की संभावना रहती है और थनैला रोग की समस्या बढ़ जाती है। अयन में थनों की स्थिति समान दूरी पर होना चाहिए। यदि थनों में सूजन या दर्द आदि हो तो ऐसे गायों का चयन नहीं करें।
दूध की मात्रा का परीक्षण: हाट बाजार में गाय/भैंस खरीदते समय यदि तीन समय का दूध उत्पादन नापा जाए और औसत निकालकर गाय की दुग्ध उत्पादन क्षमता का सहीं आकलन किया जा सकता है।
उम्र के आधार पर: पशुओं की उम्र उनकी स्थायी कृन्तक जोड़ा दाँत तथा सींग पर उभरे घेरों द्वारा ज्ञात की जा सकती है। गाय या बैल की प्रथम स्थायी कृन्तक जोड़ा दाँत लगभग दो वर्ष में दिखने लगता है। जब कि पूरे कृन्तक जोड़ा दाँत 3-1/2 से 4 साल की उम्र में निकल आते हैं। अत: युवा, बूढ़े व अधिक उम्र के पशुओं की सही पहचान उनकी स्थायी कृन्तक दाँतों के आधार पर संभव और आसान होता है, क्योंकि अधिक उम्र के पशुओं के दुग्धोत्पादन में गिरावट आती है। दाँत के अतिरिक्त पशु की सींग पर उभरे घेरों से भी उसकी उम्र का अनुमान लगाना संभव है। सींग के घेरों की संख्या में दो और जोड़ देने पर उम्र का पता लगाया जा सकता है।

वंशावली के आधार पर:

आर्थिक पहलू से गाय एवं भैसों के गुणों को तीन क्रमों मं बाँटा गया है 1. शारीरिक विकास, 2. दूध उत्पादन और 3. प्रजनन
दुधारू पशुओं की पहचान नस्ल के आधार पर अधिकांशत: की जाती है। प्रत्येक नस्ल के शारीरिक विकास उनकी वंशावली के आधार पर होता है। पशुओं के जनने के बाद दूध का उत्पादन बहुत कुछ अनुवांशिकता पर निर्भर करता है। माता-पिता से गुण बच्चों में जाते है, अत: दुधारू पशु के बच्चे भी अधिक दूध देने की क्षमता रखते है। बर्शत उन्हें अच्छा आहार एवं उत्तम व्यवस्थापन प्राप्त हो। सांड को दुग्ध प्रक्षेत्र का आधा हिस्सा माना जाता है। क्योंकि एक सांड से बहुत से बच्चे पैदा हो सकते हंै। अत: सांड को प्रजनन हेतु लाने के समय ठीक से चयन करना बहुत आवश्यक है। जनन और जननी दोनों का ही प्रभाव संतान के लक्षणों पर होता है।

संतान के उत्पादन के आधार पर:

दुधारू पशुओं का चुनाव उनकी संतान के उत्पादन के आधार पर किया जाना अधिक लाभकारी होता है। इन संतान में माता पिता दोनों के गुण सम्मिलित रहते है, अत: जिन पशुओं की संतान की उत्पादन क्षमता अधिक रहीत है, उन्हीें के आधार पर चयन किया जा सकता है।
दो ब्यातों का अंतराल करीब 15 माह होना चाहिए ब्याने के तीन माह पश्चात ही गाय का पुन: गर्भधारण कर लेना अच्छा माना जाता है। पशुओं के आहार एवं वातावरण पर पशुधन की उत्पादकता एवं पशुओं की गुणवत्ता निर्भर करती है। परन्तु अच्छी गुणवत्ता के पशुओं का उत्पादन, उनमें पाये जाने वाले अनुवंशीय गुणों पर आधारित होता है।
पशुपालकों को सुझाव दिया जाता है कि दुधारू पशु का चुनाव करते समय उनकी शारीरिक बनावट, नस्ल उत्पादन क्षमता, उम्र इत्यादि बिन्दुओं पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त यह भी देखना चाहिये की पशु पूर्णरूप से रोगमुक्त हो। जहाँ तक संभव हो, गर्भवती गायें, भैसों का क्रय करना उचित रहता है। इसमें धोखाखड़ी की संभावना क्षीण हो जाती है।

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *